Mangalnath Mandir: उज्जैन को कालों के काल महाकाल की नगरी कहा जाता है और महाकाल की इस नगरी में बहती शिप्रा नदी मोक्षदायिनी क्षिप्रा कहा जाता है। शिप्रा के पवित्र तटों पर जन्मी आध्यात्मिक संस्कृति की बदौलत ही शास्त्रों में ये नगर उज्जैयनी के नाम से विख्यात हुआ और ये ही उज्जैयनी पुराणों में मंगल की जननी भी कहलाई. यहां अमंगल को मंगल में बदलने वाले भगवान मंगलनाथ भी हैं। इस मंदिर में देश से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लोग अपनी कुंडली के मंगल दोष के निवारण के लिए आते हैं। तो आइए आपको इस मंदिर के महत्व और प्राचीन इतिहास के बारे में बताते हैं।
जानिए क्या है मंदिर का पौराणिक इतिहास:
मत्स्य पुराण के अनुसार मंगलनाथ ही मंगल का जन्म स्थान माना गया है। कहा जाता है कि अंधकासुर नामक दैत्य को भगवान शिव का वरदान प्राप्त था कि उसके रक्त की बूंदों से सैकड़ों दैत्य जन्म लेंगे। इसी वरदान के चलते अंधकासुर पृथ्वी पर उत्पात मचाने लगा। इस पर सभी ने भगवान शिव से प्रार्थना की। उन्होंने अंधकासुर के अत्याचार से सभी को मुक्त करने के लिए उससे युद्ध करने का निर्णय लिया। दोनों के बीच भयानक युद्ध हुआ। इस युद्ध में भगवान शिव का पसीना बहने लगा जिसकी गर्मी से धरती फट गई और उससे मंगल का जन्म हुआ। इस नवउत्पन्न मंगल ग्रह ने दैत्य के शरीर से उत्पन्न रक्त की बूंदों को अपने अंदर सोख लिया। इसी कारणवश मंगल का रंग लाल माना गया है।
यह मंदिर बहुत पुराना है लेकिन इसके जीर्णोद्धार का श्रेय सिंधिया राजघराने को जाता है। दरअसल मंगलनाथ मंदिर में भगवान शिव ही मंगलनाथ के रूप में विराजमान हैं। मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव, एक शिवलिंग के रूप में स्थापित हैं। वैसे तो सम्पूर्ण उज्जैन ही सनातन ज्ञान का एक महान केंद्र है लेकिन महाकाल मंदिर और मंगलनाथ दोनों ही खगोल अध्ययन के केंद्र भी माने गए हैं।
भगवान मंगलनाथ का इतिहास:
कहा जाता है कि ये मंदिर सदियों पुराना है। सिंधिया राजघराने ने इसका पुनर्निर्माण करवाया था। यहां की गई मंगल की पूजा का विशेष महत्व है। भक्तों द्वारा यहां मंगलनाथ को शिव रुप में ही पूजा जाता है। मंगलवार के दिन यहां श्रद्धालु दूर-दूर से चले आते रहे हैं। (यह भी पढ़ें)- Shani Uday 2022: कर्मफल दाता शनि देव होने जा रहे हैं उदय, इन 6 राशि वालों को हो सकता है जबरदस्त धनलाभ
मंगल दोष किया जाता है निवारण:
इस मंदिर में किसी भी तरह के अमंगल को मंगल में बदलने का सामर्थ्य है। यहां भारत ही नहीं अपितु विदेशों में रहने वाले लोग भी अपनी कुंडली के मंगल दोष के निवारण के लिए आते हैं। जिन लोगों को ज्योतिषशास्त्र और कर्मकांड में भरोसा है उनके लिए यह मंदिर विशेष महत्व का है।
मंगलनाथ मंदिर में मंगल की शांति के लिए विधि-विधान से पूजा-पाठ का आयोजन किया जाता है। इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है यहां की भात पूजा। इस विशेष पूजा के दौरान मंदिर में स्थापित भगवान शिव का भात श्रृंगार किया जाता है। कुंडली में मंगल दोष के निवारण के लिए भक्तों के द्वारा मंदिर में भात पूजा कराई जाती है। अत्यंत पवित्र क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित होने के कारण इस मंदिर का और यह होने वाली पूजा का महत्व और भी बढ़ जाता है। इसके अलावा इस मंदिर में नवग्रह पूजा भी संपन्न होती है। (यह भी पढ़ें)- Maha Shivratri 2022: महाशिवरात्रि पर करियर के अनुसार धारण करें ये रुद्राक्ष, लग सकती है बड़ी सफलता हाथ