सामान्य अवधारणा उल्लू का लक्ष्मी का वाहन मानती है। पर भारतीय दर्शन में लक्ष्मी के एक नहीं, तीन वाहन कहे जाते हैं, उलूक, गज और गरुण। लक्ष्मी का वाहन उल्लू पक्षी न होकर एक विशिष्ट क्षमता और विलक्षण दृष्टिकोण का प्रतीक है। उलूक नकारात्मक परिस्थितियों में सकारात्मक सोच का द्योतक है। वह भीड़ से हटकर विचार करने की शक्ति की तरफ इशारा करता है। अर्थात वह तब देखने की क्षमता रखता है जब सामान्य जन को नज़र नहीं आता। यह प्रवित्ति नितांत व्यापारिक है। उलूक निर्भयता व क्षमता का भी प्रतीक चिन्ह है।
गज पशु न होकर बुद्धिमत्ता व शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। वह शक्तिशाली परंतु विनम्र जीव है। वह इशारा करता है कि शक्ति सदैव विनम्रता में ही लिपटी हुई है। या यूं कहें कि वास्तविक रूप से ताक़तवर व्यक्ति सदैव विनम्र होता है। उसे अपनी शक्ति के प्रदर्शन की ज़रूरत नहीं होती। गरुण लक्ष्मी के पति का वाहन होने के कारण लक्ष्मी का वाहन कहा जाता है। पर यहां भी गरुण पक्षी न होकर अपनी दूरदृष्टि, एक लक्ष्य, अनुशासन, दृढ़ता और कुशलता का चिन्ह है। लक्ष्मी का अभिषेक करने वाले दो गजराज मनोयोग और श्रम की ओर इशारा करते हैं। अगर लक्ष्मी को व्यावहारिक रूप से समझें तो लक्ष्मी भौतिक संसाधन प्राप्ति की वह क्षमता हैं, जो दूरदृष्टि, अलग सोच, मनोयोग, संकल्प शक्ति, श्रम, अनुशासन, विनम्रता, उदारता और अभयता से ही प्राप्त होती है।
आवश्यकता है स्वयं के अन्दर परिवर्तन की। तंत्रशास्त्र की मान्यताएं भक्तिमार्ग से अलग है। तंत्रशास्त्र के सूत्र नीति से हटकर वैज्ञानिक हैं और हठयोग पर आधारित है। तंत्र यानी विज्ञान अपनी तकनीकी क्षमता से लक्ष्मी को और समस्त भौतिक वैभव को हासिल कर लेना चाहता है। तंत्रशास्त्र की पद्धति टेक्निकल है, वैज्ञानिक है। दीपावली का काल अपनें लक्ष्य सिद्धि का काल है, चेतना को चेतन से जोड़ने का काल है| स्वयं के उत्थान का काल है।

