Mahabharat Ki Kahani: महाभारत का युद्ध सिर्फ दो परिवारों के बीच नहीं था, बल्कि यह धर्म और अधर्म की लड़ाई थी। इस युद्ध में कौरवों के पास 11 अक्षौहिणी सेना थी, जबकि पांडवों के पास सिर्फ सात। इसके बावजूद पांडव लगातार कौरवों को हराते जा रहे थे। यह देखकर दुर्योधन परेशान हो गए और गुस्से में अपने सेनापति और पितामह भीष्म पर पांडवों का पक्ष लेने का आरोप लगाया। भीष्म को यह सुनकर बहुत बुरा लगा। उन्होंने दुर्योधन से कहा कि वह अगले दिन पांच दिव्य बाणों से पांचों पांडवों का वध कर देंगे। इन बाणों को उन्होंने मंत्रों से अभिमंत्रित किया। लेकिन महाभारत में एक प्रसंग ऐसी भी है, जहां दुर्योधन ने अर्जुन को एक वरदान दिया था। ऐसे में आइए जानते हैं क्या है वह प्रसंग।
अर्जुन को वरदान कैसे मिला?
यह कहानी महाभारत युद्ध से पहले की है। महाभारत की कहानी के अनुसार, सभी पांडव युद्ध से पहले एक सरोवर के पास जंगल में रह रहे थे। इसी जगह दुर्योधन भी आकर रहने लगा। एक बार जब दुर्योधन सरोवर पर स्नान के लिए जा रहा था तभी अचानक स्वर्ग से गंधर्व आ जाते हैं और फिर स्नान को लेकर उससे दुर्योधन की लड़ाई हो जाती है और इसमें दुर्योधन हार जाता है। इसके बाद गंधर्व दुर्योधन को बंदी बना लेते हैं। इसी बीच वहां अर्जुन आ जाता है और उसने अपनी दुश्मनी भूलकर दुर्योधन को गंधर्वों से छुड़वा लेता है। दुर्योधन इस मदद से बहुत खुश होता है और अर्जुन से कहता है कि वह कोई भी वरदान मांग सकता है। इस पर अर्जुन ने कहा कि वह समय आने पर वरदान जरूर मांगेगा।
कृष्ण की योजना
जब युद्ध के दौरान कृष्ण को पांच बाणों की बात पता चली, तो उन्होंने अर्जुन को दुर्योधन से वरदान मांगने की याद दिलाई और उसी रात वरदान के रूप में दुर्योधन से पांचों बाण मांगने को कहते हैं। अर्जुन उसी रात दुर्योधन के पास जाते हैं और वरदान का याद दिलाते हुए तीर मांगते हैं। अर्जुन को सुनकर दुर्योधन हैरान रह जाता है लेकिन अपने वचन और क्षत्रिय धर्म का पालन करते हुए बाण अर्जुन को दे दिए। दुर्योधन ने अगली सुबह भीष्म से कहा कि वह फिर से नए बाण अभिमंत्रित करें, लेकिन भीष्म ने मना कर दिया। उन्होंने कहा कि एक बार दिए गए वचन को तोड़ा नहीं जा सकता। इस तरह पांडवों की जान बच गई और युद्ध में कौरवों की हार की शुरुआत हो गई।
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