साल 2019 का दूसरा चंद्र ग्रहण 17 जुलाई को लगने वाला है। खास बात यह है कि इसका नजारा भारत में भी देखा जा सकेगा। साल के आखिरी चंद्र ग्रहण की अवधि 3 घंटे की होगी। सूतक काल 9 घंटे पहले यानी शाम 4:30 बजे से शुरु हो जायेगा। इस दौरान आपको खास सावधानियां बरतनी होगी। क्योंकि मान्यता है कि सूतक काल में कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किये जाते हैं। सूर्य ग्रहण का सूतक काल ग्रहण से ठीक 12 घंटे पहले शुरु हो जाता है। प्रकृति में कोई भी घटना होती है उसके पीछे कोई न कोई कारण जरूर छिपा होता है। चाहे वह सूर्य ग्रहण का लगना हो या चंद्र ग्रहण का। यहां आप जानेंगे आखिर क्यों लगता है चंद्र ग्रहण और किन कारणों से होती है यह बड़ी घटना…
क्या है चंद्र ग्रहण: वैज्ञानिक भाषा में समझें तो चंद्र ग्रहण एक खगोलीय घटना है जो तब होती है जब चंद्रमा पृथ्वी की छाया से गुजरता है। आसान भाषा में, जब सूर्य और चाँद के बीच पृथ्वी के आने से चंद्रमा पर प्रकाश पड़ना बंद होता है, उसे ही चंद्र ग्रहण कहते हैं।
नासा के अनुसार- चाँद धरती के चक्कर लगाता है और धरती सूरज के। जब भी धरती सीधे तौर पर सूरज और चाँद के बीच में आ जाती है, तो वह चाँद पर पड़ रही रोशनी को रोक देती है। जिससे कि धरती की परछाई चाँद पर पड़ती है और यही चंद्र ग्रहण कहलाता है।
धार्मिक रूप से – समुद्र मंथन के दौरान जब देवों और दानवों में विवाद हुआ था तो इसको हल करने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर लिया था। उन्होने देवता और असुरों को अलग अलग बैठा दिया था। लेकिन धोखे से राहु ने अमृत चख लिया था। तब चंद्रमा और सूर्य ने ये बात विष्णु को बताई और विष्णु ने सुदर्शन चक्र से राहु का सिर धड़ से अलग कर दिया था। परन्तु अमृत चखने की वजह से वह मरा नहीं। और उसका सिर वाला भाग राहु और धड़ वाला भाग केतु के नाम से जाना गया। इसी वजह से राहु और केतु सूर्य और चंद्रमा को अपना शत्रु मानते हैं और पूर्णिमा के दिन चंद्रमा को ढ़क लेते हैं। इसलिए चंद्रग्रहण होता है।