शिव पुराण के अनुसार प्रत्येक महीने की त्रयोदशी तिथि भगवान शिव को समर्पित है। कहते हैं कि मासिक शिवरात्रि भगवान शिव और देवी पार्वती के मिलन का दिन है। हर माह की कृष्णपक्ष की त्रयोदशी तिथि को मासिक शिवरात्रि के रूप में जाना जाता है। कहते हैं कि जो मनुष्य मासिक शिवरात्रि के दिन भक्ति-भाव से भोलेनाथ की आराधना करता है उसकी हर मनोकामना शीघ्र ही पूरी होती है। शिव को भोलेनाथ भी कहा जाता है। उन्हें भोलेनाथ इसलिए कहा जाता है क्योंकि ये अपने भक्तों की थोड़ी सी भक्ति में ही प्रसन्न हो जाते हैं और मनवांछित फल प्रदान करते हैं। आगे जानते हैं कि शिवरात्रि व्रत की व्रत कथा, पूजा-विधि और महत्व क्या है।
महत्व: मासिक शिवरात्रि शिव को प्रसन्न करने के लिए सबसे उत्तम माना गया है। शिव को प्रसन्न करने के लिए महाशिवरात्रि के बाद मासिक शिवरात्रि को सर्वोत्तम माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार हर माह की त्रयोदशी तिथि को मासिक शिवरात्रि के तौर पर मनाया जाता है। इस बार यह मासिक शिवरात्रि 02 फरवरी, माघ कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को है। मासिक शिवरात्रि को शिव और शक्ति को प्रसन्न करने हेतु अच्छा माना गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मासिक शिवरात्रि के दिन महादेव शिवलिंग रूप में प्रकट हुए थे। इसलिए यह दिन शिव की पूजा अर्चना हेतु बेदह खास होता है। साथ ही ऐसा माना जाता है कि इस दिन लक्ष्मी, सरस्वती और सीता-सावित्री आदि ने भी शिव को प्रसन्न करने हेतु व्रत किया था।
पूजा विधि: शिवरात्रि व्रत में शिव की पूजा प्रदोष काल यानि दिन और रात के मिलन के समय की जाती है। इसलिए प्रदोष काल में पूजा करें। उपवास में अन्न नहीं खाया जाता है, इसलिए व्रत में किसी भी प्रकार का अन्न ग्रहण न करें। दोनों वक्त फलाहार ही करें।
शिव पूजा में रुद्राभिषेक का विशेष महत्व प्रदान किया गया है। इसलिए इस दिन रुद्राभिषेक अवश्य करें। जलाभिषेक भी कर सकते हैं।
शिव जी की पूजा में शिव स्तुति, शिव पंचाक्षर मंत्र, शिव अष्टक, शिव चालीसा, शिव के श्लोक और सहस्त्र नाम का पाठ किया जाता है।
शिव पूजन में ॐ नमः शिवाय के उच्चारण को भी बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। इसलिए पूजा के समय कम से कम 108 बार ॐ नमः शिवाय मंत्र का जाप करें।


