Navratri 2020 Puja Vidhi, Samagri, Mantra, Procedure : शारदीय नवरात्र में देवी की आराधना का विधान है। मान्यता है कि नवरात्र के दौरान देवी की उपासना करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। कहते हैं कि जो भी व्यक्ति नवरात्र में सच्चे मन से और सही विधि विधान से देवी की पूजा करता है. देवी की कृपा से उसके सभी कष्ट, दुख और दर्द दूर हो जाते हैं। इसलिए जिन लोगों को भी देवी की कृपा पर विश्वास है उन्हें नवरात्र में सही विधि से पूजा जरूर करनी चाहिए।
शारदीय नवरात्रि पूजा विधि (Shardiya Navratri Puja Vidhi/ Shardiya Navratri Pujan Vidhi)
नौ दिनों के इस महापर्व के दौरान सूर्योदय से पहले उठें। स्नानादि कर साफ कपड़े पहनें। चौकी पर स्थापित देवी और कलश पर गंगाजल से छींटे मारें। इसके बाद देवी का ध्यान करते हुए ज्योत जलाएं। साथ ही धूप और अगरबत्ती भी जलाएं। जौ के पात्र में जल चढ़ाएं। देवी के मस्तक पर कुमकुम का तिलक लगाएं।
माता की प्रतिमा पर फूलों का हार अर्पित करें। संभव हो तो गुड़हल का फूल अवश्य चढ़ाएं। देवी की स्तुति, स्तोत्र और चालीसा पढ़ें। साथ-साथ देवी के मंत्रों का जाप करें। फिर सपरिवार देवी की आरती करें। फिर देवी को फल या मिठाई का भोग अवश्य लगाएं।
नवरात्रि पूजा का शुभ मुहूर्त (Navratri Puja Ka Shubh Muhurat)
शैलपुत्री माता व्रत – 17 अक्तूबर, शनिवार – शाम 5 बजकर 49 मिनट से शाम 7 बजकर 5 मिनट तक
ब्रह्मचारिणी माता व्रत – 18 अक्तूबर, रविवार – शाम 5 बजकर 37 मिनट से शाम 7 बजकर 1 मिनट तक
चंद्रघंटा माता व्रत – 19 अक्तूबर, सोमवार – शाम 5 बजकर 36 मिनट से शाम 7 बजे तक
कुष्मांडा माता व्रत – 20 अक्तूबर, मंगलवार – शाम 5 बजकर 35 मिनट से शाम 5 बजकर 59 मिनट तक
स्कंद माता व्रत – 21 अक्तूबर, बुधवार – शाम 5 बजकर 34 मिनट से शाम 5 बजकर 58 मिनट तक
कात्यायनी माता व्रत – 22 अक्तूबर, बृहस्पतिवार – शाम 5 बजकर 44 मिनट से 5 बजकर 57 मिनट तक
कालरात्रि माता व्रत – 23 अक्तूबर, शुक्रवार – शाम 5 बजकर 32 मिनट से 5 बजकर 56 मिनट तक
महागौरी माता व्रत/ सिद्धीदात्री माता व्रत – 24 अक्तूबर, शनिवार – शाम 5 बजकर 42 मिनट से 6 बजकर 59 मिनट तक
नवरात्रि पूजा की सामग्री (Navratri Puja Samagri)
लाल कपड़ा, चौकी, कलश, कुमकुम, लाल झंडा, पान-सुपारी, कपूर, जौ, नारियल, जयफल, लौंग, बताशे, आम के पत्ते, कलावा, केले, घी, धूप, दीपक, अगरबत्ती, माचिस, मिश्री, ज्योत, मिट्टी, मिट्टी का बर्तन, एक छोटी चुनरी, एक बड़ी चुनरी, माता का श्रृंगार का सामान, देवी की प्रतिमा या फोटो, फूलों का हार, उपला, सूखे मेवे, मिठाई, लाल फूल, गंगाजल और दुर्गा सप्तशती या दुर्गा स्तुति आदि।


दीपक, धूप और अगरबत्ती जलाकर दुर्गा स्तुति, दुर्गा चालीसा, दुर्गा स्तोत्र और दुर्गा मंत्र पढें। फिर माता की आरती करें। आरती करने के बाद देवी दुर्गा को फल-मिठाई का भोग लगाएं।
देव्या यया ततमिदं जग्दात्मशक्त्या निश्शेषदेवगणशक्तिसमूहमूर्त्या।
तामम्बिकामखिलदेव महर्षिपूज्यां भक्त्या नताः स्म विदधातु शुभानि सा नः॥
ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते॥
एक बार प्रजापति दक्ष यानी देवी सती के पिता ने यज्ञ किया और सभी देवताओं को आमंत्रित किया। दक्ष ने भगवान शिव और सती को निमंत्रण नहीं भेजा। ऐसे में सती ने यज्ञ में जाने की बात कही तो भगवान शिव उन्हें समझाया कि बिना निमंत्रण जाना ठीक नहीं लेकिन जब वे नहीं मानीं तो शिव ने उन्हें इजाजत दे दी। जब सती पिता के यहां पहुंची तो उन्हें बिन बुलाए मेहमान वाला व्यवहार ही झेलना पड़ा।
उनकी माता के अतिरिक्त किसी ने उनसे प्यार से बात नहीं की। उनकी बहनें उनका उपहास उड़ाती रहीं। इस तरह का कठोर व्यवहार और अपने पति का अपमान सुनकर वे क्रुद्ध हो गयीं। क्षोभ, ग्लानि और क्रोध में उन्होंने खुद को यज्ञ अग्नि में भस्म कर लिया। यह समाचार सुन भगवान शिव ने अपने गणों को भेजकर दक्ष का यज्ञ पूरी तरह से विध्वंस करा दिया। अगले जन्म नें सती ने हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। इसीलिए इन्हें शैलपुत्री कहा जाता है।
नवरात्र की पूजा में कलश स्थापना करना बहुत जरूरी माना जाता है। बताया जाता है कि शास्त्रों में कहा गया है कि बिना कलश स्थापना के नवरात्र पूजा संपन्न नहीं होती है।
जोर से बोलो जय माता दी
सारे बोलो जय माता दी
मिलकर बोलो जय माता दी
आवाज नहीं आई जय माता दी
मैं नहीं सुनया जय माता दी
जयकारा शेरावाली दा... बोल सच्चे दरबार की जय
कहते हैं कि जो भी व्यक्ति नवरात्र में सच्चे मन से और सही विधि विधान से देवी की पूजा करता है. देवी की कृपा से उसके सभी कष्ट, दुख और दर्द दूर हो जाते हैं। इसलिए जिन लोगों को भी देवी की कृपा पर विश्वास है उन्हें नवरात्र में सही विधि से पूजा जरूर करनी चाहिए।
स्नानादि कर पवित्र हो साफ कपड़े पहनें। फिर देवी के सामने लाल रंग के आसन पर बैठकर उनका ध्यान करें। साथ ही देवी के मंत्रों का भी जप करें। इसके बाद विभिन्न स्तोत्रों और स्तुति का पाठ कर आरती करें।
नवरात्र में नौ देवियों की आराधना की जाती हैं। इनमें शैलपुत्री माता, ब्रह्मचारिणी माता, चंद्रघंटा माता, कूष्माण्डा माता, स्कंदमाता, कात्यायनी माता, कालरात्रि माता, महागौरी माता और सिद्धिदात्री माता आदि शामिल हैं।
आवाहनं न जानामि न जानामि तवार्चनम्।
पूजां श्चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वर॥
मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरं।
यत्पूजितं मया देव परिपूर्ण तदस्मतु॥
मान्यता है कि मां शैलपुत्री को सफेद वस्तुएं प्रिय हैं। इसलिए नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा के शैलपुत्री स्वरूप को सफेद मिष्ठान का भोग लगाया जाता है। इसके साथ ही उन्हें श्वेत पुष्प अर्पित करना भी बेहद शुभ माना जाता है।
पहले से लेकर आखिरी दिन तक नवरात्रि की पूजा में कपूर का इस्तेमाल बेहद शुभ माना गया है। कहते हैं कि मां दुर्गा की पूजा में कपूर के इस्तेमाल से उनकी विशेष कृपा भक्तों को प्राप्त होती है।
सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते।।
ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।
ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ।’ मंगल कामना के साथ इस मंत्र का जप करें।
पहला दिन मां शैलपुत्री की पूजा का दिन होता है और उनकी पूजा पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में की जाती है। इसलिए पुरुषों इस दिन सफेद चमकीले वस्त्र और महिलाओं को लाल रंग के कपड़े पहनकर पूजा करनी चाहिए।
लाल कपड़ा, चौकी, कलश, कुमकुम, लाल झंडा, पान-सुपारी, कपूर, जौ, नारियल, जयफल, लौंग, बताशे, आम के पत्ते, कलावा, केले, घी, धूप, दीपक, अगरबत्ती, माचिस, मिश्री, ज्योत, मिट्टी, मिट्टी का बर्तन, एक छोटी चुनरी, एक बड़ी चुनरी, माता का श्रृंगार का सामान, देवी की प्रतिमा या फोटो, फूलों का हार, उपला, सूखे मेवे, मिठाई, लाल फूल, गंगाजल और दुर्गा सप्तशती या दुर्गा स्तुति आदि।
भारतीय संस्कृति में देवी को ऊर्जा का स्रोत माना गया है। अपने अंदर की ऊर्जा को जागृत करना ही देवी उपासना का मुख्य प्रयोजन है। नवरात्रि मानसिक, शारीरिक और अध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक है। इसलिए हजारों वर्षों से लोग नवरात्रि मना रहे हैं।
इस बार देवी भगवती का आगमन शनिवार को हो रहा है, जो घोड़े पर आ रही हैं। घोड़ा युद्ध का प्रतीक है।
नौ दिनों के इस महापर्व के दौरान सूर्योदय से पहले उठें। स्नानादि कर साफ कपड़े पहनें। चौकी पर स्थापित देवी और कलश पर गंगाजल से छींटे मारें। इसके बाद देवी का ध्यान करते हुए ज्योत जलाएं। साथ ही धूप और अगरबत्ती भी जलाएं। जौ के पात्र में जल चढ़ाएं। देवी के मस्तक पर कुमकुम का तिलक लगाएं।
माता की प्रतिमा पर फूलों का हार अर्पित करें। संभव हो तो गुड़हल का फूल अवश्य चढ़ाएं। देवी की स्तुति, स्तोत्र और चालीसा पढ़ें। साथ-साथ देवी के मंत्रों का जाप करें। फिर सपरिवार देवी की आरती करें। फिर देवी को फल या मिठाई का भोग अवश्य लगाएं।
रूठी है तो मना लेंगे
पास अपने बुला लेंगे,
मइया है वो वो दिल की भोली
बातों में उसे रिझा लेंगे
सब के जीवन में खुशियां लाएं नवरात्र का पर्व
मां दुर्गा आई आपके द्वार करके आई माता 16 श्रृंगार आपके जीवन में न आए कभी हार
नव दीप जले, नव फूल खिले,
जीवन को नित नई बहार मिले।
नवरात्र के पावन अवसर पर,
आपको माता रानी का प्यार मिले।
चैत्र नवरात्र की हार्दिक शुभाकामनाएं
नवरात्र में नौ देवियों की आराधना की जाती हैं। इनमें शैलपुत्री माता, ब्रह्मचारिणी माता, चंद्रघंटा माता, कूष्माण्डा माता, स्कंदमाता, कात्यायनी माता, कालरात्रि माता, महागौरी माता और सिद्धिदात्री माता आदि शामिल हैं।
देवी दुर्गा को गुड़हल का फूल बहुत पसंद हैं। नवरात्र के दौरान जो भी भक्त देवी को गुड़हल का फूल अर्पित करता है देवी उससे प्रसन्न हो जाती हैं। इसलिए पूजा में विशेष तौर पर गुड़हल का फूल साथ रखें।
स्नानादि कर पवित्र हो साफ कपड़े पहनें। फिर देवी के सामने लाल रंग के आसन पर बैठकर उनका ध्यान करें। साथ ही देवी के मंत्रों का भी जप करें। इसके बाद विभिन्न स्तोत्रों और स्तुति का पाठ कर आरती करें।
