देवों के देव महादेव की अराधना का सबसे विशेष दिन महाशिवरात्रि आज पूरे देश में मनाया जा रहा है। इस खास दिन पर 59 साल बाद शश योग बन रहा है। इस दिन शनि और चंद्र मकर राशि में होंगे, गुरु धन राशि में, बुध कुंभ राशि में तथा शुक्र मीन राशि में रहेंगे। साथ ही शुभ कार्यों को संपन्न करने वाला सर्वार्थ सिद्धि योग भी इस दिन बन रहा है। साधना सिद्धि के लिए भी ये योग खास माना जाता है।
महाशिवरात्रि मुहूर्त (Mahashivratri Muhurat 2020):
महा शिवरात्रि शुक्रवार, फरवरी 21, 2020 को
निशिता काल पूजा समय – 12:09 ए एम से 01:00 ए एम, फरवरी 22
अवधि – 00 घण्टे 51 मिनट्स
22वाँ फरवरी को, शिवरात्रि पारण समय – 06:54 ए एम से 03:25 पी एम
रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय – 06:15 पी एम से 09:25 पी एम
रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय – 09:25 पी एम से 12:34 ए एम, फरवरी 22
रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय – 12:34 ए एम से 03:44 ए एम, फरवरी 22
रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय – 03:44 ए एम से 06:54 ए एम, फरवरी 22
चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ – फरवरी 21, 2020 को 05:20 पी एम बजे
चतुर्दशी तिथि समाप्त – फरवरी 22, 2020 को 07:02 पी एम बजे
महाशिवरात्रि व्रत विधि: शिवरात्रि व्रत से एक दिन पहले यानी त्रयोदशी तिथि को भक्तों को केवल एक समय ही भोजन ग्रहण करना चाहिए। फिर शिवरात्रि के दिन रोजाना के कार्यों से फ्री होकर भक्तों को व्रत का संकल्प लेना चाहिए। शिवरात्रि की पूजा शाम के समय या फिर रात्रि में करने का विधान है इसलिए भक्तों को सन्ध्याकाल स्नान करने के पश्चात् ही पूजा करनी चाहिए। शिवरात्रि पूजा रात्रि के समय एक बार या फिर चार बार की जा सकती है।
व्रत का पूर्ण फल प्राप्त करने के लिए भक्तों को सूर्योदय व चतुर्दशी तिथि के अस्त होने के बीच के समय में ही व्रत का समापन करना चाहिए। लेकिन, एक अन्य मान्यता के अनुसार, व्रत के समापन का सही समय चतुर्दशी तिथि के पश्चात् का बताया गया है। महाशिवरात्रि से जुड़ी हर एक जानकारी जानने के लिए बने रहिए हमारे इस ब्लॉग पर…
VIDEOS- कैसे, कब, क्यों करें शिव की पूजा और महाशिवरात्रि से जुड़े वीडियो यहां देखें
जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव...॥ एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव...॥ दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव...॥ अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव...॥ श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव...॥कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव...॥ ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव...॥ काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव...॥ त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव...॥
इस दिन शिव मंदिर जाएं या घर के मंदिर में ही शिवलिंग पर जल चढ़ाएं. जल चढ़ाने के लिए सबसे पहले तांबे के एक लोटे में गंगाजल लें. अगर ज्यादा गंगाजल न हो तो सादे पानी में ही गंगाजल की कुछ बूंदें मिलाएं. अब लोटे में चावल और सफेद चंदन मिलाएं और भगवान शिव को अर्पित करें. जल चढ़ाने के बाद पूजा की चावल, बेलपत्र, सुगंधित पुष्प, धतूरा, भांग, बेर, आम्र मंजरी, जौ की बालें, तुलसी दल, गाय का कच्चा दूध, गन्ने का रस, दही, शुद्ध देसी घी, शहद, पंच फल, पंच मेवा, पंच रस, इत्र चढ़ाएं.
