Navratri 2021 Puja Vidhi, Samagri, Mantra, Procedure: आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पहली तिथि से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत होती है, जिसमें पूरे 9 दिनों तक मां दुर्गा के दिव्य रूपों की उपासना की जाती है। हालांकि इस साल नवरात्र महज 8 दिन तक ही रहेंगे, जो 7 अक्टूबर से शुरू होकर 14 अक्टूबर को समाप्त हो जाएंगे। शरद ऋतु में पड़ने वाली नवरात्रि को मुख्य नवरात्र माना जाता है। इस दौरान देशभर में धूम रहती है, खासतौर पर बंगाल और गुजरात जैसे राज्यों में इस त्योहार की सबसे अधिक रौनक देखने को मिलती है। जहां बंगला में दुर्गा पूजा के लिए खूबसूरत और आकर्षक पंडाल लगाए जाते हैं। वहीं गुजरात में जगह-जगह पर गरबा का आयोजन किया जाता है।
कलश स्थापना का समय: नवरात्रि के इस त्योहार में कुछ लोग अपने घरों माता की चौकी लगाकर अखंड ज्योत जलाते हैं। नवरात्रि के पहले दिन प्रात:काल देवी दुर्गा की मूर्ति और कलश की स्थापना की जाती हैं। मुहूर्त के अनुसार कलश की स्थापना करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। ज्योतिषाचार्यों की मानें तो इसक बार 7 अक्टूबर को सुबह 6 बजकर 15 मिनट से शुभ मुहूर्त शुरू होगा, जो 7 बजकर 07 मिनट तक रहेगा।
मां के पहले स्वरूप शैलपुत्री की पूजा विधि: नवरात्रि के दिन सुबह उठकर नित्य कर्म से निवृत्त होकर साफ कपड़े पहन लें। फिर पूरे घर में गंगा जल का छिड़काव करें। कलश स्थापना करके मां दुर्गा की पूजा शुरू करें और व्रत रखने का संकल्प लें। इसके बाद देवी दुर्गा के पहले स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा करें। माता शैलपुत्री को लाल फूल, सिंदुर, अक्षत और धूप आदि चढ़ाएं। इसके बाद शैलपुत्री देवी के मंत्रों का उच्चारण करें।
फिर दुर्गा चालीसा का पाठ करें और अंतर में घी के दीपक से आरती करें। मां शैलपुत्री को सफेद रंग काफी प्रिय है, आप चाहें तो उन्हें सफेद रंग की बर्फी का भी भोग लगा सकते हैं।
क्यों मनाया जाता है नवरात्रि का त्योहार: हिंदू धर्म में नवरात्रि के त्योहार से जुड़ी दो प्रमुख कथाएं प्रचलित हैं। पहली कथा के अनुसार महिषासुर नामक राक्षस ने भगवान ब्रह्मा से वरदान मांगा था कि देव, दानव या फिर धरती पर रहने वाला कोई भी मनुष्य उसका वध ना कर सके। ब्रह्मा जी का आशीर्वाद पाने के बाद राक्षस ने तीनों लोगों में उत्पात मचाना शुरू कर दिया। जिसके बाद महिषासुर के आतंक से त्रस्त आकर देवताओं ने देवी दुर्गा का आवाहन किया। 9 दिनों तक मां दुर्गा और महिषासुर के बीच भीषण युद्ध चला था। दसवें दिन मां दुर्गा ने भयानक राक्षस महिषासुर का वध कर दिया।
दूसरी कथा के अनुसार भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई करने से पहले मां दुर्गा की आराधना की थी। भगवान राम की भक्ति से प्रसन्न होकर देवी दुर्गा ने उन्हें जीत का आशीर्वाद दिया, जिसके बाद राम जी ने दसवें दिन रावण को हराकर लंका पर विजय प्राप्त की थी। इसलिए नवरात्रि की दसवें दिन ‘विजयदशमी’ यानी दशहरा का त्योहार मनाया जाता है।
ब्रह्म मुहूर्त- 4:39 AM से 5:28 AM
अभिजीत मुहूर्त- 11:45 AM से 12: 32 PM
गोधूलि मुहूर्त- 5:58 PM से 6:12 PM
अमृत काल- 3:23 PM से 4:50 AM
प्रात: संध्या- 5:04 AM से 6:17 AM
विजय मुहूर्त- 2:06 PM से 2:53 PM
सायाह्ग संध्या- 6:00 PM से 7:14 PM
निशिता मुहूर्त- 11:44 PM से 12:34 AM
उदया तिथि पर आरंभ होंगी शारदीय नवरात्रि
शास्त्रों के अनुसार कोई भी व्रत एवं त्योहार उदया तिथि (सूर्य उदय की तिथि) में ही मनाने का विशेष महत्व होता है। इसलिए 07 अक्टूबर को प्रतिपदा तिथि में सूर्योदय के साथ शारदीय नवरात्रि का आरंभ होगा। नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना के साथ मां दुर्गा के शैलपुत्री स्वरूप की पूजा होगी।
दो तिथियां एक साथ
नवरात्रि में चतुर्थी तिथि का क्षय होने से शारदीय नवरात्रि आठ दिन की होगी। इस तरह तृतीया व चतुर्थी तिथि: – 9 अक्टूबर 2021, शनिवार को होगी।
