Mangla Gauri Vrat 2024 Katha, Puja Vidhi: श्रावण मास के हर एक सोमवार के दिन भगवान शिव की पूजा करने का विधान है। वैसे ही हर सावन के मंगलवार के दिन मंगला गौरी व्रत रखा जाता है। इस दिन शिव जी के साथ मां पार्वती की विधिवत पूजा करने के साथ व्रत रखने का विधान है। मान्यता है कि इस दिन पूजा-अर्चना करने से दांपत्य जीवन में आने वाली हर एक समस्या से निजात मिल जाती है और जीवन में खुशियां ही खुशियां बनी रहती है। आज सावन का दूसरा मंगला गौरी व्रत रखा जा रहा है। आइए जानते हैं शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, व्रत कथा और आरती…

सावन का दूसरा मंगला गौरी व्रत शुभ मुहूर्त (Mangala Gauri Vrat Muhurat)

द्रिक पंचांग के अनुसार, आज सुबह 8 बजकर 02 मिनट से लेकर सुबह 09 बजक 36 मिनट तक था। इसके बाद दोपहर 02 बजकर 43 मिनट से 03 बजकर 37 मिनटतक विजय मुहूर्त बन रहा है।

मंगला गौरी व्रत पूजा विधि (Mangala Gauri Vrat Puja Vidhi)

आज के दिन एक समय अन्न ग्रहण करके मां पार्वती की पूजा-अर्चना की जाती है। आज मां पार्वती की पूजा करते समय हर एक चीज की संख्या 16 रखी जाती है। इसलिए उन्हें 16 मालाएं के साथ फूल,लौंग, सुपारी, इलायची, फल, पान, लड्डू, सुहाग की सामग्री के साथ भोग लगाएं। इसके बाद 5 प्रकार के सूखे मेवे, 7 प्रकार के अनाज (गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर) आदि चढ़ाएं। फिर घी का दीपक और धूप जलाकर मां पार्वत मंत्र, चालीसा का पाठ करने के साथ मंगला गौरी व्रत कथा और अंत में आरती कर लें।

मंगला गौरी व्रत कथा (Mangala Gauri Vrat Katha)

पौराणिक कथा के अनुसार, बहुत समय पहले एक धर्मपाल नाम का सेठ था। उसके पास अपार धन-दौलत थी। लेकिन वंश बढाने के लिए उसके कोई संतान नहीं थी। इस वजह से सेठ और उसकी पत्नी काफी दुखी रहते थे। जिसके चलते सेठ ने वह सब कार्य किए, जिससे उन्हें संतान की प्राप्त हो। इसके अलावा कई जप-तप, ध्यान और अनुष्ठान किए, जिससे देवी प्रसन्न हुईं। ऐसे में देवी ने सेठ से मनचाहा वर मांगने को कहा, तब सेठ ने कहा कि मां मैं सर्वसुखी और धनधान्य से समर्थ हूं, परंतु मैं संतानसुख से वंचित हूं मैं आपसे वंश चलाने के लिए एक पुत्र का वरदान मांगता हूं। देवी ने कहा, सेठ तुमने यह बहुत दुर्लभ वरदान मांगा है। लेकिन तुम्हारे जप-तप से प्रसन्न होकर मैं तुम्हें वरदान तो दे देती हूं। लेकिन इस बात का ध्यान रखना कि तुम्हारा पुत्र केवल 16 साल तक ही जीवित रहेगा। यह बात सुनकर सेठ और सेठानी काफी दुखी हुए लेकिन उन्होंने वरदान स्वीकार कर लिया।

देवी के वरदान से सेठानी गर्भवती हुई और उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया। सेठ ने अपने पुत्र का नामकरण संस्कार किया और उसका नाम चिरायु रखा। समय बीतता गया और सेठ-सेठानी को पुत्र की मृत्यु की चिंता सताने लगी। तब किसी विद्वान ने सेठ से कहा कि यदि वह अपने पुत्र का विवाह ऐसी कन्या से करा दे जो मंगला गौरी का व्रत रखती हो। इसके फलस्वरूप कन्या के व्रत के फलस्वरूप उसके वर को दीर्घायु प्राप्त होगी। सेठ ने विद्वान की बात मानकर अपने पुत्र का विवाह ऐसी कन्या से ही किया, जो मंगला गौरी का विधिपूर्वक व्रत रखती थी। इसके परिणामस्वरूप चिरायु का अकाल मृत्युदोष स्वत: ही समाप्त हो गया और राजा का पुत्र नामानुसार चिरायु हो उठा। इस तरह जो भी स्त्री या कुंवारी कन्या पूरे श्रद्धाभाव से मां मंगला गौरी का व्रत रखती हैं उनकी सभी मनोरथ पूर्ण होती हैं और उनके पति को दीर्घायु प्राप्त होती है।

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