Shukra Pradosh Vrat 2019: प्रदोष व्रत पर भगवान शिव की आराधना कर उन्हें प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। हर दिन के हिसाब से अलग-अलग प्रदोष व्रत का विधान बताया गया है। जो कि हर महीने शुक्लपक्ष और कृष्णपक्ष की त्रयोदशी तिथि को पड़ती है। जब त्रयोदशी तिथि शुक्रवार को पड़ती है तो वह शुक्र प्रदोष व्रत के नाम से जानी जाती है। इसे भृगु वारा प्रदोष व्रत के अन्य नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत को करने से जीवन में नकारात्मक शक्ति का प्रवेश नहीं होता है और दाम्पत्य जीवन खुशहाल रहता है। इसके अलावा जो व्यक्ति सौभाग्य की कामना से शुक्र प्रदोष व्रत करते हैं उन्हें इसकी प्राप्ति भी संभव है।

शुक्र प्रदोष व्रत-तिथि और शुभ मुहूर्त

शुक्र प्रदोष व्रत की तिथि 11 अक्टूबर, शुक्रवार को है। पंचांग के मुताबिक व्रत-पूजा के लिए शुभ मुहूर्त संध्या 05 बजकर 52 मिनट से लेकर 08 बजकर 23 मिनट तक है। यानि शिव पूजन के लिए शुभ मुहूर्त की कुल अवधि 2 घंटे 31 मिनट है। इस शुभ मुहूर्त में शिव की पूजा करना अधिक फलदायी होगा।

शुक्र प्रदोष व्रत-विधि

जो लोग इस व्रत को रखना चाहते हैं या रखते आ रहे हैं या फिर पहली बार रखेंगे, उन्हें ब्रह्म मुहूर्त (सूर्योदय से डेढ़ घंटे पहले) में उठकर शौच, स्नान आदि से निवृत हो जाना चाहिए। इसके बाद भगवान शिव की पूरे मनोयोग से पूजा करनी चाहिए। ध्यान इस बात का रखना है कि पूरे दिन बिना अन्न ग्रहण किए मन में शिव का पंचाक्षरी मंत्र “ॐ नमः शिवाय” का जाप करते रहना चाहिए। इसके बाद त्रयोदशी तिथि (11अक्टूबर) को शाम 05 बजकर 52 मिनट से 08 बजकर 23 मिनट के बीच शिव-पूजन करना चाहिए।

शिव पूजा के लिए घर या मंदिर का स्थान बेहतर माना गया है। व्रत के दौरान केवल सुबह के समय दूध ग्रहण किया जा सकता है। प्रदोष व्रत में भगवान शिव की पूजा के बाद फल खाया जा सकता है। व्रत की पूरी अवधि में नमक खाने से परहेज करना उत्तम माना गया है।

ऐसे करें प्रदोष व्रत का उद्यापन

शास्त्रों (कर्मकांड) के मुताबिक प्रदोष व्रत का उद्यापन त्रयोदशी तिथि को ही करना उचित माना गया है। इसके लिए व्रती को ये बात ध्यान रखना चाहिए कि 11 या 26 त्रयोदशी व्रत करने के बाद ही उद्यापन करना उचित माना गया है।