Muharram (Ashura Namaz) 2019 date in India: मुहर्रम इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना है, जिसे इस्लाम के पवित्र महीनों में एक माना जाता है। बता दें कि मुहर्रम शब्द निषिद्ध शब्द ‘हराम’ से लिया गया है। मुहर्रम के 10वें दिन को आशुरा कहा जाता है। इसी दिन को अंग्रेजी कैलेंडर में मुहर्रम कहा गया है। यह दिन इमाम हुसैन, हजरत अली के बेटे और पैगंबर मुहम्मद के पोते की शहादत के शोक के रूप में जाना जाता है। गौरतलब है कि मुहर्रम हर साल बदलता रहता है, क्योंकि इस्लामिक कैलेंडर चंद्रमा के चरणों के अनुसार चलता है। इस साल अशुरा 10 सितंबर को पड़ रहा है।

इसलिए मनाया जाता है मुहर्रम: जानकारों के मुताबिक, मुहर्रम के महीने में इस्लाम धर्म के संस्थापक हजरत मुहम्मद साहब के पोते इमाम हुसैन व उनके 72 समर्थकों का कत्ल कर दिया गया था। हजरत हुसैन इराक के शहर कर्बला में वहां के तत्कालीन राजा यजीद की फौज से लड़ते वक्त शहीद हुए थे।

कर्बला की लड़ाई क्यों हुई थी?: बताया जाता है कि यजीद जब शासक बना तो उसमें तमाम तरह के अवगुण मौजूद थे। वह चाहता था कि इमाम हुसैन उसके गद्दी पर बैठने की पुष्टि करें, लेकिन हजरत मुहम्मद के वारिसों ने उसे इस्लामी शासक मानने से साफ इनकार कर दिया था। ऐसे में इमाम हुसैन हमेशा के लिए मदीना छोड़कर अपने परिवार व कुछ चाहने वालों के साथ इराक जा रहे थे। कर्बला के पास यजीद की फौज ने उन्हें घेर लिया।

आखिर दम तक जंग टालते रहे हुसैन: जानकारों के मुताबिक, यजीद ने इमाम हुसैन के सामने कुछ शर्तें रखीं, जिन्हें न मानने पर उसने जंग करने की बात कही। यह घटना एक मुहर्रम की बताई जाती है। 7 मुहर्रम तक इमाम हुसैन व उनके अनुयायियों के पास मौजूद खाना-पानी खत्म हो गया। इसके बाद 7 से 10 मुहर्रम तक हुसैन व उनके साथी भूखे-प्यासे रहे थे।

आशुरा की नमाज का क्या है महत्व?: 10 मुहर्रम को इमाम हुसैन के सभी साथियों ने एक-एक करके यजीद की फौज से जंग की। जब सभी साथी शहीद हो गए तो असर (दोपहर) की नमाज के बाद इमाम हुसैन खुद जंग करने गए और शहादत को हासिल हुए। ऐसे में आशुरा के दिन की नमाज काफी ज्यादा महत्व रखती है। इसी कुर्बानी की याद में मुहर्रम मनाया जाता है।