Sirf Gaya Hi Nahi, In Pavitra Sthalon Par Bhi Karein Shraddh: हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का बहुत बड़ा महत्व बताया गया है। मान्यता है कि इस समय श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने से पूर्वज प्रसन्न होते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसलिए हर साल पितृ पक्ष में पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध कर्म किए जाते हैं। बता दें कि इस साल पितृ पक्ष की शुरुआत 7 सितंबर से हो चुकी है। भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर अमावस्या तक चलने वाली यह अवधि पूर्वजों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए समर्पित होती है। वहीं, पितृ पक्ष का नाम आते ही सबसे पहले गयाजी की चर्चा होती है। बिहार के गया में हर साल इस दौरान भव्य मेला लगता है। देश-विदेश से श्रद्धालु यहां पहुंचकर अपने पितरों का पिंडदान करते हैं। मान्यता है कि गयाजी में पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और उनकी आत्मा तृप्त होती है। लेकिन अगर किसी कारणवश आप गया जी नहीं पहुंच पाते हैं तो ऐसे में आप इन जगहों पर भी श्राद्ध कर सकते हैं। तो चलिए जानते हैं उन स्थानों के बारे में…
घर पर भी कर सकते हैं श्राद्ध
अगर कोई व्यक्ति किसी कारणवश गयाजी नहीं जा पाता है, तो ऐसे में घर की दक्षिण दिशा में भी श्राद्ध किया जा सकता है। लेकिन इसके लिए किसी विद्वान पंडित अवश्य बुलाएं। बता दें कि घर में दक्षिण दिशा को पितरों की दिशा माना गया है।
पवित्र नदियों में तर्पण
श्राद्ध और तर्पण करने के लिए गंगा तट या किसी भी पवित्र नदी के तट पर जाना भी शुभ माना जाता है। मान्यता है कि पवित्र नदी के किनारे श्राद्ध करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।
हरिद्वार का महत्व
हरिद्वार को ‘हरि का द्वार’ कहा जाता है। यहां गंगा नदी में स्नान और श्राद्ध का विशेष महत्व है। कहा जाता है कि गंगा तट पर बैठकर पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
काशी यानी वाराणसी
काशी भगवान शिव की नगरी है और इसे मोक्षदायिनी भी कहा जाता है। यहां गंगा घाटों पर श्राद्ध करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। ऐसा माना जाता है कि वाराणसी में पिंडदान करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है और पितरों को स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
प्रयागराज संगम
प्रयागराज को ‘तीर्थराज’ कहा जाता है। यहां गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम है। ऐसे में मान्यता है कि संगम तट पर श्राद्ध करने से पापों से मुक्ति मिलती है और पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।
बद्रीनाथ
उत्तराखंड स्थित बद्रीनाथ धाम में ‘ब्रह्मकपाल’ नाम का घाट है। यहां पिंडदान करने का विशेष महत्व है। मान्यता है कि बद्रीनाथ में एक बार पिंडदान कर देने के बाद दोबारा पिंडदान करने की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
रामेश्वरम
तमिलनाडु का रामेश्वरम ‘दक्षिण का काशी’ कहलाता है। यहां समुद्र स्नान और श्राद्ध करने से पितरों को मोक्ष मिलता है। कहा जाता है कि भगवान राम ने भी यहीं अपने पूर्वजों का श्राद्ध किया था।
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