Durga Navami 2020 (Maha Navami) Puja Vidhi, Vrat Vidhi, Muhurat: नवरात्र को देवी दुर्गा की आराधना का महात्योहार माना जाता हैं। इस दौरान देवी के नौ स्वरूपों की उपासना कर उनके वरदान से सिद्धियां और शक्तियां प्राप्त की जाती हैं। नवरात्र के आखिरी दिन को महानवमी मनाई जाती है। महानवमी के दिन देवी सिद्धिदात्री की पूजा का विधान है। इस साल महानवमी 24 अक्तूबर, शनिवार और 25 अक्तूबर को मनाई जा रही है।
महानवमी देवी सिद्धिदात्री पूजन विधि (Mahanavami Devi Siddhidatri Pujan Vidhi)
महानवमी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर पवित्र हो जाएं। फिर साफ कपड़े पहन कर पूजन स्थल पर जाएं। माता की चौकी पर देवी सिद्धिदात्री की प्रतिमा या फोटो लगाएं। माता सिद्धिदात्री के रूप का ध्यान करते हुए उनके मंत्रों का जाप करें। इसके बाद दुर्गा स्तुति या दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। फिर माता दुर्गा और देवी सिद्धिदात्री की आरती कर उन्हें भोग लगाएं। साथ ही कन्या पूजन के लिए बनाया हुआ भोग भी जरूर लगाएं। फिर कन्याओं का विधिवत पूजन करें।
महानवमी की कथा (Mahanavami Ki Katha)
प्राचीन कथाओं में ऐसा बताया जाता है कि महिषासुर नाम का एक दैत्य था। वह अपनी शक्ति और सामर्थ्य पर बहुत अहंकार करता था। महिषासुर को ऐसा लगता था कि वही परम पूजनीय है। इसलिए वह सबसे ईश्वर की जगह उसकी उपासना करने को कहता था। महिषासुर का अहंकार बढ़ा तो वह देवताओं को बंदी बनाने लगा। इसी तरह धीरे-धीरे उसका अत्याचार और हिंसा संपूर्ण विश्व में फैलने लगी।
महिषासुर का अत्याचार बढ़ते हुए देखकर सभी देवी-देवताओं को यह याद आया कि मां दुर्गा ने उन्हें यह वरदान दिया था कि जब भी आप मुझे याद करेंगे तो मैं आपकी सहायता के लिए तुरंत प्रकट होऊंगी। इसलिए सभी देवताओं ने मिलकर मां दुर्गा की स्तुति गाई और उनसे प्रार्थना की कि माता आप आइए और महिषासुर से तीनों लोकों की रक्षा कीजिए।
देवी-देवताओं की प्रार्थना सुनकर मां दुर्गा तुरंत वहां प्रकट हो गई और देवताओं को यह आश्वासन दिया कि वह महिषासुर का वध करेंगी। मां दुर्गा ने महिषासुर से आठ दिनों तक युद्ध किया। नवें दिन देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध किया। महिषासुर का वध करने की वजह से माता को महिषासुर मर्दिनी के नाम से पुकारा गया।
Highlights
पुराने समय में इस दिन औजारों एवम् हथियारों की पूजा की जाती थी क्यूंकि पौराणिक समय में लोग औजार एवम् हत्यार को युद्ध में मिली जीत के रूप में देखते थे लेकिन इन सब के पीछे मुख्य एक ही कारण होता है “भुराई की अच्छाई पर जीत”। वर्तमान समय में यह बुराई पर अच्छाई की जीत का ही प्रतीक है।
एक चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाकर उस पर अस्त-शस्त्र रखें। फिर उन्हें तिलक कर फूल अर्पित करें। फिर एक दीपक जलाकर उनकी आरती करें। आरती के बाद शस्त्रों को कुछ फल या मिठाई का भोग लगाने की परंपरा है।
