उत्तराखंड में भगवान शिव और विष्णु का निवास माना जाता है, यहां हर वर्ष लाखों श्रद्धालु अपने आराध्यों के दर्शन करने आते हैं। बद्रीनाथ को भगवान विष्णु का निवास स्थान माना जाता है लेकिन कई मान्यताएं हैं कि विष्णु ने यह स्थान माता पार्वती से छलपूर्वक हासिल किया था। पौराणिक दंत कथाओं के अनुसार बद्रीनाथ धाम भगवान शिव और माता पार्वती का विश्राम स्थान हुआ करता था। यहां भगवान शिव अपने परिवार के साथ रहते थे। भगवान विष्णु एक समय शिव से मिलने बद्रीनाथ आए और उन्हें यह स्थान इतना पसंद आ गया कि उन्होनें इसे प्राप्त करने की योजना बनाई। कथा के अनुसार सतयुग में जब भगवान नारायण बद्रीनाथ आए तो यहां बदरियों यानी बेर का वन हुआ करता था और यहां भगवान शिव अपनी पत्नी माता पार्वती के साथ रहते थे। एक दिन श्री हरि विष्णु बालक का रुप धारण करके जोर-जोर से उनके घर के पास आकर रोने लगे।
एक बालक का रुदन सुनकर माता पार्वती को बहुत ही पीड़ा हुई और वह सोचने लगीं कि वह इस बीहड़ वन में कौन बालक रो रहा है। यह कहां से आया है। यह सब सोचकर माता को बालक पर दया आ गई। तब वह उस बालक को लेकर अपने घर आ गईं। भगवान शिव समझ गए कि यह विष्णु की लीला है और माता से इस बालक को वापस छोड़कर आने का आग्रह किया और कहा कि यह थोड़ी देर रोने के बाद वापस चला जाएगा।। माता पार्वती ने भगवान शिव की बात नहीं मानी और बालक को घर में ले जाकर सुलाने चली गईं।
भगवान विष्णु के बाल रुप को सुलाने के बाद माता पार्वती और भगवान शिव घूमने के लिए चले गए। भगवान विष्णु इसी इच्छा के साथ शिव जी के घर में आए थे। भगवान विष्णु ने दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। भगवान शिव और माता वापस लौटे तो उन्होनें बालक को द्वार खोलने के लिए कहा। भगवान विष्णु ने कहा कि भगवन् अब आप भूल जाएं कि यहां आपका कोई स्थान था, यह मुझे पसंद आ गया है। मुझे यहीं विश्राम करने दीजिए। इसके बाद भगवान विष्णु का स्थान बद्रीनाथ और भगवान शिव का निवास स्थान केदारनाथ हो गया।
