Muharram 2023 Date: इस्लामिक कैलेंडर के पहले महीने की शुरुआत मुहर्रम के साथ होती है। इसकी शुरुआत चांद दिखने के आधार पर की जाती है। इस साल मुहर्रम आज यानी 20 जुलाई, गुरुवार से आरंभ हो गया है। इसके साथ ही 10वीं तारीख को यौम-ए-आशूरा 29 जुलाई को मनाया जाएगा। जानिए मुहर्रम के बारे में सबकुछ।

क्यों मनाया जाता है मुहर्रम?

मुहर्रम का महीना पैगंबर मुहम्मद के नवासे हुसैन इब्न अली की याद दिलाता है। इस्लामिक कैलेंडर के 61वें वर्ष में दसवें मुहर्रम (अशूरा का दिन) को कर्बला की लड़ाई हुई थी, जिसके दौरान पैगंबर के नवासे इमाम हुसैन को बेरहमी से शहीद कर दिया गया था। आशूरा से पहले नौवें दिन लोग रोज़ा (उपवास) रखते हैं। यह इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना है, जो मुसलमानों के मदीना में हिजरत (प्रवास) और 622 ईस्वी में पहले इस्लामी राज्य की स्थापना का प्रतीक है।

यौम-ए-अशूरा का महत्व

मुहर्रम का माह बेहद पाक और गम का माह माना जाता है। लेकिन यौम-ए-आशूरा यानि मुहर्रम के 10वें दिन को मातम का दिन माना जाता है। इस्लामी मान्यताओं के अनुसार, करीब 1400 साल पहले मुहर्रम के 10वें दिन हजरत इमाम हुसैन शहीद हुए थे। कर्बला की ये जंग हजरत इमाम हुसैन और यजीद की सेना के बीच हुई थी। इस जंग में इस्लाम धर्म की रक्षा के लिए अपने परिवार और 72 साथियों के साथ शहादत दी थी।

मुहर्रम में कब रखते हैं रोजा?

मुहर्रम को लेकर शिया और सुन्नी की अलग-अलग मान्यताएं है। जहां शिया समुदाय के लोग मुहर्रम की 1 से 9 तारीख के बीच रोज़ा रखने की छूट होती है। इसके बाद 10 तारीख को यौम-ए-अशूरा के दिन रोजा हराम होता है। इसके बाद सुन्नी समुदाय के लोग 9 और 10 तारीख को रोज़ा रखते हैं। हालांकि, यह रोजाना फर्ज़ नहीं होता है। इसे गम के तौर में रखा जाता है।

यौम-ए-आशूरा को निकालते हैं ताजिया

मुहर्रम की 10वीं तारीख यानी यौम-ए-आशूरा के दिन शिया समुदाय के लोग ताजिया निकालते हैं। इन ताजियों को कर्बला की जंग के शहीदों के प्रतीक रूप में बनाया जाता है। ताजिया का जुलूस इमामबाड़े, मस्जिद से शुरू होता है और कर्बला में समाप्त होता है। जहां पर ताजिया को दफन किया जाता है। ताजिया निकालने के दौरान शिया समुदाय के लोग खुद को किसी न किसी तरह से यातनाएं देते हैं।

FAQ

कब से शुरू होता है इस्लामिक कैलेंडर?

इस्लामी कैलेंडर के अनुसार, मुहर्रम के साथ नए साल की शुरुआत होती है।

आशूरा से पहले की रात को क्या कहा जाता था?

आशूरा की पहली रात को ‘कत्ल की रात’ कहा जाता है, क्योंकि उसके अगले दिन इमाम अल-हुसैन और उनके अनुयायी शहीद हो गए थे।