खाटू श्याम बाबा का मेला फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी से शुरु होकर द्वादशी तिथि(बारस) तक यानी पांच दिन के लिए आयोजित किया जाता है। फाल्गुन शुक्ल पक्ष की ग्यारस के दिन दर्शन का विशेष महत्व माना जाता है। कार्तिक एकादशी के दिन खाटूश्याम का जन्मदिवस मनाया जाता है, बर्बरीक जिन्हें शीश के दानी के नाम से संसार पूजता है। बर्बरीक के परित्याग से प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को अपने नाम से संबोधित किया जिसे हम खाटूश्याम के नाम से जानते हैं। फाल्गुन मेले में देश-विदेश से आए श्रद्धालु बाबा खाटू श्याम के लिए भजन एवं कीर्तन करते हैं।

राजस्थान के सीकर स्थित खाटू श्याम जी का मंदिर देश-विदेश में प्रसिद्ध है। इस मंदिर पर श्रद्धालुओं की अत्यधिक आस्था है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महाभारत काल में भीम के पौत्र घटोत्कच के पुत्र बर्बरिक के रुप में खाटू श्याम बाबा ने अवतार लिया था। बर्बरिक बचपन से ही अत्यधिक वीर और बलशाली योद्धा थे। बर्बरीक के इसी बल कौशल को देखकर अग्नि देव ने उन्हें एक विशिष्ट धनुष दिया और भगवान शिव ने वरदान स्वरुप तीन बाण दिए। इसके बाद से बर्बरिक तीन बाण धारी कहे जाने लगे। महाभारत के भयावह युद्ध में बर्बरीक ने साक्षी बनने की इच्छा प्रकट की और अपनी मां से युद्ध में जाने की अनुमति लेकर चल पड़े।

कृष्ण ने उस समय बर्बरीक की परीक्षा लेनी चाही और कहा कि तीन तीरों से युद्ध नहीं जीता जा सकता है। बर्बरीक ने तीनों तीरों का महत्व बताते हुए कहा कि पहला तीर निश्चित स्थानों पर निशान बनाएगा। दूसरा तीर उन स्थानों को तबाह कर सकता है। बर्बरीक को प्राप्त इस वरदान के कारण दोनों ही उन्हें अपने पक्ष में रखना चाहते थे और तब श्रीकृष्ण ने ब्राह्मण का रुप धारण करके बर्बरीक से उसका सिर मांगा। उनकी इस मांग से बर्बरीक ने ब्राह्मण को असली रुप में आने के लिए कहा। श्री कृष्ण ने प्रकट होकर कहा कि तुम सबसे वीर योद्धा हो और युद्ध में सबसे वीर को ही सर्वप्रथम बलि देनी होती है। इसके बाद बर्बरीक ने अपना सिर काटकर श्रीकृष्ण को दे दिया। इसके बाद भगवान कृष्ण ने उसे श्याम नाम से पुकारा जाने का वरदान दिया।