धर्म विज्ञान शोध संस्थान के वैभव जोशी के अनुसार दूध में फैट, प्रोटीन, लैक्टिक एसिड, दही में विटामिन्स, कैल्शियम, फॉस्फोरस और शहद में फ्रक्टोस, ग्लूकोज जैसे डाईसेक्राइड, ट्राईसेक्राइड, प्रोटीन, एंजाइम्स होते हैं। वहीं, दूध, दही और शहद शिवलिंग पर कवच बनाए रखते हैं। इसके साथ ही शिव मंत्रों से निकलने वाली ध्वनि सकारात्मक ऊर्जा को ब्रह्मांड में बढ़ाने का काम करती है। धर्म और विज्ञान पर अध्ययन करने वाली इस संस्था ने शिवलिंग पर चढ़ाए जाने वाली चीजों की प्रकृति और उनमें पाए जाने वाले तत्वों की वैज्ञानिक व्याख्या के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार प्राचीन काल में चित्रभानु नाम का एक शिकारी था. जानवरों की हत्या करके वह अपने परिवार को पालता था. वह एक साहूकार का कर्जदार था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका. क्रोधित साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लि.। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी. शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव-संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा. चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी. शाम होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की. ....
बिल्वपत्र से गर्मी नियंत्रित होती है। इसमें टैनिन, लोह, कैल्शियम, पोटेशियम और मैग्नीशियम जैसे रसायन होते हैं। इससे बिल्वपत्र की तासीर बहुत शीतल होती है। तपिश से बचने के लिए इसका उपयोग फायदेमंद होता है। बिल्वपत्र का औषधीय उपयोग करने से आंखों की रोशनी बढ़ती है। पेट के कीड़े खत्म होते हैं और शरीर की गर्मी नियंत्रित होती है।
माना जाता है कि सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्यरात्रि भगवान शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था। प्रलय की वेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते हैं, इसीलिए इसे महाशिवरात्रि अथवा कालरात्रि भी कहा गया है। महाशिवरात्रि को की गई पूजा-अर्चना, जप दान आदि का फल कई गुना होता है।
शिव की जीवन शैली हो या उनका कोई अवतार, वे हर रूप में बिल्कुल अलग हैं। फिर वो रूप तांडव करते हुए नटराज हो, विष पीने वाले नीलकंठ, अर्धनारीश्वर, सबसे पहले प्रसन्न होने वाले भोलेनाथ का हो। वे हर रूप में जीवन को सही राह देते हैं।
रूद्राभिषेक का अर्थ है भगवान रूद्र का अभिषेक अर्थात शिवलिंग पर मंत्रों के द्वारा अभिषेक करना। यह पवित्र-स्नान रूद्ररूप शिव को कराया जाता है। अभिषेक के कई रूप व प्रकार होते हैं। शिव जी को प्रसन्न करने का सबसे अच्छा तरीका है रुद्राभिषेक करना। जटा में गंगा को धारण करने से भगवान शिव को जलधारा प्रिय है।
ज्योतिष मुताबिक इस बार महाशिवरात्रि के दिन 117 साल बाद शनि और शुक्र का दुर्लभ योग भी बन रहा है। इस दिन शनि अपनी स्वयं की राशि मकर में और शुक्र अपनी उच्च राशि मीन में रहेंगे। यह एक दुर्लभ योग माना गया है, जब ये दोनों बड़े ग्रह महाशिवरात्रि पर इस स्थिति में रहेंगे। इस योग में भगवान शिव की आराधना करने पर शनि के साथ-साथ गुरु, शुक्र के दोषों से भी मुक्ति मिल सकेगी।
