Kojagara Lakshmi Vrat, Vidhi, Mantra, Katha Aarti 2019: कोजागरा लक्ष्मी व्रत आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को रखा जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक यह इस बार 13 अक्टूबर को रखा जाएगा। मिथिला में कोजागरा वाले दिन सूर्यास्त के समय लक्ष्मी पूजा का विधान है। मिथिला में ऐसी मान्यता है कि कोजागरा पूजन से नवविवाहित को लक्ष्मी का आशीर्वाद मिलता है। कोजागरा लक्ष्मी व्रत रखने वालों को शाम के वक्त माता लक्ष्मी-गणेश की पूजा करने बाद भोजन ग्रहण करना चाहिए।
कोजागरा लक्ष्मी व्रत पूजा विधि
सबसे पहले पूजा स्थल को साफ कर गंगाजल से शुद्ध कर लें। इसके बाद पूजा चौकी को स्वच्छ कर उस पर लाल कपड़ा बिछाकर लक्ष्मी जी प्रतिमा को स्थापित करें। मूर्ति स्थापना के बाद संकल्प लेकर लक्ष्मी-गणेश सहित नवग्रह देवता का आवाहन करें। इसके बाद गणेश और लक्ष्मी जी की विधिवत पूजा करें।
फिर कलश की पूजा करें। इसके बाद एक-एक करके पूजन सामग्री माता लक्ष्मी को अर्पित करें। माँ लक्ष्मी की विधिवत पूजा के बाद हाथ रक्षा सूत्र बांधें। रक्षा सूत्र के लिए मौली का इस्तेमाल करें। पूजन के बाद इस मंत्र को बोलकर देवी लक्ष्मी से क्षमा प्रार्थना करें।
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि।।1।।
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे।।।2।।
मंत्र
1. ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीभयो नमः॥
2. ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम:॥
3. ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ॐ॥
-लक्ष्मी पूजा में मंत्रों के उच्चारण पर विशेष शयन देना आवश्यक माना गया है।
कथा
लक्ष्मी जी के बारे में पुराणों में तो बहुत सारी कथाओं का वर्णन मिलता है। जिसमें लक्ष्मी और विष्णु से संबंधित कथा सबसे प्रचलित और लोकप्रिय है। कथा के मुताबिक उसके मुताबिक पौराणिक ग्रंथों में जो कथा मिलती है उसके अनुसार देवी लक्ष्मी एक बार देवताओं से रूठकर समुद्र में विलीन हो गईं। लक्ष्मी के समुद्र में विलीन होने पर सभी देवतागण लक्ष्मी विहीन यानि धन विहीन हो गए। अपनी दयनीय स्थिति को देखकर भगवान इन्द्र ने लक्ष्मी को मनाने के लिए उनके निमित्त व्रत-उपवास रखा। देवता इन्द्र को देखते हुए अन्य सभी देवता गण भी उपवास रखा। देवताओं की तरह असुरों ने भी उपवास रखा। यह देखकर लक्ष्मी जी अपने भक्तों की पुकार सुनकर व्रत खत्म होने के बाद फिर से उत्पन्न हुईं। इसके बाद लक्ष्मी का विवाह भगवान विष्णु से हुआ। जिसके बाद सभी देवता लक्ष्मी की कृपा पाकर प्रसन्न हुए।
आरती
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निशिदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता।
सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
दुर्गा रुप निरंजनी, सुख सम्पत्ति दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
जिस घर में तुम रहतीं, सब सद्गुण आता।
सब सम्भव हो जाता, मन नहीं घबराता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता।
खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
शुभ-गुण मन्दिर सुन्दर, क्षीरोदधि-जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥
महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाता।
उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता॥
ॐ जय लक्ष्मी माता॥