Ketki Ka Phool: महाशिवरात्रि का पर्व हर साल बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल महाशिवरात्रि 26 फरवरी 2025 को मनाई जाएगी। इस दिन शिव भक्त भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए विधिपूर्वक पूजा-अर्चना करते हैं और उन्हें तरह-तरह के फूल, बेलपत्र और माला अर्पित करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक फूल ऐसा है, जिसको भगवान शिव पर चढ़ाना मना है? यह फूल है केतकी का फूल। शास्त्रों में इस फूल को शिवलिंग पर चढ़ाना वर्जित माना गया है। दरअसल, इसके पीछे एक बहुत ही दिलचस्प पौराणिक कहानी है। ऐसे में आइए जानते हैं केतकी का फूल शिवलिंग पर क्यों नहीं चढ़ाया जाता है और इस फूल को क्या शाप मिला है। जानिए पौराणिक कथा…
केतकी के फूल से जुड़ी पौराणिक कथा
केतकी के फूल और भगवान शिव की यह कथा त्रेतायुग से जुड़ी हुई है और इसे शिव पुराण में भी बताया गया है। कथा के अनुसार, एक समय की बात है, जब भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु के बीच यह विवाद चल पड़ा कि कौन सबसे श्रेष्ठ है। दोनों में यह तर्क-वितर्क होने लगा कि कौन श्रेष्ठ है और किसकी पूजा अधिक करनी चाहिए। तब भगवान शिव ने यह विवाद सुलझाने के लिए एक बहुत विशाल अग्निस्तंभ (ज्योतिर्लिंग) के रूप में प्रकट हुए। यह ज्योतिर्लिंग इतना बड़ा और दिव्य था कि इसका न कोई अंत दिख रहा था, न ही कोई शुरुआत। भगवान शिव ने ब्रह्मा और विष्णु से कहा कि जो कोई भी इस ज्योतिर्लिंग के अंत या शुरुआत को खोजेगा, वही सबसे श्रेष्ठ माना जाएगा।
ज्योतिर्लिंग का अंत और शुरुआत खोजने की कोशिश
इसके बाद भगवान विष्णु ने वराह रूप धारण किया और पृथ्वी के गर्भ में जाकर इस ज्योतिर्लिंग का आदि यानी शुरुआत खोजने की कोशिश की। वहीं, भगवान ब्रह्मा हंस के रूप में आकाश में उड़ गए और उन्होंने इस ज्योतिर्लिंग के अंत को खोजने की कोशिश की। लेकिन दोनों ही भगवान, विष्णु और ब्रह्मा ज्योतिर्लिंग का आदि और अंत नहीं ढूंढ पाए। विष्णु जी ने हार मान ली और उन्होंने भगवान शिव से यह सच्चाई कह दी कि वे इसका आदि नहीं खोज पाए। ब्रह्मा जी आकाश में ऊपर और ऊपर तक उड़ते रहे, लेकिन उन्हें भी शिवलिंग का अंत नहीं मिला। लेकिन ब्रह्माजी ने हार नहीं मानी बल्कि उन्होंने केतकी के फूल के साथ मिलकर नई कहानी बनाई।
केतकी के फूल से झूठी गवाही
पौराणिक कथा के अनुसार, ब्रह्माजी को अंत तो नहीं मिला, लेकिन एक केतकी का फूल मिल गया। ब्रह्माजी ने उस फूल से कहा कि वह साक्षी बने और बताए कि उन्होंने शिवलिंग के अंत को ढूंढ लिया है। हालांकि, केतकी के फूल को भी इस बारे में कुछ नहीं पता था, फिर भी ब्रह्माजी ने उसे झूठ बोलने के लिए मजबूर किया। उन्होंने कहा कि यह फूल इस बात का गवाह है कि उन्होंने शिवलिंग के अंत को खोज लिया है। भगवान शिव तो स्वयं सारा सच जानते थे। उन्हें केतकी की इस झूठी गवाही पर गुस्सा आ गया और उन्होंने यह श्राप दिया कि अब से इस फूल का उपयोग भगवान शिव की पूजा में कभी नहीं होगा। यह भी कहा जाता है कि भगवान शिव ने ब्रह्माजी को भी क्रोध में आकर श्राप दिया।
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