प्रसाद चढ़ाते समय बरतें सावधानी: शिवलिंग पर प्रसाद चढ़ाते समय इस बात का ध्यान रखें कि शिवलिंग के ऊपर प्रसाद न रखें। माना जाता है कि शिवलिंग के ऊपर रखा गया प्रसाद ग्रहण नहीं होता जिससे पूजा अधूरी मानी जाती है।
अभिजित मुहूर्त- 12:12 पी एम से 12:58 पी एम, अमृत काल- 12:01 ए एम, फरवरी 22 से 01:45 ए एम, फरवरी 22 तक, सर्वार्थ सिद्धि योग – 09:14 ए एम से 06:54 ए एम, फरवरी 22 तक, विजय मुहूर्त – 02:28 पी एम से 03:14 पी एम, गोधूलि मुहूर्त- 06:04 पी एम से 06:28 पी एम, ब्रह्म मुहूर्त- 05:13 ए एम, फरवरी 22 से 06:03 ए एम, फरवरी 22 तक, सायाह्न सन्ध्या- 06:15 पी एम से 07:31 पी एम, निशिता मुहूर्त- 12:09 ए एम, फरवरी 22 से 01:00 ए एम, फरवरी 22 तक, प्रातः सन्ध्या- 05:38 ए एम, फरवरी 22 से 06:54 ए एम, फरवरी 22 तक।
भक्त को चाहिए कि वह शिव स्तुति, शिव सहस्रनाम, शिव महिम्नस्तोत्र, शिव चालीसा, रुद्राष्टकम, शिव पुराण आदि का पाठ करना चाहिए। यदि उपक्त पाठ करने में किसी प्रकार की बाधा हो रही हो तो पंचाक्षरी मंत्र 'नम:शिवाय' का जप ही निरंतर करना चाहिए। महाशिवरात्रि में जागरण करना शास्त्रों में अनिवार्य बताया गया है।
1. महाशिवरात्रि के दिन शिव का पूजन पंचामृत से किया जाता है. माना जाता है कि सबसे पहले पंचामृत से शिवलिंग का स्नान कराएं.
2. स्नान के बाद चंदन का तिलक लगाया जाता है
3. इसके बाद जल चढ़ाया जाता है.
4. इसके बाद बेलपत्र, भांग धतूरा, तुलसी, जायफल, फल, मिठाई, पान वगैरह अर्पित किया जाता है.
5. इस शिवरात्रि पर केसर की खीर का भोग लगाया जाता है.
6. इसके बाद अखंड़ जोत जगाई जाती है.
7. पूजा में ॐ नमो भगवते रूद्राय, ॐ नमः शिवाय रूद्राय् शम्भवाय् भवानीपतये नमो नमः मंत्र का जाप करना शुभ माना जाता है.
महाशिवरात्रि पर भगवान शिव की पूजा के लिए जरूरी सामग्री- बेल पत्र, धतूरा, भांग, फूल, बेर, आम्र मंजरी, जौ की बालें, तुलसी दल, कच्चा दूध, दही, शुद्ध देसी घी, शहद, गंगा जल, पवित्र जल, कपूर, धूप, दीप, रुई, चंदन, पंच फल, पंच मेवा, पंच रस, इत्र, रोली, मौली, जनेऊ, पंच मिष्ठान, शिव व मां पार्वती की श्रृंगार की सामग्री, दक्षिणा.
शिवरात्रि के दिन भक्तों को सन्ध्याकाल स्नान करने के पश्चात् ही पूजा करना चाहिए या मन्दिर जाना चाहिए। शिव भगवान की पूजा रात्रि के समय करना चाहिए एवं अगले दिन स्नानादि के पश्चात् अपना व्रत छोड़ना चाहिए। व्रत का पूर्ण फल प्राप्त करने हेतु, भक्तों को सूर्योदय व चतुर्दशी तिथि के अस्त होने के मध्य के समय में ही व्रत का समापन करना चाहिए। लेकिन, एक अन्य धारणा के अनुसार, व्रत के समापन का सही समय चतुर्दशी तिथि के पश्चात् का बताया गया है। दोनों ही अवधारणा परस्पर विरोधी हैं। लेकिन, ऐसा माना जाता है की, शिव पूजा और पारण (व्रत का समापन), दोनों की चतुर्दशी तिथि अस्त होने से पहले करना चाहिए।
आज महाशिवरात्रि है। शिवरात्रि की पूजा रात में करना ज्यादा फलदायी माना गया है। पंचांग अनुसार पूजा का सबसे शुभ मुहूर्त 12:09 ए एम से 01:00 ए एम, फरवरी 22 तक रहेगा।
