Magh Kalashtami 2025 Date: हिंदू पंचांग के अनुसार, हर महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी मनाई जाती है। इस दिन भगवान शिव के रौद्र रूप, काल भैरव की पूजा-अर्चना की जाती है। आपको बता दें कि भैरव के तीन रूप हैं – पहला काल भैरव, दूसरा बटुक भैरव और तीसरा स्वर्णाकर्षण भैरव। ऐसा माना जाता है कि काल भैरव की पूजा से जीवन की परेशानियां खत्म होती हैं और मनचाही इच्छाएं पूरी होती हैं। ऐसे में आइए जानते हैं माघ महीने की कालाष्टमी कब मनाई जाएगी। साथ ही, जानिए पूजा का शुभ मुहूर्त, मंत्र और महत्व के बारे में।

मासिक कालाष्टमी व्रत 2025 डेट और टाइम (Masik Kalashtami 2025 Date And Time)

हिंदू पंचांग के अनुसार, माघ महीने के कृष्ण फक्ष की अष्टमी तिथि की शुरुआत 21 जनवरी 2025 को दोपहर 12 बजकर 39 मिनट पर होगी। वहीं,
अष्टमी तिथि का समापन 22 जनवरी 2025 को दोपहर 3 बजकर 18 मिनट पर होगा। ऐसे में उदयातिथि के अनुसार, साल का पहला मासिक कालाष्टमी का व्रत 21 जनवरी 2025 को रखा जाएगा।

मासिक कालाष्टमी 2025 शुभ योग (Masik Kalashtami 2025 Shubh Yog)

इस बार मासिक कालाष्टमी व्रत बेहद खास माना जा रहा है। दरअसल, पंचांग के अनुसार, साल की पहली मासिक कालाष्टमी के दिन कई शुभ योग का निर्माण हो रहा है। पंचांग के अनुसार, इस दिन धृति योग, चित्र नक्षत्र और स्वाति नक्षत्र का शुभ योग बन रहा है। धृति योग 21 जनवरी सुबह से 22 जनवरी को सुबह 3:50 बजे तक रहेगा। वहीं, चित्रा नक्षत्र 21 जनवरी सुबह से रात 11:36 बजे तक रहेगा। इसके बाद स्वाति नक्षत्र शुरू हो जाएगा। ऐसे में इस दिन पूजा का महत्व अधिक बढ़ गया है।

मासिक कालाष्टमी व्रत का महत्व (Masik Kalashtami Importance)

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मासिक कालाष्टमी के दिन काल भैरव की पूजा करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है। यह व्रत उन लोगों के लिए बहुत लाभकारी माना जाता है जो शनि या राहु के बुरे प्रभावों से परेशान हैं। काल भैरव को तंत्र-मंत्र का देवता माना जाता है। ऐसे में उनकी पूजा से हर तरह की सिद्धि प्राप्त होती है। इसके अलावा यह भी मान्यता है कि भगवान काल भैरव की कृपा से शत्रुओं पर जीत मिलती है और मन में साहस बढ़ता है।

मासिक कालाष्टमी पूजा मंत्र (Masik Kalashtami 2025 Mantra)

ॐ काल भैरवाय नमः।।

ॐ क्रीं क्रीं कालभैरवाय फट।।

ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकाल भैरवाय नमः।।

ॐ भयहरणं च भैरव:

ॐ तीखदन्त महाकाय कल्पान्तदोहनम्, भैरवाय नमस्तुभ्यं अनुज्ञां दातुर्माहिसि

ॐ ह्रीं बं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरूकुरू बटुकाय ह्रीं

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