Ganesh Chaturthi 2020: श्री गणेश कहीं बाहर नही, सिर्फ़ हमारे अंतर्मन मे ही विराजते हैं। हमारे मूलाधार चक्र पर ही उनका स्थाई आवास है। मूलाधार चक्र हमारे स्थूल शरीर का प्रथम चक्र माना जाता है। यही वो चक्र है, जो यदि ना सक्रिय हुआ तो आज्ञान चक्र पर अपनी जीवात्मा का बोध मुमकिन नही है। ज्ञानी ध्यानी गणपति चक्र यानि मूलाधार चक्र के जागरण को ही कुण्डलिनी जागरण के नाम से पहचानते हैं। विनायक उपासना दरअसल स्व जागरण की एक तकनीकी प्रक्रिया है। ढोल नगाड़ों से जुदा और बाहरी क्रियाकलाप से इतर अपनी समस्त इंद्रियों पर नियंत्रण करके ध्यान के माध्यम से अपने अंदर ईश्वरीय तत्व का परिचय प्राप्त करना और मोक्ष प्राप्ति की अग्रसर होना ही वास्तविक गणेश पूजन है।
सदगुरुश्री स्वामी आनन्द जी कहते हैं कि कालांतर में जब हमसे हमारा बोध खो गया, हम कर्मों के फल को विस्मृत करके भौतिकता में अंधे होकर उलटे कर्मों के ऋण जाल में फँस कर छटपटाने लगे, हमारे पूर्व कर्मों के फलों ने जब हमारे जीवन को अभाव ग्रस्त कर दिया, तब हमारे ऋषि मुनियों ने हमें उसका समाधान दिया और हमें गणपति के कर्मकांडीय पूजन से परिचित कराया।
गणेश तंत्र का महत्व: पूर्व के नकारात्मक कर्म जनित दुःख, दारिद्रय, अभाव व कष्टों से मुक्ति या इनसे संघर्ष हेतु शक्ति प्राप्त करने के लिए, शारदातिलकम, मंत्र महोदधि, महामंत्र महार्णव सहित तंत्र शास्त्र के कई प्राचीन ग्रंथों के गणेश तंत्र में भाद्रपाद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से चतुर्दशी तक यानि दस दिनों तक गणपति का विग्रह स्थापित करके उस पर ध्यान केंद्रित कर उपासना का विशेष उल्लेख प्राप्त होता है।
गणेश तंत्र के अनुसार भाद्रपद की चतुर्थी को अपने अंगुष्ठ आकार के गणपति की प्रतिमा का निर्माण करके उन्हे अर्पित विधि विधान स्थापित करके, उनका पँचोपचार पूजन करके उनके समक्ष ध्यानस्थ होकर ‘मंत्र जाप’ करना आत्मशक्ति के बोध की अनेकानेक तकनीक में से एक है।
गणपति तंत्र कहता है कि अगर हमने दूसरों की आलोचना और निंदा करके यदि अपने यश, कीर्ति, मान और प्रतिष्ठा का नाश करके स्वयं को शत्रुओं से घेर लिया हो, और बाह्य तथा आंतरिक दुश्मनों ने जीवन का बेड़ा गर्क कर दिया हो, तो भाद्र पद की चतुर्थी को अंगुष्ठ आकर के हल्दी के गणपति की स्थापना उसके समक्ष चतुर्दशी तक “ग्लौं” बीज कम से कम सवा लाख (कलयुग में चार गुना ज़्यादा यानि कम से कम पाँच लाख) जाप किया जाए तो हमें अपनें आंतरिक व बाह्य शत्रुओं पर विजय प्राप्ति में सहायता मिलती है.
घर पर बनाएं गणेश जी की मूर्ति: गणेश प्रतिमा का निर्माण यथासंभव स्वयं करें, या कराएँ, जिसका आकार अंगुष्ठ यानि अंगूठे से लेकर हथेली अर्थात् मध्यमा अंगुली से मणिबंध तक के माप का हो। विशेष परिस्थितियों में भी इसका आकार एक हाथ जितना, यानि मध्यमा अंगुली से लेकर कोहनी तक, हो सकता है। इसके रंगों के कई विवरण मिलते हैं, पर कामना पूर्ति के लिए रक्त वर्ण यानि लाल रंग की प्रतिमा का उल्लेख ग्रंथों में मिलता है। सद्गुरु कहते हैं कि अष्ट द्रव्य यानि मोदक, चिउड़ा, लावा, सत्तू, गन्ने का टुकड़ा, नारियल, शुद्ध तिल और पके हुए केले को विघ्नेश्वर का नैवेद्य माना गया है।