Mahabharat Bhishma Pitamah: महाभारत में भीष्म पितामह सबसे महत्वपूर्ण पात्रों में से एक थे। वे हस्तिनापुर के महाराज शांतनु और देव नदी गंगा की आठवीं संतान थे। उनका मूल नाम देवव्रत था। गंगा ने जब शांतनु से विवाह किया तो उन्होंने अपने पति की सामने एक शर्त रखी कि मैं जब भी कोई काम करूंगी तो आप उसमें हस्तक्षेप नहीं करेंगे। जिस दिन आप हस्तक्षेप करेंगे मैं आपको छोड़ कर चली जाऊंगी। विवाह के बाद दोनों की सात संतान हुईं जिसे गंगा ने एक एक करके नदी में प्रवाहित कर दिया। जब आठवीं संतान हुई तो शांतनु से रहा नहीं गया।

शांतनु ने गंगा से कहा तुम कैसी मां हो जो अपने सभी पुत्रों का वध कर रही हो। इतना सुनकर गंगा चली जाती हैं लेकिन वे अपने पुत्र देवव्रत को जीवित रखती हैं। स्टार प्लस के महाभारत सीरियल में दिखाया गया है कि 25 सालों बाद अपने पुत्र को गंगा शांतनु को सौंप देती हैं। इधर महाराज शांतनु सत्यवती के प्यार में पड़ चुके होते हैं। लेकिन अपने पुत्र के वापस मिलने के बाद वे देवव्रत को हस्तिनापुर का युवराज बनाने की घोषणा कर देते हैं। सत्यवती को जब ये बात पता चलती है तो वे शांतनु को उनके पुत्र या अपने में से किसी एक को चुनने को कहती हैं। शांतनु अपने बेटे की खुशी चुनते हैं। जिस कारण उनकी दूरी सत्यवती से बड़ जाती है और वे दुख में जीवन जीने लगते हैं।

देवव्रत से अपने पिता की ऐसी हालत देखी नहीं जाती और वे शांतनु के सारथी से पूरी बात जान लेते हैं। जिसके बाद गंगापुत्र सत्यवती के पास जाकर अपने पिता की खुशी मांगते हैं। लेकिन सत्यवती कह देती हैं कि अगर मैं हस्तिनापुर में रहूंगी तो सम्रागिनी बनकर और मेरे पुत्र ही राजा बनेंगे। इसी शर्त पर मैं महाराज शांतनु से विवाह करूंगी। तब देवव्रत अपने पिता की खुशी के लिए प्रतिज्ञा लेते हैं कि महाराज शांतनु और माता सत्यवती से उत्पन्न पुत्र ही राज्य का अधिकारी बनेगा और वे खुद आजीवन ब्रह्मचारी रहेंगे। अपना परिवार कभी निर्मित नहीं करेंगे। इस भीष्म प्रतिज्ञा के कारण ही उनके पिता ने उन्हें भीष्म नाम दिया और साथ ही इच्छामृत्यु का वरदान भी दिया।