Muharram, Ashura, 2018: मुहर्रम का महीना इस्लाम धर्म का पहला महीना होता है। इसे एक बहुत पवित्र महीना माना जाता है। इसे मुस्लिम संप्रदाय के लोग मनाते हैं। हिजरी सन की शुरुआत इसी महीने से होती है। इस्लाम धर्म में चार पवित्र महीने होते हैं। इनमें से एक पवित्र महीना मुहर्रम है। मुहर्रम शब्द में से हरम का मतलब होता है- किसी चीज पर पाबंदी। इसका मुस्लिम समाज में बहुत महत्व माना गया है। मुहर्रम की तारीख हर साल बदलती रहती है। क्योंकि इस्लाम का कैलेंडर एक लूनर कैलेंडर होता है। इस साल मुहर्रम महीने की शुरुआत 11 सितंबर से हो रही है। मुहर्रम के एक विशेष दिन सभी मुस्लिम शोक मनाते हैं। ये दिन मुहर्रम महीने का 10 वां दिन होता है। इस दिन से इस्लामिक कैलेंडर की शुरुआत होती है।

मुहर्रम शहीद को दी जाने वाली श्रद्धांजलि के रूप में मनाया जाता है। ये एक शोक दिवस है। मुहर्रम के माह में 10 दिनों तक पैगम्बर मुहम्मद साहब के वारिस इमाम हुसैन की तकलीफों का शोक मनाया जाता है। इसके बाद इसे जंग में शहीद को दी जाने वाली शहादत के तौर पर मनाया जाता है और ताजिया सजाकर इसे जाहिर किया जाता है। इन दस दिनों को आशुरा कहा जाता है। इन दस दिनों में सुन्नी समुदाय के लोग रोजा रखते हैं और शिया समुदाय के लोग काले कपडे़ पहनते हैं। इस दिन लोग ताजिया निकालते हैं। ताजिया बांस से बनाई जाती है, ये झांकियों के जैसे सजाई जाती है। इमाम हुसैन की कब्र बनाकर उसे शान से दफनाया जाता है। इसे ही शहीदों को श्रद्धांजली देना कहा जाता है और जूलुस में लोग मातम मनाते हुए चलते हैं।

ताजिया मुहर्रम के दस दिन के बाद ग्यारहवें दिन निकाली जाती है। मुस्लिम लोग इसमें शामिल होते हैं और पूर्वजों की कुर्बानी की गाथा ताजियों के जरिए सभी को बताई जाती है। इस मातम में लोग चिमटेनुमा हथियार से अपने ऊपर वार करते हैं। उनका मानना है कि रक्त से पूर्वजों को सुकून मिलता है। बच्चे बड़े इसमें अपने बाल कटवा कर अपने सिर पर अशुरा का निशान भी बनवाते हैं। कहा जाता है कि पूरे मुहर्रम माह में इस्लाम को मानने वाले लोग अपनी खुशियों का त्याग कर देते हैं। और खुद को दुख-तकलीफ देकर हुसैन की शहादत को महसूस करते हैं।