हिंदू धर्म में देवी-देवताओं के पूजन में खुशबु से भरे फूलों का महत्व माना जाता है। भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए अधिक मेहनत की आवश्यकता नहीं होती है। ये ऐसे देव हैं जो अपने भक्तों से बहुत ही जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। कहा जाता है कि ये जितना जल्दी प्रसन्न होते हैं उतना ही तेज इनका क्रोध भी है। इसी के साथ जुड़ी हुई मान्यताओं के अनुसार माना जाता है कि शिवजी की पूजा में केवड़े के फूलों का इस्तेमाल करना वर्जित है। भगवान शिव के पूजन में कई वस्तुओं का इस्तेमाल अशुभ माना जाता है। केवड़े के फूलों के इस्तेमाल से शिव क्यों रुष्ट हो जाते हैं, इससे जुड़ी कथा पुराणों में उल्लेखित है। कथा के अनुसार ब्रह्माजी और भगवान विष्णु में सबसे श्रेष्ठ कौन है, इस बात को लेकर विवाद हो गया था। इस बात का हल निकालने के लिए भगवान शिव ने ज्योतिर्मय लिंग रुप धारण किया और कहा कि जो इसके शुरुआत और अंत का पता लगाएगा वही सबसे श्रेष्ठ माना जाएगा। अंत का छोर नहीं मिलने के कारण भगवान विष्णु वापस लौट आए और शिव जी से माफी मांगने लगे और कहा कि आप ही आदि और अंत हैं।

ब्रह्मा जी ने अपने घमंड के कारण हार नहीं मानी और लौट कर कहा कि उन्हें लिंग का छोर मिल गया है। ब्रह्माजी ने अपनी बात को सच्चा साबित करने के लिए केतकी यानी केवड़े के फूल को साक्षी बताया। केतकी के फूल ने भी ब्रह्मा जी का साथ दिया। ब्रह्मा जी के इस झूठ को भगवान शिव जानते थे उन्होनें ब्रह्मा जी को अपनी सच्चाई कहने के लिए कहा। तब ब्रह्मा जी का घमंड चूर हुआ। झूठ बोलने के कारण भगवान शिव ने उन्हें श्राप दिया कि सभी देवताओं की पूजा होगी लेकिन इस सृष्टि का निर्माण करने के बाद भी आपको सम्पूर्ण सम्मान की प्राप्ति नहीं मिलेगी।

ब्रह्मा जी के झूठ में केवड़े के फूल ने उनका साथ दिया था, इस कारण से भगवान शिव ने उसे श्राप दिया कि जब-जब मेरी पूजा होगी, किसी भी रुप में तेरा इस्तेमाल नहीं होगा। सुंदर और खुशबूदार होने के बाद भी जो तेरा इस्तेमाल में मेरी पूजा में करेगा, उसकी पूजा विफल हो जाएगी। इसी कारण से भगवान शिव की पूजा में केवड़े यानी केतकी के फूल का इस्तेमाल वर्जित माना जाता है। ब्रह्मा जी और भगवान विष्णु को उनकी गलती का अहसास हुआ और उन्होनें भगवान शिव से माफी मांगी और उनकी स्तुति का पाठ किया।