- शिव रात्रि के दिन सबसे पहले सुबह स्नान करके भगवान शंकर को पंचामृत से स्नान करवाएं।
- उसके बाद भगवान शंकर को केसर के 8 लोटे जल चढ़ाएं।
- इस दिन पूरी रात दीपक जलाकर रखें।
- भगवान शंकर को चंदन का तिलक लगाएं।
- तीन बेलपत्र, भांग धतूर, तुलसी, जायफल, कमल गट्टे, फल, मिष्ठान, मीठा पान, इत्र व दक्षिणा चढ़ाएं। सबसे बाद में केसर युक्त खीर का भोग लगा कर प्रसाद बांटें।
- पूजा में सभी उपचार चढ़ाते हुए ॐ नमो भगवते रूद्राय, ॐ नमः शिवाय रूद्राय् शम्भवाय् भवानीपतये नमो नमः मंत्र का जाप करें।
इस बार महाशिवरात्रि पर 117 साल बाद दुर्लभ योग बन रहा है। शुक्रवार को महाशिवरात्रि पर्व मनाया जाएगा। उस दिन शनि अपनी राशि मकर व शुक्र उच्च राशि मीन में रहेंगे। भगवान शिव की अराधना से गुरु, शुक्र और शनि के दोषों से मुक्ति मिलेगी। शुक्रवार को ही बुध व सूर्य एक साथ कुंभ राशि में होंगे। इससे बुधादित्य योग बन रहा है। बीते 18 फरवरी से पांच मार्च तक कालसर्प योग है। यह समय कालसर्प योग से निवारण के लिए महत्वपूर्ण है। इस दिन रूद्राभिषेक करने से पातन कर्म भस्म हो जाते हैं। साधक में शिवत्व का उदय होता है। इससे मनोकामनाएं पूरी होती हैं। एक मात्र सदाशिव रूद्र के पूजन से सभी देवी-देवताओं की पूजा हो जाती है।
आज महाशिवरात्रि (Mahashivratri 2020) है यानी शिव शंकर की पूजा का खास दिन। धार्मिक मान्यताओं अनुसार इस दिन शिव आधी रात में लिंग रूप में पहली बार प्रकट हुए थे। इस लिंग की सबसे पहले पूजा भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी ने की थी। खास बात ये है कि शिवरात्रि (Shivratri) के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग भी बन रहा है। इस शुभ मुहूर्त में कार्य करने से सफलता हासिल होती है। जानिए महाशिवरात्रि का पूरा पंचांग…
भागवत् पुराण के अनुसार समुद्र मंथन के समय वासुकी नाग के मुख में भयंकर विष की ज्वालाएं उठी और वे समुद्र में मिश्रित हो विष के रूप में प्रकट हो गई। विष की यह आग की ज्वालाएं पूरे आकाश में फैलकर सारे जगत को जलाने लगी। इसके बाद सभी देवता, ऋषि-मुनि भगवान शिव के पास मदद के लिए गए। इसके बाद भगवान शिव प्रसन्न हुए और उस विष को पी लिया। इसके बाद से ही उन्हें नीलकंठ कहा जाने लगा।
शिवरात्रि पर व्रत रखने वाले भक्तों को विधान के अनुसार चतुर्दशी तिथि के पश्चात ही पारण करना चाहिए। व्रत में तन की शुद्धता के साथ मन की शुद्धता बहुत जरूरी है।
भगवान शिव की आराधना करने वालों को भगवान शिव का जाप करना चाहिए। इससे उन्हें शांति मिलेगी, साथ ही संकट का निवारण भी होगा।
शिव मंदिर में पूजा के लिए जाने से पहले अपने को पवित्र कर लें। स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें। दूध और बेलपत्र अवश्य लेकर जाएं। इससे भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद देते हैं।
- महादेव के जलाभिषेक के दौरान शिवलिंग को अपने हाथो से अच्छी तरह स्पर्श करें.
- वाहन सुख पाने के लिए रोजाना शिवलिंग पर चमेली का फूल अर्पित करें.
- शिव मंदिर में रोजाना संध्याकाल में एक दीपक प्रज्जवलित करें.
- बेलपत्र पर चंदन से ॐ नमः शिवाय लिखकर शिवलिंग पर अर्पित करें.
