हिंदू धर्म में सर्व पितृ अमावस्या का विशेष महत्व है। पितृ अमावस्या हर साल आश्विन कृष्ण अमावस्या के दिन मनाई जाती है। इसको महालया अमावस्या भी कहते हैं। इस दिन पूर्वजों के निमित्त तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध कर्म करने का विधान है। इस साल पितृ अमावस्या 25 सितंबर को पड़ रही है। भाद्रपद मास की पूर्णिमा से पितृ पक्ष आरंभ होते हैं और इसका समापन आश्विन मास की अमावस्या के दिन होता है। इस साल पितृ पक्ष 10 सितंबर से शुरू हो रहे हैं। आइए जानते हैं तिथि, महत्व और तर्पण विधि…

जानिए पितृ अमावस्या तिथि

वैदिक पंचांग के मुताबिक सर्वपितृ अमावस्या इस बार 25 सितंबर को पड़ रही है। आश्विन कृष्ण अमावस्या तिथि की शुरुआत 25 सितंबर को सुबह 3 बजकर 11 मिनट से आरंभ हो रही है। वहीं अमावस्या तिथि की समाप्ति 26 सितंबर को सुबह 3 बजकर 22 मिनट पर होगी।

जानिए तर्पण करने की विधि

आप वैसे तो अपने पूर्वजों का नाम लेकर पितृ पक्ष में रोज तर्पण कर सकते हैं। लेकिन सर्व पितृ अमावस्या पर तर्पण करने का विशेष महत्व शास्त्रों में बताया गया है। अगर आप सही विधि से तर्पण नहीं कर सकते को आप किसी योग्य ब्राह्राण से तर्पण करा सकते हैं। इसमें हाथ में कुशा की एक अंगूठी बनाई जाती है। साथ ही तर्पण करने वाले व्यक्ति का मुख दक्षिण दिशा में होना चाहिए। अगर आप अपने पिता का तर्पण कर रहे हैं तो सबसे पहले अपने गोत्र का नाम लेकर बोलें, गोत्रे अस्मतपिता (पिता का नाम) वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः। इस मंत्र को बोलकर गंगा जल या अन्य जल में दूध, तिल और जौ मिलकर 3 बार पिता को जलांजलि दें। ऐसा करने से आपको पित्रों का आशीर्वाद प्राप्त होगा। साथ ही घर में सुख- समृद्धि का वास रहेगा।

जानिए महत्व

पितृ पक्ष के आखिरी दिन सर्व पितृ अमावस्या होती है और इसे पितृ विसर्जनी अमावस्या भी कहा जाता है। इस दिन वह लोग खासकर पूजा कराते हैं। जिनकी कुंडली में पितृ दोष होता है। पितृ दोष होने से विवाह में परेशानी, संतान होने में बाधा, करियर में परेशानी होती है। इसलिए इस दिन पित्रों मतलब अपने पूर्वजों के नाम से पिंड दान और तर्पण किया जाता है। जिससे वह प्रसन्न होकर आशीर्वाद प्रदान करें।