Shraddh Mein Kusha Til Akshat Jau Ka Mahatva: सनातन परंपरा में हर इंसान पर तीन तरह के ऋण बताए गए हैं। पहला – देव ऋण, दूसरा ऋषि ऋण और तीसरा पितृ ऋण। देव ऋण का मतलब है देवताओं का आभार, क्योंकि उनसे हमें जीवन और ऊर्जा मिलती है। ऋषि ऋण गुरु, संत और आचार्यों से प्राप्त ज्ञान और मार्गदर्शन के लिए है। जबकि सबसे महत्वपूर्ण और कठिन है पितृ ऋण, यानी अपने माता-पिता और पूर्वजों के पालन-पोषण और उनके अहसान का कर्ज। यही कारण है कि पितरों की आत्मा को तृप्त करने और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए श्राद्ध और तर्पण का विधान बनाया गया है।

श्राद्ध से जुड़ी मान्यता

सनातन धर्म कहता है कि पूर्वजों का सम्मान और स्मरण करना इंसान का कर्तव्य है। श्राद्ध पक्ष यानी पितृ पक्ष इसी का प्रतीक है। माना जाता है कि पूर्वजों के आशीर्वाद के बिना जीवन में तरक्की और सुख-शांति संभव नहीं है। इसलिए तर्पण, पिंडदान और अर्पण के जरिए सात पीढ़ियों तक के पितरों को याद किया जाता है।

तर्पण में इस्तेमाल होने वाले चार प्रमुख तत्व

कुशा का महत्व

श्राद्ध में कुशा सबसे जरूरी मानी जाती है। मान्यता है कि विष्णु भगवान के वराह अवतार से गिरे रोएं ही कुशा बने। कुशा से पूर्वजों तक जल और अर्पण पहुंचता है और उन्हें अमृत तत्व मिलता है। यह शुद्धता और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है।

तिल का महत्व

श्राद्ध में तिल का प्रयोग विशेष रूप से किया जाता है। तिल की उत्पत्ति विष्णु जी से हुई मानी जाती है। कहा जाता है कि तिल से पिंडदान करने से आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है। काला तिल शनि, राहु और केतु जैसे ग्रहों के अशुभ प्रभाव को भी शांत करता है।

अक्षत (चावल) का महत्व

अक्षत यानी चावल जीवन और धन-धान्य का प्रतीक है। पूर्वजों को अक्षत अर्पण करने से घर में सुख-शांति बनी रहती है और आर्थिक परेशानियां दूर होती हैं। माना जाता है कि पितर चावल पाकर प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं।

जौ का महत्व

जौ को महादान माना गया है। यह वैभव और समृद्धि का प्रतीक है। ऐसा कहा जाता है कि श्राद्ध में जौ अर्पित करने से पितरों की अपूर्ण इच्छाएं पूरी होती हैं और नकारात्मक शक्तियां दूर रहती हैं।

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