नमो बिल्ल्मिने च कवचिने च नमो वर्म्मिणे च वरूथिने च
नमः श्रुताय च श्रुतसेनाय च नमो दुन्दुब्भ्याय चा हनन्न्याय च नमो घृश्णवे॥
दर्शनं बिल्वपत्रस्य स्पर्शनम् पापनाशनम्। अघोर पाप संहारं बिल्व पत्रं शिवार्पणम्॥
त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुधम्। त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्॥
अखण्डै बिल्वपत्रैश्च पूजये शिव शंकरम्। कोटिकन्या महादानं बिल्व पत्रं शिवार्पणम्॥
गृहाण बिल्व पत्राणि सपुश्पाणि महेश्वर। सुगन्धीनि भवानीश शिवत्वंकुसुम प्रिय।
शिवरात्रि माह का सबसे अंधकारपूर्ण दिवस होता है। प्रत्येक माह शिवरात्रि का उत्सव तथा महाशिवरात्रि का उत्सव मनाना ऐसा लगता है मानो हम अंधकार का उत्सव मना रहे हों। कोई तर्कशील मन अंधकार को नकारते हुए, प्रकाश को सहज भाव से चुनना चाहेगा। परंतु शिव का शाब्दिक अर्थ ही यही है, ‘जो नहीं है’। ‘जो है’, वह अस्तित्व और सृजन है। ‘जो नहीं है’, वह शिव है। ‘जो नहीं है’, उसका अर्थ है, अगर आप अपनी आँखें खोल कर आसपास देखें और आपके पास सूक्ष्म दृष्टि है तो आप बहुत सारी रचना देख सकेंगे। अगर आपकी दृष्टि केवल विशाल वस्तुओं पर जाती है, तो आप देखेंगे कि विशालतम शून्य ही, अस्तित्व की सबसे बड़ी उपस्थिति है। कुछ ऐसे बिंदु, जिन्हें हम आकाशगंगा कहते हैं, वे तो दिखाई देते हैं, परंतु उन्हें थामे रहने वाली विशाल शून्यता सभी लोगों को दिखाई नहीं देती।
शिवजी की पूजा में बेल के पत्तों का बड़ा ही महत्व है। बेल को साक्षात् शिव स्वरूप बताया गया है। महाशिवरात्रि व्रत की कथा में बताया गया है कि एक शिकारी वन्य जीवों के डर से बेल के वृक्ष पर रात पर बैठा रहा और नींद ना आए इसलिए बेल के पत्तों को तोड़कर नीचे फेंकता रहा। संयोगवश उस स्थान पर शिवलिंग था। रात भर बेल के पत्ते उस शिवलिंग पर गिराते रहने से शिकारी के सामने भगवान शिव प्रकट हो गए और व्यक्ति मोक्ष का अधिकारी बन गया। शिव पुराण में कहा गया है कि तीन पत्तों वाला शिवलिंग जो कट फटा ना हो उसे शिवलिंग पर चढ़ाने से व्यक्ति पाप मुक्त हो जाता है। वैसे तो एक बेलपत्र अर्पित करने से ही भोलेनाथ प्रसन्न हो जाते हैं लेकिन संभव हो तो 11 या 51 बेलपत्र जरूर चढ़ाएं।
भगवान शिव ने अपनी पूजा में अक्षत के प्रयोग को महत्वपूर्ण बताया है। शिवलिंग के ऊपर अटूट चावल जरूर चढाएं। अगर संभव हो तो पीले रंग के वस्त्र में अटूट चावल सवा मुट्ठी रखकर शिवजी का अभिषेक करने के बाद शिवलिंग के पास रख दें। इसके बाद महामृत्युंजय मंत्र अथवा ओम नमः शिवाय मंत्र का जितना अधिक संभव हो जप करें। इस विधि से शिवलिंग की पूजा गृहस्थों के लिए शुभ माना गया है इससे आर्थिक समस्या दूर होती है।
शिव पुराण में बताया गया है कि दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल से अभिषेक करने पर भगवान भोलेनाथ अति प्रसन्न होते हैं। अगर आप इनमें से कोई वस्तु नहीं अर्पित कर पाते तो केवल जल में गंगाजल मिलाकर ही शिवजी का भक्ति भाव से अभिषेक करें। अभिषेक करते हुए महामृत्युंजय मंत्र का जप करते रहना चाहिए।
शिव रात्रि को भगवान शंकर को पंचामृत से स्नान करा कराएं. केसर के 8 लोटे जल चढ़ाएं. पूरी रात्रि का दीपक जलाएं. चंदन का तिलक लगाएं. तीन बेलपत्र, भांग धतूर, तुलसी, जायफल, कमल गट्टे, फल, मिष्ठान, मीठा पान, इत्र व दक्षिणा चढ़ाएं. सबसे बाद में केसर युक्त खीर का भोग लगा कर प्रसाद बांटें. पूजा में सभी उपचार चढ़ाते हुए ॐ नमो भगवते रूद्राय, ॐ नमः शिवाय रूद्राय् शम्भवाय् भवानीपतये नमो नमः मंत्र का जाप करें.
