Manikarnika Ghat Cremation: भारत एक आस्था और परंपराओं से भरा हुआ देश है। यहां हर तीर्थ स्थल का अपना अलग महत्व है, यहां के कुछ नियम और मान्यताएं भी हैं जो वर्षों से चली आ रही हैं। इन्हीं में से एक क्षेत्र काशी है, जिसे सबसे पवित्र माना जाता है। काशी को मोक्षदायिनी नगरी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि यहां मृत्यु होने से आत्मा को मोक्ष मिलता है और दोबारा जन्म नहीं लेना पड़ता। यही कारण है कि बहुत से लोग अपने जीवन के अंतिम समय में काशी जाना चाहते हैं या चाहते हैं कि उनका अंतिम संस्कार काशी में हो। काशी के प्रसिद्ध मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाट को श्मशान घाटों में सबसे पवित्र माना जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यहां सभी शवों का अंतिम संस्कार नहीं किया जाता? दरअसल, इसके पीछे धार्मिक मान्यताओं के साथ-साथ वैज्ञानिक कारण भी हैं। ऐसे में आइए जानते हैं कि काशी के मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाट जैसे श्मशानों में किन शवों का अंतिम संस्कार नहीं किया जाता है।
सर्पदंश से मरने वाले
जिनकी मृत्यु सर्पदंश यानी सांप के काटने से होती है, उनका अंतिम संस्कार मणिकर्णिका घाट पर नहीं होता। ऐसा माना जाता है कि सर्पदंश के बाद भी शरीर में कुछ समय तक प्राण शक्ति बनी रह सकती है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से कहा जाता है कि सर्पदंश से मृत व्यक्ति के मस्तिष्क में 21 दिनों तक ऑक्सीजन की थोड़ी मात्रा बनी रह सकती है। इस कारण ऐसी मान्यता है कि कोई वैद्य या तकनीशियन व्यक्ति को दोबारा जीवित कर सकता है। इसलिए ऐसे शवों को दाह नहीं दिया जाता, बल्कि केले के तने में बांधकर गंगा में प्रवाहित कर दिया जाता है।
संतों के शव
काशी में संतों और महात्माओं के शवों का भी दाह संस्कार नहीं किया जाता। संतों को आत्मज्ञानी और मोक्ष प्राप्त व्यक्ति माना जाता है। उनकी देह को जलाना अशुभ माना जाता है। ऐसे शवों को या तो ‘थल समाधि’ दी जाती है यानी जमीन में दफनाया जाता है या फिर जल समाधि दी जाती है यानी गंगा में प्रवाहित किया जाता है।
12 वर्ष से कम उम्र के बच्चे
धार्मिक मान्यता के अनुसार छोटे बच्चों को निष्पाप माना जाता है, इसलिए उनके लिए दाह संस्कार की आवश्यकता नहीं होती। काशी में 12 साल से कम उम्र के बच्चों के शवों को जलाने के बजाय विशेष विधि से जमीन में दफनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि वे सीधे ईश्वर के समीप पहुंच जाते हैं, इसलिए उन्हें अग्नि संस्कार की जरूरत नहीं होती।
गर्भवती महिलाओं का शव
अगर किसी महिला की मृत्यु गर्भवस्था के दौरान हो जाए, तो उसका अंतिम संस्कार मणिकर्णिका घाट पर नहीं किया जाता। धार्मिक और व्यावहारिक कारणों से ऐसा करना मना है। माना जाता है कि अग्नि संस्कार के दौरान यदि गर्भ में पल रहे शिशु का शरीर बाहर आ जाए, तो वह अधजला रह सकता है और उसे उचित क्रिया नहीं मिलती। चूंकि छोटे बच्चों को जलाना भी मना है, इसलिए गर्भवती महिला का शव भी जलाना वर्जित होता है।
कुष्ठ या चर्म रोग से मरने वाले लोग
जो लोग किसी गंभीर चर्म रोग या कुष्ठ रोग से ग्रसित होते हैं, उनका अंतिम संस्कार भी काशी के घाटों पर नहीं किया जाता। इसका मुख्य कारण यह है कि शव को जलाने से हवा में बैक्टीरिया फैल सकते हैं, जिससे काशी आने वाले हजारों श्रद्धालुओं को संक्रमण का खतरा हो सकता है।
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