हिंदू धर्म में एकादशी का विशेष महत्व बताया गया है। एकादशी के दिन विष्णु जी की पूजा करने का विधान है। मालूम हो कि श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को आने वाली एकादशी को श्रावण पुत्रदा एकादशी कहा जाता है। कहते हैं कि इस एकादशी पर विधि पूर्वक व्रत रखने और पूजा करने से संतान की प्राप्ति होती है। ऐसी मान्यता है कि श्रावण पुत्रदा एकादशी का व्रत करने से संतान की सेहत अच्छी रहती है और वह दीर्घायु होता है। ऐसा भी कहा जाता है कि इस एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्ति को वाजपेयी यज्ञ के बराबर फल की प्राप्ति होती है। बता दें कि इस साल 22 अगस्त दिन बुधवार को श्रावण पुत्रदा एकादशी है।

व्रत कथा: श्री पद्मपुराण में श्रावण पुत्रदा एकादशी का उल्लेख मिलता है। इस कथा का संबंध द्वापर युग से हैं। इसके मुताबिक महिष्मतीपुरी का राजा महीजित बड़ा ही शांति एवं धर्म प्रिय था। इस राजा की एक ही समस्या था कि उसका कोई पुत्र नहीं था। राजा के शुभचिंतक यह समस्या लेकर महामुनि लोमेश के पास लेकर गए। मुनि जी ने बताया कि राजन पूर्व जन्म में एक अत्याचारी, धनहीन वैश्य थे। इसी एकादशी के दिन दोपहर के समय वे प्यास से व्याकुल होकर एक जलाशय पर पहुंचे। वहां पर उन्होंने गर्मी से पीड़ित एक प्यासी गाय को पानी पीते हुए देखा। इसके बाद उन्होंने उस गाय को हटा दिया और स्वयं पानी पीने लगे।

मुनि ने बताया कि राजा का ऐसा करना धर्म के विपरीत था। हालांकि अपने पूर्व जन्म के पुण्य कर्मों के फलस्वरूप वे अगले जन्म में राजा तो बन गए। लेकिन उस एक पाप के कारण आज तक संतान विहीन हैं। महामुनि ने इसका एक उपाय भी बताया। उन्होंने कहा कि राजा के सभी शुभचिंतक यदि श्रावण शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को विधि पूर्वक व्रत करें। और इसका पुण्य राजा को दे दें, तो निश्चय ही उन्हें संतान रत्न की प्राप्ति हो जाएगी। महामुनि की बात मानकर प्रजा के साथ राजा ने भी यह व्रत रखा। इसके कुछ समय बाद रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया। कहते हैं कि तभी से इस एकादशी को श्रावण पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है।