वास्तु शास्त्र और ज्योतिष शास्त्र दोनों में ही ऐसा माना जाता है कि ईशान कोण की ओर मुंह कर पूजा करनी चाहिए। ईशान कोण उत्तर-पूर्व दिशा के बीच के हिस्से को कहा जाता है। दक्षिण-पश्चिम की ओर पूजा करना मना किया जाता है।
नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। मां शैलपुत्री को सफेद चीज पसंद है। इस दिन सफेद चीजों का भोग लगाया जाता है और अगर यह गाय के घी में बनी हों तो व्यक्ति को रोगों से मुक्ति मिलती है और हर तरह की बीमारी दूर होती है।
आवाहनं न जानामि न जानामि तवार्चनम्। पूजां श्चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वर॥
मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरं। यत्पूजितं मया देव परिपूर्ण तदस्मतु॥
माता रानी वरदान ना देना हमे
बस थोडा सा प्यार देना हमे
तेरे चरणों में बीते ये जीवन सारा
एक बस यही आशीर्वाद देना हमे
ऐसा माना जाता है कि देवी दुर्गा को गुड़हल का फूल बहुत पसंद हैं। नवरात्र के दौरान जो भी भक्त देवी को गुड़हल का फूल अर्पित करता है देवी उससे प्रसन्न हो जाती हैं।
वास्तु शास्त्र और ज्योतिष शास्त्र दोनों में ही ऐसा माना जाता है कि ईशान कोण की ओर मुंह कर पूजा करनी चाहिए। ईशान कोण उत्तर-पूर्व दिशा के बीच के हिस्से को कहा जाता है। दक्षिण-पश्चिम की ओर पूजा करना मना किया जाता है।
स्नानादि कर पवित्र हो साफ कपड़े पहनें। फिर देवी के सामने लाल रंग के आसन पर बैठकर उनका ध्यान करें। साथ ही देवी के मंत्रों का भी जप करें। इसके बाद विभिन्न स्तोत्रों और स्तुति का पाठ कर आरती करें।
नवरात्र में नौ देवियों की आराधना की जाती हैं। इनमें शैलपुत्री माता, ब्रह्मचारिणी माता, चंद्रघंटा माता, कूष्माण्डा माता, स्कंदमाता, कात्यायनी माता, कालरात्रि माता, महागौरी माता और सिद्धिदात्री माता आदि शामिल हैं।
ऐसा माना जाता है कि नवरात्र में मनोकामना पूर्ति के लिए सुहागनों को लाल चूड़िया, लाल बिंदी, लाल कपड़ा, मेहंदी और केले दान करने चाहिए।
नवरात्र के दौरान बाल न कटवाएं, नाखून न काटें, चमड़ा इस्तेमाल न करें, झूठ न बोलें, तामसिक भोजन न खाएं, मांस-मदिरा का सेवन न करें और न ही किसी जीव की हत्या करें। शास्त्रों में यह महापाप बताए गए हैं।
सुख, शान्ति और समृद्धि की मंगलमय कामनाओं के साथ आप और आपके परिवार को शारदीय नवरात्र की हार्दिक मंगल कामनाएं। मां दुर्गा आपको सुख समृद्धि वैभव ख्याति प्रदान करें।
नवरात्र को देवी के स्वरूपों की आराधना का महापर्व माना जाता है। बताया जाता है कि देवी के नौ रूपों की उपासना कर भक्तों को देवी की पूजा के फल के रूप में शक्तियों और सिद्धियों की प्राप्ति होती हैं।
नवरात्र में पवित्रता को अहम माना जाता है। शरीर की सफाई से लेकर, मन-मस्तिष्क के शुद्धि के साथ ही पूजन स्थल की सफाई भी बहुत जरूरी है। माता की प्रतिमा और चौकी पर भी साफ-सफाई और पवित्रता का खास ख्याल रखना चाहिए।