Muharram 2018: इस्लाम धर्म में कुल चार महीनों को बेहद ही पवित्र माना गया है। इनमें से एक है मुहर्रम का महीना। यह इस्लामी साल का पहला महीना होता है। इसे हिजरी के नाम से भी जाना जाता है। इस साल 11 सितंबर से मुहर्रम का महीना आरंभ हो चुका है। यह 9 अक्टूबर तक रहेगा। मुहर्रम महीने का दसवां दिन मुस्लिम समुदाय के लिए बेहद ही खास है। इस दिन इस्लाम में शिया समुदाय के लोग मातम मनाकर अपने गम का इजहार करते हैं। इस मातम का कर्बला की जंग से गहरा कनेक्शन है। आज हम आपको कर्बला की जंग के बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं।
कर्बला वर्तमान में इराक का एक मुख्य शहर है। यह इराक की राजधानी बगदाद से 120 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस्लामी मान्यताओं के अनुसार इराक में यजीद नाम का बादशाह शासन करता था। वह बहुत ही क्रूर था। यजीद का अल्लाह में विश्वास नहीं था। वह खुद को ही खलीफा मानता था। इस बात से हजरत हुसैन का खेमा काफी व्यथित था। यजीद चाहता था कि हुसैन के लोग उसकी बातें मान जाएं। लेकिन हुसैन और उसके लोगों को यह बात मंजूर नहीं थी। अंतत: हुसैन ने यजीद के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी। बताते हैं कि हुसैन और यजीद के बीच कर्बला शहर में युद्ध हुआ।
हजरत इमाम हुसैन पैगंबर-ए इस्लाम हजरत मोहम्मद के नवासे थे। कहते हैं कि हुसैन को इस बात की जानकारी थी कि यजीद की विशाल सेना से उनके लोग मुकाबला नहीं कर पाएंगे। फिर भी, इस्लाम की रक्षा के लिए हुसैन, उनके परिवार के सदस्य और सहयोगियों ने झुकने से इनकार कर दिया। हुसैन और यजीद की लड़ाई मुहर्रम के महीने में हुई। बताते हैं कि 10 मुहर्रम की सुबह हुसैन ने नमाज पढ़ाई। तभी यजीद की सेना ने तीरों की बारिश कर दी। इसमें हुसैन के 72 लोग शहीद हो गए। इसके कुछ समय बाद यजीद ने हुसैन की गर्दन कटवा दी।बाद में मुहर्रम का महीना गम और दुख के महीने के रूप में मनाया जाने लगा।