वैदिक ज्योतिष अनुसार कुंडली में कुछ ऐसे अशुभ दोष विद्यमान होते हैं। जिनकी वजह से मनुष्य को जीवन में कामयाबी नहीं मिल पाती। आपको बता दें कि ऐसा ही एक दोष होता है पितृ दोष। जिसके कारण मनुष्य को भाग्य का साथ नहीं मिलता है। साथ ही जिंदगी भर उसे संघर्ष करना पड़ता है। करियर और व्यापार में बार- बार असफलता हाथ लगती है। 

इस साल पितृ पक्ष 10 सितंबर से शुरू हो गए हैं और 25 सितंबर तक चलेंगे। आपको बात दें कि पितृ दोष शांति के लिए शास्त्रों में पितृ पक्ष के 15 दिनों का उल्लेख मिलता है। जिसमें तर्पण और पिंड दान करके अपने पूर्वजों को प्रसन्न किया जा सकता है। लेकिन ज्योतिष के अनुसार भगवत गीता के सातवें अध्याय का पाठ करके भी पितृ ऋण से मुक्ति पाई जा सकती है। आइए जानते हैं इस अध्याय का महत्व और पाठ करने का नियम…

ऐसे बनता है कुंडली में पितृ दोष

  • वैदिक ज्योतिष अनुसार अगर कुंडली में राहु ग्रह अगर केंद्र स्थानों या त्रिकोण में हो और उनकी राशि नीच यानि की नकारात्मक स्थित हों तो पितृ दोष का निर्माण होता है।
  • अगर राहु का सम्बन्ध कुंडली में सूर्य और चंद्र ग्रह से हो, तो ऐसी कुंडली में पितृ दोष बनता है। 
  • वहीं  अगर कुंडली में राहु का सम्बन्ध शनि या बृहस्पति से हो, तो भी कुंडली में पितृ दोष बनता है।
  • राहु अगर द्वितीय या अष्टम भाव में हो तो भी ऐसी कुंडली में पितृ दोष का निर्माण होता है। नवम स्थान में अगर नीच के राहु विराजमान हैं तो भी पितृ दोष लगता है।

ये होते हैं पितृ दोष के लक्षण

पितृ दोष हो तो इंसान को जीवन में कई समस्याएं आती हैं। व्याापार में घाटा होता है। साथ ही कोई असाध्य रोग हो जाना। कई बार बिजनेस का बदलना। संतान होने या संतान के भविष्य की चिंता हमेशा रहना, कोई भी प्लानिंग का सफल ना होना, ऐसे कई संकेत हैं जो इशारा करते हैं कि कुंडली में पितृ दोष हो सकता है।

सातवें अध्याय का महत्व

महाभारत शुरू होने से पहले भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का का ज्ञान दिया था। इस गीता का 7वां अध्याय पितृ मुक्ति और मोक्ष से जुड़ा है। आपको बता दें कि ज्योतिष के अनुसार पितृ पक्ष में गीता के सातवें अध्याय का पाठ करने से पितृ दोष से मुक्ति मिल सकती है। इस अध्याय का नाम है ज्ञानविज्ञान योग। इस अध्याय का पाठ श्राद्ध में जितना हो सके, उतना करने का प्रयास करें। अगर इस अध्याय का पाठ खुद नहीं कर पाएं तो किसी योग्य ब्राह्माण से करा सकते हैं।