Pitru Paksha 2018, Shradh 2018 Start Date in India, Puja Mantra Vidhi: हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का खास महत्व है। इस दौरान लोग अपने पितरों को याद करते हैं। पितृ पक्ष में पितरों का श्राद्ध करने का भी विधान है। मान्यता है कि श्राद्ध करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि पितृ पक्ष में श्राद्ध करने की परंपरा कब से शुरू हुई। यदि नहीं तो आज हम आपको इस बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं। पितृ पक्ष का उल्लेख महाभारत काल में मिलता है। बताते हैं कि भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को श्राद्ध के बारे में काफी कुछ बताया था। महाभारत के मुताबिक, महातप्सवी अत्रि ने सर्वप्रथम महर्षि निमि को श्राद्ध का उपदेश दिया था। और महर्षि निमि ने अपने पितरों के लिए श्राद्ध करना शुरू किया। इसके बाद से अन्य मुनियों ने भी श्राद्ध करना आरंभ कर दिया।
ऐसा बताते हैं कि मुनि अपने पितरों को श्राद्ध में अन्न देते थे। इस अन्न से उनके पूर्वज और देवता तृप्त तो हो गए लेकिन लगातार श्राद्ध को भोजन पाने से उन्हें अजीर्ण रोग हो गया। इस रोग से निजात पाने के लिए वे लोग ब्रम्हा जी के पास गए। ब्रम्हा जी ने बताया कि अग्निदेव ही उनका कल्याण कर सकते हैं। इस पर मुनि और देवगण अग्निदेव के पास पहुंचे। अग्निदेव ने कहा कि अब वे भी उनके साथ श्राद्ध में भोजन करेंगे। इसी वजह से श्राद्ध का भोजन सबसे पहले अग्निदेव को दिया जाता है।
मालूम हो कि श्राद्ध में पिंडदान करने का भी विधान है। शास्त्रों में कहा गया है कि हवन में पितरों को जो पिंडदान किया जाता है, उसे ब्रम्हाराक्षस भी दूषित नहीं करते। इसकी वजह श्राद्ध में अग्निदेव की उपस्थिति को माना गया है। कहते हैं कि अग्निदेव को देखकर राक्षस भी दूर भाग जाते हैं। ध्यान रहे कि अग्नि को बहुत ही पवित्र माना गया है। साथ ही अग्नि अन्य दूसरी चीजों को भी पवित्र कर देती है। इससे देवता और पितरों को श्राद्ध में पवित्र भोजन मिलता है।