साल 2020 का दूसरा चंद्र ग्रहण 05 जून को लगने जा रहा है। जो एक उपच्छाया चंद्र ग्रहण होगा। इस साल का पहला चंद्र ग्रहण भी ऐसा ही लगा था। ग्रहण के बारे में जानने के लिए लोगों में एक उत्सुक्ता बनी रहती है। हर कोई ये जानने का इच्छुक रहता है कि, क्या है ग्रहण और कैसे लगता है? वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो चंद्र ग्रहण एक सामान्य खगोलीय घटना है जो लगभग हर साल घटित होती है। तो वहीं इससे जुड़ी कुछ धार्मिक कथाएं भी प्रचलित हैं…
क्या होता है चंद्र ग्रहण? वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो चन्द्रग्रहण उस घटना को कहते हैं जब चन्द्रमा और सूर्य के बीच में धरती आ जाती है जिससे धरती की पूर्ण या आंशिक छाया चांद पर पड़ती है। चंद्र ग्रहण को खुली आंखों से देखा जा सकता है और ये घटना पूर्णिमा के दिन ही घटित होती है। जब चांद अपने पूर्ण आकार में रहता है।
चंद्र ग्रहण लगने के धार्मिक कारण: चंद्र ग्रहण की घटना को समुद्र मंथन के दौरान दानवों और देवों के बीच हुए विवाद से जोड़कर देखा जाता है। पौराणिक कथा अनुसार समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश को देखकर देवताओं और राक्षसों में विवाद छिड़ गया। दोनों ही पक्षों को अमृत पाने की लालसा थी। इस मामले को सुलझाने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया। श्री हरि के मोहिनी रूप पर मोहित होकर देवता और दानव अमृत को पाने के लिए एक लाइन में बैठ गए। विष्णु जी की चाल थी देवताओं को सारा अमृत पिलाने की। जिस बात की भनक राक्षस राहु को लग गई और उसने छल से अमृत चख लिया। चंद्र और सूर्य ने ये बात तुरंत विष्णु भगवान को बताई और श्री हरि ने तुरंत राहु का सिर धड़ से अलग कर दिया। अमृत राहु के शरीर में जा चुका था।
जिस कारण वो राक्षस मरा नहीं बल्कि अमर हो गया। इस दानव के सिर वाला भाग राहु कहलाया और धड़ वाला भाग केतु। क्योंकि सूर्य और चंद्रमा के कारण राहु की ये दशा हुई थी इसलिए राहु-केतु नामक दैत्य सूर्य-चंद्र पर आक्रमण करके उन्हें निगलने का प्रयत्न करते हैं। जितना अंग उनके मुंह में घुस जाता है, उतने से ग्रहण दृष्टिगोचर होता है। इस प्रताड़ना से इन देवताओं को बचाने के लिए दान-पुण्य, जप-तप काम आता है।

