Mahakumbh History: महाकुंभ भारत का सबसे पवित्र धार्मिक मेला है जिसका आयोजन हर 12 वर्षों पर किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि महाकुंभ में स्नान करने से जीवन के सारे दुख दूर हो जाते हैं और पापों का नाश होता है। इस साल प्रयागराज में महाकुंभ 13 जनवरी 2025 से शुरू हुआ है और 26 फरवरी 2025 को महाशिवरात्रि तक चलेगा। इस दौरान देश-विदेश से कई श्रद्धालु संगम में डुबकी लगाने के लिए आते हैं। इस दौरान अमृत स्नान का विशेष महत्व होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अमृत स्नान करने से जातकों को मोक्ष की प्राप्ति होती है, इसके साथ ही परिवार में सुख-समृद्धि आती है। वहीं, महाकुंभ में नागा बाबाओं से लेकर कई साधु-संत भी आते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि महाकुंभ की शुरुआत कैसे हुई थी? आपको बता दें कि कुछ पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, भगवान विष्णु को समुद्र से मिला एक श्राप की वजह से महाकुंभ आरंभ हुआ था। यहां पढ़ें पौराणिक कथा…

शंख ने भगवान विष्णु से की कर देने की मांग

महाकुंभ की शुरुआत एक पौराणिक घटना से जुड़ी है। कहते हैं कि भगवान विष्णु को एक बार समुद्र देव से श्राप मिला था। समुद्र देव का एक पुत्र था जिसका नाम शंख था। शंख को समुद्र, पाताल और नागलोक से कर वसूलने की जिम्मेदारी दी गई थी। एक दिन असुरों ने शंख को भड़काया कि वह भगवान विष्णु से भी कर वसूले, क्योंकि उनका राज्य समुद्र के पास ही था। असुरों की बातों में आकर शंख, भगवान विष्णु के पास कर मांगने पहुंच गया। विष्णु भगवान ने उसे समझाने की कोशिश की, लेकिन शंख नहीं माना। बहस के दौरान शंख ने माता लक्ष्मी के बारे में अपमानजनक बातें कह दीं। इससे नाराज होकर भगवान विष्णु ने अपनी गदा से शंख का वध कर दिया।

समुद्र देव का गुस्सा और श्राप

जब समुद्र देव को अपने पुत्र की मृत्यु की खबर मिली, तो वे बेहद गुस्सा हुए। वे भगवान विष्णु के पास पहुंचे और बिना पूरी बात सुने ही उन्हें श्राप दे दिया। उन्होंने कहा कि मेरे बेटे की मृत्यु देवी लक्ष्मी के कारण हुई है, इसलिए लक्ष्मी जी समुद्र में समा जाएंगी। इसके बाद देवी लक्ष्मी समुद्र में चली गईं।

समुद्र मंथन और लक्ष्मी जी की वापसी

भगवान विष्णु ने देवी लक्ष्मी को वापस लाने के लिए समुद्र मंथन करवाया। इस मंथन में कई बहुमूल्य चीजें निकलीं, जिनमें देवी लक्ष्मी भी थीं। देवी लक्ष्मी के वापस आने के बाद भगवान विष्णु ने उनसे विवाह किया।

ऐसे जुड़ा महाकुंभ से नाता

समुद्र मंथन के दौरान अमृत का कलश निकला, जिसे लेकर देवताओं और असुरों के बीच युद्ध हुआ। इस दौरान अमृत की बूंदें चार जगहों पर गिरीं—प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक। यही वजह है कि इन जगहों पर कुंभ मेले का आयोजन होता है। इसलिए कहीं न कहीं विष्णु जी को मिला श्राप भी महाकुंभ के आयोजन की एक वजह है। आपको बता दें कि महाकुंभ सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह हमारी पौराणिक कथाओं और परंपराओं से जुड़ा है।

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