Mohini Ekadashi 2025 Vrat Katha: हिंदू पंचांग के अनुसार, बैशाख माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मोहिनी एकादशी का व्रत रखा जाता है। शास्त्रों के अनुसार, साल में पहले वाले कुछ एकादशियों में से इस एकादशी का विशेष महत्व है। 8 मई को मोहिनी एकादशी का व्रत रखा जा रहा है। इस खास मौके पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विधिवत पूजा करने के साथ व्रत रखने का विधान है। इस दिन पूजा-पाठ, मंत्र आदि का जाप करने के साख-साथ अंत में इस एकादशी कथा का पाठ अवश्य. करना चाहिए। इससे शुभ फलों की प्राप्ति हो सकती है। आइए जानते हैं मोहिनी एकादशी की संपूर्ण व्रत कथा…
विष्णु जी की आरती, ॐ जय जगदीश हरे स्वामी जय जगदीश हरे
मोहिनी एकादशी व्रत कथा
इस पौराणिक कथा को स्वयं श्री कृष्ण ने अर्जुन को सुनाई थी। इस कथा के अनुसार, अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा कि हे मधुसूदन! बैशाख माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को किस नाम से जाना जाता है और इस व्रत को करने का क्या विधान है?
तब श्रीकृष्ण ने कहा, “हे अर्जुन! मैं आपको एक पौराणिक कथा सुना रहा हूं जिसे महर्षि वशिष्ठ जी ने प्रभु श्री रामचन्द्र को सुनाई थी। इसे आप ध्यान पूर्वक सुनें। एक समय की बात है जब श्री राम ने महर्षि वशिष्ठ से कहा कि हे गुरुश्रेष्ठ! मैंने जनक नंदिनी सीता के वियोग में बहुत कष्ट भोगे हैं। ऐसे में आप मुझे बताएं कि मेरे कष्टों का नाश किस प्रकार होगा? आप मुझे कोई ऐसे व्रत के बारे में बताएं जिससे मेरे सारे कष्ट और अनजाने में किए गए पाप नष्ट हो जाए।
श्री राम जी की बात सुनकर महर्षि वशिष्ठ ने कहा कि हे श्रीराम! आपने बहुत उत्तम प्रश्न किया है। आपकी बुद्धि अत्यन्त कुशाग्र और पवित्र है। आपके नाम के स्मरण मात्र से ही मनुष्य पवित्र हो जाता है। ऐसे में आपको एक एकादशी के बारे में बताता हूं। बैशाख माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम मोहिनी एकादशी है। इस एकादशी के दिन व्रत रखने से मनुष्य के सभी पाप तथा क्लेश समाप्त हो जाते हैं। इसके साथ ही व्यक्ति हर तरह के मोह जाल से मुक्त हो जाता है। इसलिए हर दुखी व्यक्ति को इस उपवास को अवश्य करना चाहिए, जिससे उसके सारे पाप नष्ट हो जाए। इसके साथ ही अब मैं आपको कथा सुनाता हूं।
प्राचीन समय की बात है सरस्वती नदी के किनारे भद्रावती नाम की एक नगर बसा हुआ था। उस नगर में द्युतिमान नामक राजा राज्य करता था। इसी नगर में एक धनपाल नामक का वैश्य रहता था, जो धन-धान्य से पूर्ण था। इसके साथ ही वह धार्मिक प्रवृत्ति होने के साथ-साथ नारायण का भक्त था। ऐसे में उसने नगर में अनेक भोजनालय, प्याऊ, कुएं, तालाब, धर्मशालायएं आदि बनवाएं थे। इसके साथ ही सड़को के किनारे आम, जामुन, नीम जैसे छायादार वृक्ष लगवाएं। जिससे वहां से निकलने वाले हर एक पथिक की थकान दूर होने के साथ सुख की