Lord Shiva-Mata Parvati Marriage Story: हिंदू धर्म में महाशिवरात्रि का पर्व बेहद ही पवित्र और महत्वपूर्ण माना जाता है। यह पर्व हर साल फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। पंचांग के अनुसार, इस साल महाशिवरात्रि 26 फरवरी 2025 को मनाई जाएगी। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। शिवपुराण के अनुसार, माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी, जिसके बाद शिवजी ने उनसे विवाह किया। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह विवाह कहां हुआ था? भगवान शिव ने किस स्थान पर माता पार्वती के साथ सात फेरे लिए थे? आइए जानते हैं इस पवित्र स्थान के बारे में।
त्रियुगीनारायण – जहां हुआ था शिव-पार्वती का विवाह
भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित त्रियुगीनारायण गांव में हुआ था। यह स्थान कभी हिमालयराज की राजधानी हुआ करता था और यहां माता पार्वती का मायका था। त्रियुगीनारायण गांव को शिव-पार्वती विवाह स्थल के रूप में जाना जाता है और यहां त्रियुगीनारायण मंदिर इस पवित्र विवाह का गवाह है।
कैसे हुई थी विवाह की तैयारी?
जब भगवान शिव ने माता पार्वती के विवाह प्रस्ताव को स्वीकार किया, तब माता के पिता राजा हिमालय ने बड़े धूमधाम से शादी की तैयारियां शुरू कर दी थीं। इस विवाह में भगवान विष्णु माता पार्वती के भाई बने थे और विवाह की सभी रस्में पूरी करवाईं। भगवान ब्रह्मा इस विवाह के पुरोहित थे, इसलिए मंदिर के सामने ब्रह्मशिला नामक एक पत्थर भी स्थित है, जिसे विवाह स्थल माना जाता है।
यहां स्थित है तीन जलकुंड
विवाह से पहले सभी देवी-देवताओं ने पवित्र स्नान किया था, जिसके लिए यहां तीन कुंड बनाए गए थे। जिन्हें – रुद्रकुंड, विष्णुकुंड और ब्रह्मकुंड कहते हैं। इन तीनों कुंडों में जल सरस्वती कुंड से आता है, जिसके बारे में मान्यता है कि यह भगवान विष्णु की नासिका से उत्पन्न हुआ था। कहा जाता है कि इन कुंडों में स्नान करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है।
तीन युगों से जल रही है अखंड धूनी
त्रियुगीनारायण मंदिर की सबसे खास बात यह है कि यहां एक अग्निकुंड है, जो तीनों युगों (सत्ययुग, द्वापरयुग और त्रेतायुग) से जल रहा है। इसे त्रिर्युगी नारायण मंदिर की अंखड धुनी भी कहा जाता है। मान्यता है कि इसी पवित्र अग्नि को साक्षी मानकर भगवान शिव और माता पार्वती ने सात फेरे लिए थे। यही कारण है कि भक्त इस अग्निकुंड की राख को प्रसाद के रूप में अपने घर ले जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस राख को हमेशा अपने साथ रखने से वैवाहिक जीवन सुखी बना रहता है और इसमें कोई परेशानी नहीं आती।
भगवान शिव को विवाह में मिली थी एक गाय
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, विवाह के दौरान भगवान शिव को उपहार में एक गाय मिली थी, जिसे त्रियुगीनारायण मंदिर के पास एक विशेष स्थान पर बांधा गया था। इस स्तंभ को आज भी संजोकर रखा गया है और यहां आने वाले श्रद्धालु इसे देखने जरूर जाते हैं।
गौरीकुंड – जहां माता पार्वती ने की थी तपस्या
माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए कठिन तपस्या की थी। यह तपस्या गौरीकुंड में की गई थी, जो त्रियुगीनारायण से कुछ ही दूरी पर स्थित है। खास बात यह है कि गौरीकुंड का पानी हमेशा गर्म रहता है, चाहे सर्दी हो या गर्मी। यह भी एक धार्मिक स्थल है, जहां श्रद्धालु स्नान कर पुण्य प्राप्ति की कामना करते हैं।
हर साल लगता है भव्य मेला
त्रियुगीनारायण में हर साल सितंबर माह की बावन द्वादशी तिथि पर एक बड़ा मेला लगता है, जिसमें हजारों श्रद्धालु शामिल होते हैं। यह मेला भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह की याद में मनाया जाता है।
कैसे पहुंचे त्रियुगीनारायण?
अगर आप भी भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह स्थल के दर्शन करना चाहते हैं, तो उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित त्रियुगीनारायण गांव जा सकते हैं। निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है और सबसे नजदीकी हवाई अड्डा जॉली ग्रांट एयरपोर्ट, देहरादून है।
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