Premanand Maharaj on Periods In Sawan 2025: सावन का पावन महीना भगवान शिव की उपासना के लिए सबसे विशेष माना जाता है। इस माह के दौरान लाखों शिव भक्त मंदिरों में जलाभिषेक करते हैं, व्रत रखते हैं और तीर्थ स्थलों की यात्रा करते हैं। लेकिन कई बार धार्मिक यात्राओं के दौरान महिलाओं को मासिक धर्म शुरू हो जाता है। ऐसे में उनके मन में यह सवाल उठता है कि क्या ऐसी स्थिति में भगवान के दर्शन करना उचित होता है या नहीं? हाल ही में वृंदावन के प्रसिद्ध संत प्रेमानंद जी महाराज से एक महिला भक्त ने प्रश्न पूछा कि अगर हम कठिन यात्रा कर किसी तीर्थ पर पहुंचे और उसी समय पीरियड्स आ जाएं, तो क्या हम दर्शन कर सकते हैं? ऐसे में आइए जानते हैं इस विषय में प्रेमानंद जी महाराज क्या कहते हैं…

पीरियड्स में भगवान के दर्शन करना चाहिए या नहीं?

प्रेमानंद महाराज ने इस विषय पर बहुत सहज और स्पष्ट उत्तर दिया। उन्होंने कहा कि ‘ऐसे अवसर पर भगवान के दर्शन से वंचित नहीं होना चाहिए।’ महाराज जी ने समझाया कि मासिक धर्म महिलाओं के शरीर की एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, जिससे कोई अपराधबोध या शर्म महसूस नहीं करनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि तीर्थ यात्रा आसान नहीं होती। लोग समय, धन और परिश्रम लगाकर मंदिर तक पहुंचते हैं। ऐसे में अगर किसी को केवल शारीरिक स्थिति के कारण दर्शन से रोका जाए, तो यह और भी अधिक पीड़ा का कारण बन सकता है।

क्या है सही तरीका?

प्रेमानंद महाराज ने बताया कि यदि कोई महिला मासिक धर्म के दौरान तीर्थ स्थान पर हो, तो वह स्नान करके, प्रसाद से चंदन लगाकर और मन में भगवान का स्मरण करते हुए दूर से श्रद्धा भाव से दर्शन जरूर करे। उन्होंने यह भी समझाया कि ऐसे समय में मंदिर की शारीरिक सेवा न करें और न ही भगवान को स्पर्श करें। केवल मन की शुद्धता और श्रद्धा ही सबसे बड़ा पूजन है।

मासिक धर्म कोई दोष नहीं

प्रेमानंद महाराज ने कहा कि मासिक धर्म को लेकर समाज में जो गलत धारणाएं फैली हुई हैं, उन्हें अब दूर करना जरूरी है। उन्होंने कहा कि यह कोई गंदगी या पाप नहीं, बल्कि महिलाओं की शक्ति और सम्मान का प्रतीक है। उन्होंने एक पौराणिक कथा का जिक्र करते हुए बताया कि जब इंद्रदेव पर ब्रह्महत्या का दोष लगा, तो उस पाप को चार भागों में विभाजित किया गया, जिनमें से एक भाग स्त्रियों को मासिक धर्म के रूप में मिला। इसका अर्थ यह है कि नारी ने स्वयं त्रिभुवनपति इंद्र का पाप अपने ऊपर लेकर संसार को बचाया। यह त्याग का प्रतीक है, न कि शर्म का।

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