Mahabharat Yudh Katha: अर्धम पर धर्म की स्थापना के लिए महाभारत का युद्ध लड़ा गया। जिसमें कौरवों और पांडवों दोनों की तरफ से कई महान योद्धाओं ने युद्ध भूमि में अपने प्राण त्याग दिये। भीष्म पितामह, गुरु द्रोण, कर्ण, जयद्रथ, दुर्योधन ऐसे महारथी थे जिन्हें हराने के लिए छल का सहारा लेना पड़ा। जानिए कैसे इन महायोद्धाओं को हराया गया…
भीष्म: महाभारत के महायुद्ध के सबसे सर्वश्रेष्ठ योद्धाओं में इनका नाम आता है। इन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था। भीष्म बेहद ही पराक्रमी और भगवान परशुराम के शिष्य थे। अपनी राजभक्ति के कारण इन्होंने कौरवों की तरफ से युद्ध में हिस्सा लिया। भीष्म को हराये बिना महाभारत युद्ध में पांडवों की विजय असंभव थी। ऐसी स्थिति में भगवान श्री कृष्ण की सलाह से अर्जुन अपने रथ पर शिखंडी को लेकर आते हैं जो न पुरुष था न स्त्री। शिखंडी का जन्म से एक ही लक्ष्य था भीष्म की मृत्यु। भीष्म शिखंडी को एक स्त्री मानते थे और इस बात का ज्ञान पांडवों को था। भीष्म ने स्त्री पर अस्त्र-शस्त्र नहीं उठाने की प्रतिज्ञा ली थी जिसका लाभ उठाते हुए अर्जुन ने युद्ध के दसवें दिन भीष्म को बाणों से छलनी कर दिया और भीष्म बाणों की शैय्या पर लेटे-लेटे अंत तक युद्ध देखते रहे।
गुरु द्रोण: कौरवों और पांडवों के गुरु द्रोण भी एक महान योद्धा थे। भीष्म के बाद इन्हें ही कौरवों ने युद्ध में अपना सेनापति बनाया। इन्हें हरा पाना भी असंभव था। इसलिए द्रोण को मारने के लिए छल का सहारा लेना पड़ा। द्रोण का अपने पुत्र अश्वत्थामा से काफी लगाव था भीम ने अश्वत्थामा नाम के हाथी को मार दिया और द्रोणाचार्य तक भीम ने ये बात पहुंचाई की उसने उनके पुत्र का वध कर दिया है। लेकिन गुरु द्रोण को भीम की बात पर यकीन नहीं हुआ तब द्रोण ने युधिष्ठिर से पूछा कि क्या भीम सच कह रहा है? तब युधिष्ठिर ने कहा कि अश्वत्थामा मारा गया, लेकिन यह नर भी हो सकता है और हाथी भी। जब युधिष्ठिर हाथी वाली बात कह रहे थे उस समय श्री कृष्ण ने शंखनाद कर दिया जिससे द्रोण बस अपने बेटे के मरने की बात सुन पाए और उन्होंने अपने अस्त शस्त्र रख दिए। मौके का फायदा उठाकर द्रौपदी के भाई धृष्टद्युम्न ने द्रोणाचार्य का वध कर दिया।
जयद्रथ: ये दुर्योधन के जीजा थे। जिनके कारण कौरवों ने मिलकर अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु का वध किया था। इससे क्रोधित होकर अर्जुन ने जयद्रथ की सूर्यास्त तक वध करने की प्रतिज्ञा ली। कौरवों की पूरी सेना जयद्रथ के बचाव करने में लग गई। जिस कारण उसका वध कर पाना असंभव था। ऐसे में कृष्ण जी ने एक चाल चली उन्होंने अपनी माया से सूर्य को ढक दिया जिससे सबने समझा शाम हो गई। क्योंकि युद्ध सूर्यास्त के बाद नहीं लड़ा जाता इस कारण जयद्रथ अर्जुन के पास खुद आ गया। श्री कृष्ण के कहने पर अर्जुन ने जयद्रथ का वध कर दिया और फिर से सूर्यदेव प्रकट हो गए।
कर्ण: कर्ण ने भगवान परशुराम से शिक्षा ली थी। लेकिन उन्होंने ये शिक्षा अपने आप को ब्राह्मण बताकर ली थी जिस कारण परशुराम ने कर्ण को शाप दिया कि वह उस समय अपने विद्या भूल जाएगा जब उसे सबसे ज्यादा इसकी जरूरत पड़ेगी। अर्जुन से युद्ध करते हुए कर्ण के रथ का पहिया भूमि में धंस जाता है। उस समय निहत्थे कर्ण पर अर्जुन दिव्यास्त्र चलाकर उनका वध कर देते हैं। भगवान परशुराम के शाप के कारण कर्ण इस आखिरी समय में अपनी विद्या भूल जाते हैं।
दुर्योधन: महाभारत युद्ध के अंत में दुर्योधन का वध छल पूर्वक किया गया था। मां की तपस्या के कारण दुर्योधन का शरीर वज्र का बन गया था। दुर्योधन और भीम के बीच गदा युद्ध हुआ जिसमें कमर से ऊपर प्रहार करने का नियम था। लेकिन श्री कृष्ण के कहने पर भीम ने दुर्योधन की कमर के नीचे वार किया जो उसका निर्बल हिस्सा था। बाकी का शरीर दुर्योधन का वज्र का हो गया था। इस तरह छल पूर्वक दुर्योधन का अंत हुआ।