Navratri 2020 Day 1, Maa Shailputri Puja Vidhi, Timings, Mantra, Muhurat, Aarti: नवरात्र के महापर्व की शुरुआत 17 अक्तूबर, शनिवार से हो रही है। नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री की आराधना करने का विधान है। मां शैलपुत्री की पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में पूजी जाती हैं। इनका रूप सौम्य और शांत है। सफेद वस्त्र धारण की हुईं इन देवी के चेहरे पर हमेशा मुस्कान रहती है। माना जाता है कि देवी शैलपुत्री की आराधना करने से तामसिक तत्वों से मुक्ति मिलती है। नवरात्र के पहले दिन उनकी आराधना करना बहुत शुभ माना जाता है। कहते हैं कि माता शैलपुत्री का नाम लेने से घर में पवित्रता आती है।
नवरात्र के प्रथम व्रत की पूजा विधि (Shailputri Mata Ki Puja Vidhi)
नवरात्र के पहले दिन सूर्योदय से पूर्व उठें। फिर स्नान कर साफ कपड़े पहनें। एक चौकी पर देवी की प्रतिमा या फोटो स्थापित करें। गंगाजल से स्थान पवित्र कर धूप, दीप और अगरबत्ती जलाएं। शुभ मुहूर्त में घटस्थापना और कलश स्थापना करने बाद माता शैलपुत्री के रूप का ध्यान करें। फिर शैलपुत्री माता के व्रत का संकल्प लें। शैलपुत्री माता की कथा, आरती, दुर्गा चालीसा, दुर्गा स्तुति और दुर्गा स्तोत्र का पाठ करें। फिर माता की आरती करें। जयकारों के साथ पूजा संपन्न करें। इसके बाद देवी को फल-मिठाई का भोग लगाएं। इसी विधि संध्या आराधना भी करें। साथ ही भोग भी लगाएं।
शैलपुत्री माता मंत्र (Shailputri Mata Mantra)
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ॐ शैलपुत्री देव्यै नम:।
ॐ शं शैलपुत्री देव्यै: नम:।
वन्दे वांच्छित लाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
ॐ या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
ॐ शैलपुत्रै नमः।
शैलपुत्री व्रत पूजा की सामग्री (Shailputri Vrat Puja Ki Samagri): कलावा, लाल कपड़ा, चौकी, कलश, कुमकुम, लाल झंडा, पान-सुपारी, कपूर, जौ, नारियल, जयफल, लौंग, मिश्री, बताशे, आम के पत्ते, कलावा, केले, घी, धूप, दीपक, अगरबत्ती, माचिस, ज्योत, मिट्टी, मिट्टी का बर्तन, एक छोटी चुनरी, एक बड़ी चुनरी, माता का श्रृंगार का सामान, देवी की प्रतिमा या फोटो, फूलों का हार, उपला, सूखे मेवे, मिठाई, लाल फूल, गंगाजल और दुर्गा सप्तशती या दुर्गा स्तुति आदि।
शैलपुत्री माता की आरती (Shailputri Mata Ki Aarti)
शैलपुत्री मां बैल पर सवार। करें देवता जय जयकार।
शिव शंकर की प्रिय भवानी। तेरी महिमा किसी ने ना जानी।
पार्वती तू उमा कहलावे। जो तुझे सिमरे सो सुख पावे।
ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू। दया करे धनवान करे तू।
सोमवार को शिव संग प्यारी। आरती तेरी जिसने उतारी।
उसकी सगरी आस पुजा दो। सगरे दुख तकलीफ मिला दो।
घी का सुंदर दीप जला के। गोला गरी का भोग लगा के।
श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं। प्रेम सहित फिर शीश झुकाएं।
जय गिरिराज किशोरी अंबे। शिव मुख चंद्र चकोरी अंबे।
मनोकामना पूर्ण कर दो। भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो।


नवरात्र की पूजा में श्रद्धा का भाव होना मुख्य माना जाता है। कहते हैं कि जो व्यक्ति कोई भी पाठ-पूजा या विधि-विधान करने में सक्षम नहीं हैं वो भी अगर सच्चे मन से देवी दुर्गा को याद करता है तो माता उससे भी प्रसन्न होती हैं।
हिनस्ति दैत्यतेजांसि स्वनेनापूर्य या जगत्।
सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्योनः सुतानिव॥
शैलपुत्री माता की आराधना करने से चंद्रदोष से मुक्ति मिलती है। कहते हैं कि देवी का यह स्वरूप अत्यंत शुभ है।
17 अक्टूबर, शनिवार यानी आज से शारदीय नवरात्र का प्रारंभ हो चुका है। त्योहारों के इस समय की शुरुआत नवरात्र से ही हो जाती है। नवरात्र के नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती हैं।
शैलपुत्री माता पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं। इसलिए ही इनका नाम शैलपुत्री रखा गया। शैल का मतलब पर्वत और पुत्री का मतलब बेटी है, इसलिए ही इन्हें शैलपुत्री के नाम से जाना जाता है।
एक तेरा सहारा जगदम्बे मां...
