हिंदू धर्म ग्रंथ गीता का काफी महत्व माना जाता है। महाभारत युद्ध के दौरान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का पाठ पढ़ाया था। जिससे अर्जुन जन्म मरण के बंधन से मुक्त होकर युद्ध करने के लिए सज्ज हो पाए। गीता के उपदेश आज के समय में भी कारगर साबित होते हैं। जो जीवन को सुव्यवस्थित करने का तरीका बताते हैं। गीता के तीसरे अध्याय में भगवान कृष्ण अर्जुन को कर्म का महत्व बताते हुए कहते हैं हे अर्जुन! मैं स्वयं नारायण का अंश हूं और मेरे लिए कोई कर्म बाकी नहीं है लेकिन फिर भी मैं बिना आलस किए कर्म करता रहता हूं क्योंकि प्रकृति मनुष्य को कर्म करने के लिए बाध्य करती है। कर्म के बिना जीवन शून्य है।

– बीते कल और आने वाले कल की चिंता नहीं करनी चाहिए, क्योंकि जो होना है वही होगा। जो होता है, अच्छा ही होता है, इसलिए वर्तमान का आनंद लो।

– नाम, पद, प्रतिष्ठा, संप्रदाय, धर्म, स्त्री या पुरुष हम नहीं हैं और न यह शरीर हम हैं। ये शरीर अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश से बना है और इसी में मिल जाएगा। लेकिन आत्मा स्थिर है और हम आत्मा हैं। आत्मा कभी न मरती है, न इसका जन्म है और न मृत्यु! आत्मभाव में रहना ही मुक्ति है।

– परिवर्तन संसार का नियम है। यहां सब बदलता रहता है। इसलिए सुख-दुःख, लाभ-हानि, जय-पराजय, मान-अपमान आदि में भेदों में एक भाव में स्थित रहकर हम जीवन का आनंद ले सकते हैं।

– अपने क्रोध पर काबू रखें। क्रोध से भ्रम पैदा होता है और भ्रम से बुद्धि विचलित होती है। इससे स्मृति का नाश होता है और इस प्रकार व्यक्ति का पतन होने लगता है। क्रोध, कामवासना और भय ये हमारे शत्रु हैं।

– अपने को भगवान के लिए अर्पित कर दो। फिर वो हमारी रक्षा करेगा और हम दुःख, भय, चिन्ता, शोक और बंधन से मुक्त हो जाएंगे।

– हमें अपने देखने के नजरिए को शुद्ध करना होगा और ज्ञान व कर्म को एक रूप में देखना होगा, जिससे हमारा नजरिया बदल जाएगा।

– अशांत मन को शांत करने के लिए अभ्यास और वैराग्य को पक्का करते जाओ, अन्यथा अनियंत्रित मन हमारा शत्रु बन जाएगा।

– हम जो भी कर्म करते हैं उसका फल हमें ही भोगना पड़ता है। इसलिए कर्म करने से पहले विचार कर लेना चाहिए।

– कोई और काम पूर्णता से करने से कहीं अच्छा है कि हम अपना ही काम करें। भले वह अपूर्ण क्यों न हो।

– सभी के प्रति समता का भाव, सभी कर्मों में कुशलता और दुःख रूपी संसार से वियोग का नाम योग है।