पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन की कथा मंदराचल पर्वत (मंदार) पर्वत से जुड़ी हुई है। कहते हैं कि समुद्र मंथन के समय देवताओं ने मंदराचल पर्वत को मथनी बनाया। लोक मानताओं के अनुसार भगवान विष्णु सदैव मंदार पर्वत पर निवास किया करते थे। मान्यता है कि आज भी यह पर्वत बिहार के बांका जिले में अवस्थित है। आर्कियोलॉजिस्ट के अनुसार यह मंदराचल पर्वत गुजरात के समुद्र से निकले हुए पर्वत का हिस्सा है। क्या आप यह जानते हैं कि आखिर मंदार पर्वत पर ही क्यों समुद्र मंथन हुआ? और क्या है इसका धार्मिक महत्व? आज हम इसे जानते हैं।
विष्णु पुराण की एक कथा के अनुसार विष्णु जी का निवास स्थान मंदार पर्वत था। यह पर्वत करीब सात सौ फीट ऊंचा है जो कि ग्रेनेट के एक ही पत्थर का चट्टान है। साथ ही मान्यता यह भी है कि इस पर्वत पर दर्जनों कुंड और गुफाएं हैं। जिसमें सीता कुंड, शंख कुंड, आकाश गंगा के अलावा नरसिंह भगवान की गुफा, सुकदेव की गुफा, राम झरोखा के साथ-साथ पर्वत की तराई में लखदीपा मंदिर, कामधेनु मंदिर और चैतन्य चरण मंदिर मौजूद हैं।
धर्म शास्त्रों के जानकारों के मुताबिक औरव मुनि की पुत्री समिका का विवाह धौम्य मुनि के पुत्र मंदार से हुआ था। इसलिए इस पर्वत का नाम मंदार पड़ा। कहा जाता है कि मंदार पर्वत तीन धर्मों की संगम स्थली भी है। पर्वत की तराई में सफा होड़ धर्म के संस्थापक स्वामी चंद्र दास के द्वारा मंदिर बनवाया गया था। इस पर्वत के सबसे ऊपर जैन धर्म के 12वें तीर्थंकर भगवान वासु पूज्य की निर्वाण स्थली भी है। इसके अलावा इसमें नरसिंह भगवान का भी मंदिर भी है। कहते हैं कि मंदार पर्वत का धार्मिक महत्व इन्हीं सब कारणों से है।
