हिंदू धर्म में एकादशी को बेहद ही महत्वपूर्ण माना गया है। एक साल में कुल 24 एकादशी आती हैं यानी एक महीने में दो एकादशी आती हैं। मोक्षदा एकादशी का अर्थ है मोह का नाश करने वाली। मान्यता है कि इस व्रत और पूजापाठ करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।

इस दिन भगवान श्री कृष्ण की पूरे श्रद्धा भाव से पूजा की जाती है। इसी के साथ महर्षि वेद व्यास और श्रीमद् भागवत गीता के भी पूजन का विधान है। द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने इस दिन पाण्डु पुत्र अर्जुन को मनुष्य का जीवन सार्थक बनाने वाली गीता का उपदेश दिया था। इसलिए इस तिथि को गीता जयंती के नाम से भी जाना जाता है।

शुभ मुहूर्त: मोक्षदा एकादशी तिथि 13 दिसंबर सोमवार की रात 09 बजकर 32 मिनट से शुरू हो चुकी है, जो 14 दिसंबर को रात 11 बजकर 35 मिनट तक रहेगी। व्रत का पारण समय 15 दिसंबर को सुबह 07 बजकर 5 मिनट से सुबह 09 बजकर 09 मिनट के बीच है।

पूजा विधि: मोक्षदा एकादशी के दिन सुबह उठक नित्यकर्म से निव्रत होकर भगवान श्रीहरि विष्णु की विधिवत् पूजा करनी चाहिए। साथ ही, उनके मंत्रों का जाप करना भी लाभकारी माना जाता है। व्रत का पारण द्वादशी तिथि को करना चाहिए। द्वादशी के दिन व्रतियों को पहले ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए और उन्हें दक्षिणा देने के बाद ही खुद प्रसाद ग्रहण करना चाहिए।

मोक्षदा एकादशी का महत्व: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ये एकादशी बेहद शुभ फलदायी होती है। माना जाता है कि जो लोग पूरे विधि-विधान से इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना और उपवास करते हैं, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए इसे मोक्षदा एकादशी कहा जाता है। ऐसा मानते हैं कि इस एकादशी के दिन व्रत करने से व्रतियों के सभी पापों का नाश होता है और उनकी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।

क्या है पौराणिक कथा: धार्मिक कथा के अनुसार राजा वैखनास चंपा नगरी के प्रतापी राजा थे। वे ज्ञानी थे और उन्हें वेदों का ज्ञान भी था। इतना भला राजा पाकर नगरवासी भी बेहद संतुष्ट व सुखी रहते थे। एक बार स्वप्न में राजा को अपने पिता दिखाई दिये जो नरक में कई यातनाएं झेल रहे थे।

राजा ने जब ये बात अपनी पत्नी से साझा की तो रानी ने उन्हें आश्रम जाने का सुझाव दिया। वहां पहुंचकर राजा ने पर्वत मुनि को अपने सपने के बारे में बताया। पूरी बात सुनने के बाद मुनि ने राजा से कहा कि तुम्हारे पिता ने अपनी पत्नी पर बेहद जुर्म किये थे, इसलिए अब मरणोपरांत वे अपने कर्मों का फल भोग रहे हैं।

जब राजा ने इसका उपाय जानना चाहा तो पर्वत मुनि ने उन्हें मोक्षदा एकादशी करने की सलाह दी और कहा कि इससे प्राप्त फल को वो अपने पिता को समर्पित कर दें। राजा ने पूरे विधि-विधान का पालन कर ये व्रत रखा और उनके पिता को अपने कुकर्मों से मुक्ति मिल गई। तब से ही ये माना जाता है कि मोक्षदा एकादशी न केवल जीवित बल्कि पितरों को भी प्रभावित करती है।