Mahabharat: महाभारत के युद्ध में कई वीर योद्धाओं ने अपनी जान गवां दी थी। तो कुछ योद्धा ऐसे भी थे जो जीवित बच गए थे। शास्त्रो अनुसार कौरवों पांडवों के इस युद्ध में 3 कौरवों की तरफ से तो 15 लोग पांडवों की तरफ से बचे थे। कौरवों में कृतवर्मा, कृपाचार्य और अश्वत्थामा जबकि पांडवों में युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम, नकुल, सहदेव, कृष्ण, सात्यकि, युयुत्सु आदि थे। पर यहां आप जानेंगे महाभारत काल के समय में रहे उन लोगों के बारे में जिन्हें आज भी जीवित माना जाता है या यूं कहें कि ये लोग अजर अमर हैं…
1. महर्षि वेद व्यास- ये मत्सय कन्या सत्यवती के पुत्र थे। इन्होंने ही वेदों के भाग किये थे जिस कारण इन्हें वेद व्यास के नाम से जाना जाने लगा। कहा जाता है कि इन्होंने ही महाभारत गणेश जी से लिखवाई थी। धृतराष्ट्र, पांडु और विदुर इन्हीं के पुत्र माने जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि वेद व्यास कलिकाल के अंत तक जीवित रहेंगे।
2. महर्षि परशुराम- प्रभु परशुराम रामायण काल के पहले से ही जीवित माने जाते हैं। रामायण में जब श्रीराम सीता स्वयंवर के मौके पर शिव का धनुष तोड़ देते हैं तब भगवान परशुराम यह देखने के लिए सभा में आते हैं कि धनुष किसने तोड़ा है। महाभारत में ये भीष्म के गुरु बने थे। कर्ण को ब्रह्मास्त्र की शिक्षा भी इन्होंने ही दी थी। मान्यता है कि परशुराम भी चिरंजीवी हैं। कहा जाता है कि इनकी कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें कल्प के अंत तक तपस्यारत भूलोक पर रहने का वर दिया था।
3. महर्षि दुर्वासा- ये बेहद ही क्रोधित ऋषि माने गये हैं। इन्हें प्रसन्न करना बेहद ही कठिन था। महाभारत काल में कुंति ने इन्हें अपनी तपस्या से प्रसन्न कर लिया था जिसके फलस्वरूप इन्होंने कुंति को एक मंत्र बताया। इस मंत्र से कुंति जब चाहें किसी भी देवता के आवाहन करके अपने लिए पुत्र की प्राप्ति कर सकती थीं। महर्षि दुर्वासा को भी चिरंजीवी होने का वरदान प्राप्त है।
4. अश्वत्थामा- ये पांडवों और कौरवों के गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र थे। अश्वत्थामा को कोई हरा नहीं सकता था। भगवान श्रीकृष्ण ने इसकी तीसरी आंख नष्ट करके इसे 3 हजार वर्षों तक सशरीर भटकने का श्राप दिया था। हालांकि इसमें संदेह है कि अश्वत्थामा आज भी जिंदा है या नहीं क्योंकि कुछ लोगों का मानना है कि वे कलयुग के अंत में जब कल्कि अवतार होगा तो उनके साथ मिलकर धर्म के खिलाफ लड़ेगा।
5. ऋषि मार्कण्डेय- ऋषि मार्कण्डेय भगवान शिव के परम भक्त माने जाते थे। कहा जाता है कि इन्होंने शिवजी को तप के द्वारा प्रसन्न कर लिया था और महामृत्युंजय मंत्र सिद्धि के कारण ये चिरंजीवी बन गए थे। कहा जाता है कि मार्कण्डेय ऋषि वनवास के दौरान युधिष्ठिर को रामायण सुनाकर धैर्य रखने की सलाह देते हैं।