और कोई न दूजा मेरा
तेरी कृपा के सहारे
तर जाऊंगा भवसागर गहरा
जय जय मां
तू दाती प्यारी
कृपा कर
अब सुन हमारी
इस दौरान नियम, संयम, खान-पान का विशेष ध्यान रखना चाहिए। मां दुर्गा का पूजन कर सोलह श्रृंगार अर्पण करना चाहिए।
या देवी सर्वभूतेषु शैलपुत्री रूपेण संस्थिता।या देवी सर्वभूतेषु शैलपुत्री रूपेण संस्थिता।
प्रजापति दक्ष के यज्ञ में सती ने अपने शरीर को भस्म कर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। पार्वती और हेमवती भी उन्हीं के नाम हैं। उपनिषद् की एक कथा के अनुसार, इन्हीं ने हेमवती स्वरूप से देवताओं का गर्व-भंजन किया था। नव दुर्गाओं में प्रथम शैलपुत्री का महत्व और शक्तियां अनन्त हैं। नवरात्र पूजन में प्रथम दिन इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है।
मां शैलपुत्री के माथे पर अर्ध चंद्र स्थापित है। मां के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं में कमल है। उनकी सवारी नंदी माने जाते हैं। देवी सती ने पर्वतराज हिमालय के घर पुर्नजन्म लिया और वह फिर वह शैलपुत्री कहलाईं। ऐसा माना जाता है कि मां शैलपुत्री की पूजा करने से चंद्र दोष से मुक्ति मिलती है।
नवदुर्गाओं में शैलपुत्री का सर्वाधिक महत्व है। पर्वतराज हिमालय के घर मां भगवती अवतरित हुईं, इसीलिए उनका नाम शैलपुत्री पड़ा। अगर जातक शैलपुत्री का ही पूजन करते हैं तो उन्हें नौ देवियों की कृपा प्राप्त होती है।
नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा में सभी नदियों, तीर्थों और दिशाओं का आह्वान किया जाता है।
नवदुर्गाओं में शैलपुत्री का सर्वाधिक महत्व है। पर्वतराज हिमालय के घर मां भगवती अवतरित हुईं, इसीलिए उनका नाम शैलपुत्री पड़ा। अगर जातक शैलपुत्री का ही पूजन करते हैं तो उन्हें नौ देवियों की कृपा प्राप्त होती है।
करीब 58 साल बाद आज के दिन शनि और बृहस्पति अपनी-अपनी राशि मकर और धनु में संचार करेंगे। इसके अलावा, आज सूर्य तुला राशि में गोचर करेगा।
नवरात्रि पर इस बार तीन विशेष संयोग बन रहे हैं। मां भगवती का आगमन घोड़े पर होगा और विदाई हाथी पर होगी। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार सूर्य संक्रांति पड़ने से नवरात्र का पहला दिन बेहद खास होगा।
इस बार 9 दिनों में ही 10 दिनों का यह पर्व पूरा हो जाएगा, क्योंकि तिथियों का उतार-चढ़ाव है। 24 अक्तूबर को सुबह 6:58 तक अष्टमी है। उसके बाद नवमी लग जाएगी, तो अष्टमी व नवमी की पूजा एक ही दिन होगी। इसलिए दशहरा और देवी का गमन 25 अक्तूबर को ही हो जाएगा।
साल 2020 में अधिक मास पड़ने के कारण इस साल नवरात्र का त्योहार एक माह के विलंब से शुरू हो रहा है। यह पर्व शक्ति का रूप देवी दुर्गा की अराधना का त्योहार है। 9 दिनों तक चलने वाले इस त्योहार में भक्त प्याज-लहसुन तक खाना छोड़ देते हैं। साथ ही, कई जगह देवी के भक्त इस दौरान मां जगदम्बा को प्रसन्न करने के लिए व्रत रखते हैं।
मान्यता यह है कि शारदीय नवरात्र की शुरुआत भगवान राम ने की थी। भगवान राम ने सबसे पहले समुद्र के तट पर शारदीय नवरात्रि की शुरुआत की और नौ दिनों तक शक्ति की पूजा की थी और तब जाकर उन्होंने लंका पर विजय प्राप्त किया था। यही मूल वजह है कि शारदीय नवरात्र में नौ दिनों तक दुर्गा मां की पूजा के बाद दसवें दिन दशहरा मनाया जाता है।
माना जाता है कि देवी शैलपुत्री की आराधना करने से तामसिक तत्वों से मुक्ति मिलती है। नवरात्र के पहले दिन उनकी आराधना करना बहुत शुभ माना जाता है। कहते हैं कि माता शैलपुत्री का नाम लेने से घर में पवित्रता आती है।
देवी शैलपुत्री के माथे पर अर्ध चंद्र स्थापित है। मां के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं में कमल है। उनकी सवारी नंदी माने जाते हैं। देवी सती ने पर्वतराज हिमालय के घर पुर्नजन्म लिया और वह फिर वह शैलपुत्री कहलाईं। ऐसा माना जाता है कि मां शैलपुत्री की पूजा करने से चंद्र दोष से मुक्ति मिलती है।
नवरात्रि का पहला दिन मां दुर्गा के शैलपुत्री स्वरूप को समर्पित होता है। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण इन्हें शैलपुत्री पुकारा जाता है। मां दुर्गा का यह स्वरूप बेहद शांत, सौम्य और प्रभावशाली है। घटस्थापना के साथ ही मां शैलपुत्री की विधि-विधान से पूजा की जाती है।
इस बार 17 अक्तूबर यानी शनिवार को कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त है। सुबह 6:27 से 10:13 तक और अभिजित मुहूर्त 11:44 से 12:29 बजे दोपहर तक आप कलश स्थापना कर सकते हैं।
17 अक्टूबर- मां शैलपुत्री पूजा घटस्थापना
18 अक्टूबर- मां ब्रह्मचारिणी पूजा
19 अक्टूबर- मां चंद्रघंटा पूजा
20 अक्टूबर- मां कुष्मांडा पूजा
21 अक्टूबर- मां स्कंदमाता पूजा
22 अक्टूबर- षष्ठी मां कात्यायनी पूजा
23 अक्टूबर- मां कालरात्रि पूजा
24 अक्टूबर- मां महागौरी दुर्गा पूजा
25 अक्टूबर- मां सिद्धिदात्री पूजा