How to Remove Pitru Dosha: हिंदू धर्म में पितरों का विशेष महत्व माना गया है। धार्मिक मान्यता है कि हमारे पूर्वजों के आशीर्वाद से ही जीवन में सुख, समृद्धि और उन्नति मिलती है। लेकिन जब किसी कारण से पितृ नाराज हो जाते हैं, तो व्यक्ति के जीवन में कठिनाइयां बढ़ जाती हैं। इसे पितृदोष कहा जाता है, जिसे बेहद गंभीर माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि पितृदोष लगने से व्यक्ति को जीवन में कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जब कुंडली में यह दोष लगता है तो व्यक्ति के काम बनते-बनते बिगड़ने लगते हैं। ऐसे में आइए जानते हैं कि पितृदोष कब और क्यों लगता है और अगर किसी को गलती से पितृदोष लग जाए तो इससे बचने के लिए क्या करना चाहिए।
पितृदोष कब और क्यों लगता है?
हिंदू मान्यता के अनुसार पितरों की उपेक्षा, श्राद्ध न करना या तर्पण में लापरवाही बरतना इस दोष का मुख्य कारण होता है। ऐसा कहा जाता है कि जब कोई व्यक्ति अपने पितरों का श्राद्ध समय पर और विधि-विधान से नहीं करता है, तो पूर्वज नाराज हो जाते हैं। इस दोष के होने पर घर-परिवार में कलह, आर्थिक तंगी और अशांति बनी रहती है। व्यक्ति के शुभ एवं मांगलिक कार्यों जैसे विवाह आदि में बाधा आती है। साथ ही, दोष से पीड़ित व्यक्ति मानसिक रूप से चिंतित और असफलताओं से घिरा रहता है।
पितृदोष दूर करने के उपाय
- धार्मिक मान्यता के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति को किसी भी कारण से पितृदोष लग जाए, तो इससे दूर करने के लिए उस व्यक्ति को पवित्र स्थलों पर त्रिपिंडी श्राद्ध एवं तर्पण करना चाहिए।
- ऐसा कहा जाता है कि पितृपक्ष के दौरान विधि-विधान से श्राद्ध और तर्पण करने से पूर्वज प्रसन्न होते हैं और दोष का प्रभाव कम होता है।
- हिंदू मान्यता के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति को किसी भी कारण से पितृदोष लग जाए, तो उसे विधि-विधान से नारायणबलि करवाना चाहिए।
- कुंडली में पितृदोष होने पर हर अमावस्या के दिन पितरों के नाम से तर्पण व दान करना चाहिए।
- अगर आप पितृदोष से बचना चाहते हैं तो अपने माता-पिता या बुजुर्गों की सेवा करना चाहिए।
पितृदोष से बचने के लिए क्या न करें?
- पितृदोष से बचने के लिए व्यक्ति को कभी भीपितरों का अनादर नहीं करना चाहिए और न ही उनके कार्यों की आलोचना करना चाहिए।
- श्राद्ध करते समय अभिमान या क्रोध से बचें, इसे पूरी श्रद्धा से करें।
- पितृपक्ष या पितरों से जुड़ी तिथि पर तामसिक भोजन जैसे मांस-मदिरा का सेवन न करें।
- इस दौरान घर आए अतिथि, गाय, कुत्ते या पक्षियों का अपमान न करें, बल्कि उन्हें यथासंभव भोजन कराएं।
- मृत परिजन की अधूरी इच्छाओं या उधार को अनदेखा न करें, बल्कि अपनी क्षमता अनुसार उसे पूरा करने का प्रयास करें।
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