एक पौराणिक मान्यता के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन ही शिव जी पहली बार प्रकट हुए थे. मान्यता है कि शिव जी अग्नि ज्योर्तिलिंग के रूप में प्रकट हु थे, जिसका न आदि था और न ही अंत. कहते हैं कि इस शिवलिंग के बारे में जानने के लिए सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा ने हंस का रूप धारण किया और उसके ऊपरी भाग तक जाने की कोशिश करने लगे, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली. वहीं, सृष्टि के पालनहार विष्णु ने भी वराह रूप धारण कर उस शिवलिंग का आधार ढूंढना शुरू किया लेकिन वो भी असफल रहे.
समुद्र मंथन के दौरान जब देवतागण एवं असुर पक्ष अमृत-प्राप्ति के लिए मंथन कर रहे थे, तभी समुद्र में से कालकूट नामक भयंकर विष निकला। देवताओं की प्रार्थना पर भगवान शिव ने भयंकर विष को अपने शंख में भरा और भगवान विष्णु का स्मरण कर उसे पी गए। भगवान विष्णु अपने भक्तों के संकट हर लेते हैं। उन्होंने उस विष को शिवजी के कंठ (गले) में ही रोक कर उसका प्रभाव समाप्त कर दिया। विष के कारण भगवान शिव का कंठ नीला पड़ गया और वे संसार में नीलंकठ के नाम से प्रसिद्ध हुए।
दिनभर अधिकारानुसार शिवमंत्र का यथाशक्ति जप करना चाहिए अर्थात् जो द्विज हैं और जिनका विधिवत यज्ञापवीत संस्कार हुआ है तथा नियमपूर्वक यज्ञोपवीत धारण करते हैं। उन्हें ॐ नमः शिवाय मंत्र का जप करना चाहिए परंतु जो द्विजेतर अनुपनीत एवं स्त्रियां हैं, उन्हें प्रणवरहित केवल शिवाय नमः मंत्र का ही जप करना चाहिए। रुग्ण, अशक्त और वृद्धजन दिन में फलाहार ग्रहण कर रात्रि पूजा कर सकते हैं, वैसे यथाशक्ति बिना फलाहार ग्रहण किए रात्रिपूजा करना उत्तम है। रात्रि के चारों प्रहरों की पूजा का विधान शास्त्रकारों ने किया है। सायंकाल स्नान करके किसी शिवमंदिर जाकर अथवा घर पर ही सुविधानुसार पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख होकर और तिलक एवं रुद्राक्ष धारण करके पूजा का इस प्रकार संकल्प करे-देशकाल का संकीर्तन करने के अनंतर बोले- 'ममाखिलपापक्षयपूर्वकसकलाभीष्टसिद्धये शिवप्रीत्यर्थ च शिवपूजनमहं करिष्ये।'
भगवान शिव की आधी परिक्रमा लगाई जाती है। ध्यान रखें कि शिवलिंग के बाईं तरफ से परिक्रमा शुरू करनी चाहिए और जहां से भगवान को चढ़ाया जल बाहर निकलता है, वहां से वापस लौट आएं। उसे कभी भी लांघना नहीं चाहिए। फिर विपरित दिशा में जाकर जलाधारी के दूसरे सिरे तक आकर परिक्रमा पूरी करें।
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग: गुजरात के काठियावाड़ा क्षेत्र में समुद्र किनारे स्थित है। ऐसी मान्यता है कि यहां चंद्रमा ने भगवान शिव को आराध्य मानकर पूजा की थी, इसी कारण इस ज्योतिर्लिंग का नाम सोमनाथ पड़ गया। जो चंद्र का ही एक नाम है। इसी क्षेत्र में भगवान श्रीकृष्ण ने यदु वंश का संहार कराने के बाद अपनी नर लीला समाप्त कर ली थी। सभी ज्योतिर्लिंगों के बारे में जानने के लिए यहां क्लिक करें