इस दिन नीलकंठ का दर्शन बहुत ही शुभ माना जाता है | यह त्यौहार क्षत्रियों का माना जाता है | दशहरा या विजयदशमी नवरात्रि के बाद दसवें दिन मनाया जाता है | इस दिन जगह-जगह मेले लगते हैं और रामलीला का आयोजन होता है | साथ ही रावण का विशाल पुतला बनाकर उसे जलाया जाता है |
पुराने समय में इस दिन औजारों एवम् हथियारों की पूजा की जाती थी क्यूंकि पौराणिक समय में लोग औजार एवम् हत्यार को युद्ध में मिली जीत के रूप में देखते थे लेकिन इन सब के पीछे मुख्य एक ही कारण होता है “भुराई की अच्छाई पर जीत”। वर्तमान समय में यह बुराई पर अच्छाई की जीत का ही प्रतीक है।
यह त्यौहार भगवान श्री राम की कहानी तो कहता ही है जिन्होंनें लंका में 9 दिनों तक लगातार चले युद्ध के पश्चात अंहकारी रावण को मार गिराया और माता सीता को रावण की कैद से मुक्त कराया था। वहीं इस दिन मां दुर्गा ने राक्षस महिषासुर का संहार भी किया था इसलिये भी इसे विजयदशमी के रुप में मनाया जाता है और मां दूर्गा की पूजा भी की जाती है ।
नवमी के दिन मां दुर्गा के नवम् रूप श्री सिद्धिदात्री की आराधना की जाती है। कहते हैं कि इस दिन मां सिद्धिदात्री की सच्चे मन से आराधना करने से सिद्धियों की प्राप्ति होती है।
महानवमी के दिन देवी सिद्धिदात्री की उपासना की जाती है। मान्यता है कि इस दिन माता के स्वरूप का ध्यान करने से धन-धान्य की प्राप्ति होती है।
ओम एं ह्रीं क्लीं चामुंडाये विच्चै।
कृपा करो मातेश्वरी, सब सुखों की मूल।
दुष्टों से रक्षा करो, हाथ लिए त्रिशूल।।
जय जगजननी माता
हम पर दया करो विधाता
तुम्हारी कृपा से काम बन जाते हैं
दुखियों के दुख दूर हो जाते हैं
मां सिद्धिदात्री कमल के आसन पर विराजमान होती हैं। लाल रंग के वस्त्रों में मंद मुस्कुराती हुई मां सिद्धिदात्री अपने भक्तों पर कृपा करती हैं। यह चार भुजाधारी हैं। इनकी भुजाओं में शंख, गदा, चक्र और पदम हैं।
जय मां सिद्धिदात्री महामाया
जय जय नवम् दुर्गा रूप धराया
दुष्ट संहार करती हो आप
घर में धन-धान्य भरती हो आप
ओम या देवी सर्वभूतेषू सिद्धिदात्री मां संस्थिता।
नमस्तयै नमस्तयै नमस्तयै नमो नम:।।
महानवमी के दिन देवी सिद्धिदात्री की आराधना करने के बाद कन्या पूजन करने का विधान है। कहते हैं कि इस दिन कन्या पूजन का बहुत अधिक महत्व होता है। जो व्यक्ति इस दिन कन्याओं में माता का स्वरूप देखते हुए कन्या पूजन करता है भगवती की कृपा से उसे सुख-संपति की प्राप्ति होती है।
हे सिद्धिदात्री मां आपसे प्रार्थना है मेरी कि मेरे मन के अंधकारों को दूर करो मां। मैं आपकी कृपा के बिना इस संसार में नहीं रह सकती हूं। इसलिए मेरी आपसे हाथ जोड़कर यह प्रार्थना है कि आप मुझ पर दया कर मुझे अपना लीजिए।
पीएम नरेन्द्र मोदी
नवरात्र के अंतिम दिन यानी नौवें दिन मां सिद्धिदात्री की आराधना की जाती हैं। मां सिद्धिदात्री को देवी दुर्गा के नौ रूपों में पूजा जाता है। लेकिन सिद्धिदात्री माता का स्वरूप देवी लक्ष्मी जैसा है।