कब होगा पारण
नवरात्र के इन व्रत का पारण दशमी तिथि को होगा। ये 15 अक्टूबर को होगा। इसी दिन दशहरा यानी विजयदशमी का पर्व भी मनाया जाएगा।
अलग -अलग रंग के कपड़ा पहनने का है विधान
नवरात्र के नौ दिनों में अलग अलग रंग पहनने का विधान है। पहले दिन घटस्थापना के समय पीले रंग को शुभ माना गया है।
नवरात्रि की महिषासुर वध की कथा
नवरात्र के अंतिम दिन मां दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था। माना जाता है कि उसके वध के लिए ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने अपने तेज प्रकाश से मां दुर्गा को जन्म दिया था।
घोड़े पर आ रहीं माता, हाथी पर करेंगी प्रस्थान
ग्रह नक्षत्रों की दशा और मुहूर्त के अनुसार कई विद्वानों का मत है कि इस बार शारदीय नवरात्र में मां दुर्गा के घोड़े पर आगमन के योग हैं, जो सामान्य फलदायक होता है, लेकिन दशमी शुक्रवार के दिन देवी का प्रस्थान नवरात्र के बाद हाथी पर होगा, जोकि शुभ फलदायक होगा। इसे नई स्फूर्ति, नव चेतना का संचार और सुख-समृद्धि देने वाला माना गया है।
महिषासुर नामक राक्षस ने भगवान ब्रह्मा से वरदान मांगा था कि देव, दानव या फिर धरती पर रहने वाला कोई भी मनुष्य उसका वध ना कर सके। ब्रह्मा जी का आशीर्वाद पाने के बाद राक्षस ने तीनों लोगों में उत्पात मचाना शुरू कर दिया। जिसके बाद महिषासुर के आतंक से त्रस्त आकर देवताओं ने देवी दुर्गा का आवाहन किया। 9 दिनों तक मां दुर्गा और महिषासुर के बीच भीषण युद्ध चला था। दसवें दिन मां दुर्गा ने भयानक राक्षस महिषासुर का वध कर दिया।
नवग्रह को शांत करने या उनकी पीड़ा को दूर करने के लिए ‘ॐ नमो भास्कराय मम् सर्वग्रहाणां पीड़ा नाशनं कुरु कुरु स्वाहा।’ मंत्र की 11 माला जप करें।
नवरात्रि कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 17 मिनट से सुबह 7 बजकर 07 मिनट तक रहेगा। इस मुहूर्त की कुल अवधि 50 मिनट की है। दूसरा मुहूर्त सुबह 11 बजकर 45 मिनट से दोपहर 12 बजकर 32 मिनट तक रहेगा। इस मुहूर्त की कुल अवधि 47 मिनट की है।
नवरात्रि के पहले माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है। नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है।
या देवी सर्वभूतेषु, शक्तिरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:
नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री की पूजा की जाती है। इस दिन मां शैलपुत्री को गुड़हल का फूल चढ़ाएं और गाय के घी का भोग लगाना चाहिए। इससे आरोग्य लाभ की प्राप्ति होती है।
नवरात्रि में व्रत रखने वालों को अन्न नहीं खाना होता है। ये व्रत फलाहार ग्रहण करके रखा जाता है। नवरात्र व्रत रखने वालों को रोज विधि विधान माता की पूजा करनी चाहिए।
नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस पाठ को करने से मां भगवती प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करती हैं। दुर्गा सप्तशती पाठ को कुल 13 अध्याय में बांटा गया है।
राम नवमी 14 अक्टूबर को मनाई जाएगी। इस दिन कन्या पूजन की परंपरा है। राम नवमी के अगले दिन यानी दशमी को दशहरा मनाया जाएगा।
नवरात्रि के दिन सुबह उठकर नित्य कर्म से निवृत्त होकर साफ कपड़े पहन लें। फिर पूरे घर में गंगा जल का छिड़काव करें। कलश स्थापना करके मां दुर्गा की पूजा शुरू करें और व्रत रखने का संकल्प लें। इसके बाद मां की मूर्ति पर फूल, सिंदुर, अक्षत और धूप आदि चढ़ाएं। बाद में मंत्रों का उच्चारण करें। दुर्गा चालीसा का पाठ करें और आखिर में आरती करें।
चौड़े मुंह वाला मिट्टी का एक बर्तन, कलश, 7 प्रकार के अनाज, पवित्र स्थान की मिट्टी, जल (संभव हो तो गंगाजल), कलावा/मौली, आम या अशोक के पत्ते (पल्लव), छिलके/जटा वाला नारियल, सुपारी, अक्षत, पुष्प और पुष्पमाला, लाल कपड़ा, मिठाई, सिंदूर, दूर्वा इत्यादि।
आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पहली तिथि से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत होती है। इस बार 8 नवरात्र पड़ रहे हैं।