प्राप्ति होगी। वहीं दूसरी ओर धनपाल के 5 पुत्र थे, जिनमें सबसे बड़ा पुत्र अत्यन्त पापी व दुष्ट था। वह वेश्याओं और दुष्टों की संगति करता था। इससे जो समय बचता था, उसे वह जुआ खेलने में व्यतीत करता था। वह बड़ा ही अधर्मि था और वह किसी भी देव-देवता या पितृ को नहीं मानता था। अपने पिता के द्वारा कमाए गए धन को वह बेकार की चीजों में उड़ा देता था। इसके साथ ही वह मांस- मदिरा का भी सेवन करता है। जब वैश्य ने अपने पुत्र की हालत देखी, तो उसे खूब समझाने-बुझाने की कोशिश की। लेकिन वह सफल नहीं हुआ, तो उसके पिता, भाइयों तथा कुटुम्बियों ने उसे घर से निकाल दिया और उसकी निंदा करने लगे। घर से निकलने के पश्चात वह अपने आभूषणों तथा वस्त्रों को बेच-बेचकर अपना जीवन-यापन करने लगा।
धन समाप्त हो जाने पर वेश्याओं तथा उसके दुष्ट साथियों ने भी उसका साथ छोड़ दिया। जब वह भूख-प्यास से व्यथित हो गया, तो उसने चोरी करने का विचाप बना लिया और वह रात्रि में चोरी करके अपना पेट पालने लगा। लेकिन ऐसा ज्यादा दिन तक नहीं चल सका और एक दिन वह पकड़ा गया। लेकिन जब उन्हें पता चला कि ये वैश्य का पुत्र है, तो सिपाहियों ने छोड़ दिया। लेकिन उसने चोरी बिल्कुल भी न बंद की। ऐसे में जब वह दूसरी बार पुनः पकड़ा गया, तब सिपाहियों ने भी उसका कोई लिहाज नहीं किया तथा राजा के सामने प्रस्तुत करके उसे सारी बात बताई। तब राजा ने उसे कारागार में डलवा दिया। कारागार में राजा के आदेश से उसे नाना प्रकार के कष्ट दिये गए तथा अंत में उसे नगर से निष्कासित करने का आदेश दिया गया। दुखी होकर उसे नगर छोड़ना पड़ा।
अब वह वन में पशु-पक्षियों को मारकर पेट भरने लगा। इसके बाद वह बहेलिया बन गया था और धनुष-बाण का इस्तेमाल करके वह वन के निरीह जीवों को मार-मारकर खाने और बेचने लगा। एक बार वह भूख एवं प्यास से व्याकुल होकर भोजन की खोज में निकला तथा कौण्डिन्य मुनि के आश्रम में जा पहुँचा।
इन दिनों वैशाख का महीना था। कौण्डिन्य मुनि गङ्गा स्नान करके आये थे। उनके भीगे वस्त्रों की छींटें मात्र से इस पापी पर पड़ गयीं, जिसके फलस्वरूप उसे कुछ सद्बुद्धि प्राप्त हुई। वह अधम, ऋषि के समीप पहुंचकर हाथ जोड़कर कहने लगा कि हे महात्मा! मैंने अपने जीवन में अनेक पाप किए हैं। ऐसे में कृपा करके आप इन पापों से छूटने का कोई साधारण तथा धन रहित उपाय बतलाइएं। ऐसे में ऋषि ने कहा, कि तू ध्यान देकर सुन, वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत रखना आरंभ कर दें, इस एकादशी का नाम मोहिनी है। इसका उपवास करने से तेरे सभी पाप नष्ट हो जाएंगे
ऋषि के वचनों को सुन वैश्य का पुत्र बहुत प्रसन्न हुआ और ऋषि द्वारा बतलायी हुई विधि के अनुसार मोहिनी एकादशी का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से उसके सभी पाप नष्ट हो गये तथा अन्त में वह गरुड़ पर सवार हो विष्णुलोक को गया।
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