महाशिवरात्रि का पावन पर्व इस साल 21 फरवरी को मनाया जायेगा। अन्य शिवरात्रि से इस महाशिवरात्रि को क्यों माना गया है खास इसके महत्व को जानने के लिए इस पौराणिक कथा को जानना जरूरी है जिसके अनुसार प्राचीन काल में चित्रभानु नामक एक शिकारी था। वह जानवरों की हत्या करके अपने परिवार का पालन पोषण करता था। वह एक साहूकार का कर्जदार था, लेकिन उसका ऋण समय पर चुका न सका। इससे क्रोधित साहूकार ने चित्रभानु को पकड़कर कैद कर लिया। संयोग से उस दिन महाशिवरात्रि थी। पूरी कथा पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
भांग: महादेव हमेशा ध्यानमग्न मुद्रा में रहते हैं। भांग ध्यान केंद्रित करने में मददगार होती है। समुद्र मंथन में निकले विष का सेवन करने के बाद महादेव को औषधि स्वरूप भांग दी गई। लेकिन प्रभु ने हर कड़वाहट और नकारात्मकता को आत्मसात किया इसलिए भांग भी उन्हें प्रिय है। भगवान शिव संसार में व्याप्त हर बुराई और हर नकारात्मक चीज को अपने भीतर ग्रहण कर लेते हैं।
इस दिन सुबह जल्दी उठ कर स्नान कर लेना चाहिए। इसके अलावा, महा शिवरात्रि का व्रत रखने वाले भक्तों को पूरे समय ओम नम: शिवाय मंत्र का जाप करते रहना चाहिए। सुबह-सुबह मंदिर जाकर भगवान शिव की अराधना के साथ ही दूध, शहद और पानी से अभिषेक करने से भी शिव जी खुश होते हैं। इसके अलावा, बेलपत्र, भांग, धतूरा भी उन्हें बेहद प्रिय हैं। व्रतियों को पूरे दिन बिना खाए शिव जी की पूजा में लीन रहना चाहिए और शाम होने के बाद स्नान करके किसी शिव मंदिर में जाकर उनकी आरती में शामिल होना चाहिए। घर में भी लोगों को शाम में पूर्व या उत्तर दिशा में मुंह करके त्रिपुंड और रुद्राक्ष पहनकर पूजा करनी चाहिए। इसके अलावा, शिवपुराण में रात्रि के चारों प्रहर में शिव पूजा का विधान है जिसमें भक्तों को फल, फूल, चंदन, बेलपत्र, धतूरा और दीप-धूप से भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए।
धतूरा: भगवान शिव को धतूरा चढ़ाने के पीछे जहां धार्मिक कारण है वहीं इसका वैज्ञानिक आधार भी है। जैसा कि भगवान शिव का निवास स्थान कैलाश पर्वत माना गया है। यह काफी ठंडा क्षेत्र है जहां ऐसे आहार और औषधि की जरुरत होती है जो शरीर को ऊष्मा प्रदान कर सकें। वैज्ञानिक दृष्टि से धतूरा सीमित मात्रा में लेने से ये औषधि का काम करता है और शरीर को अंदर से गर्म रखता है। जबकि धार्मिक मान्यताओं अनुसार देवी भागवत पुराण में बताया गया है। शिव जी ने जब सागर मंथन से निकले हलाहल विष को पी लिया तब अश्विनी कुमारों ने भांग, धतूरा, बेल आदि औषधियों से शिव जी की व्याकुलता दूर की।