प्रभु श्रीराम और हनुमान जी से जुड़े हुए तमाम प्रसंग बड़े ही मशहूर हैं। इन प्रसंगों को आए दिन भक्तों के बीच में सुनाया जा करता है। आज हम भी आपको प्रभु श्रीराम और हनुमान जी से जुड़ा हुआ एक बड़ा ही दिलचस्प प्रसंग सुनाने जा रहे हैं। इस प्रसंग में उस घटनाक्रम का जिक्र है जिसमें भुक्त हनुमान के आगे भगवान राम हार गए थे। इसके बाद राम जी ने हनुमान को कैसे प्रतिक्रिया दी, यह जानना बड़ा ही रोचक है। उत्तर रामायण के मुताबिक, एक बार राम जी ने अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन किया था। इस यज्ञ में उन्होंने सभी देवी-देवताओं, ऋषि-मुनियों, राजाओं, किन्नरों और कई अन्य लोगों को आमंत्रित किया था। यहां पर नारद मुनि ने एक राजन को ऋषि विश्वामित्र को प्रणाम करने से मना कर दिया था, जिससे विश्वामित्र भड़क उठे थे।
प्रसंग के मुताबिक, एक राजन द्वारा भरी सभा में खुद के ऐसे अपमान को वह सहन नहीं कर पाए। विश्वामित्र ने प्रभु श्रीराम से कहा कि वह उसे सूर्यास्त तक मृत्युदंड दे दें वर्ना वह उन्हें श्राप दे देंगे। राम जी ने उस राजा को सूर्यास्त तक मृत्युदंड देने का वचन दे दिया। इसके बाद वह राजा घबराया हुआ हनुमान जी की माता अंजनी जी की शरण में चला गया। अंजनी जी ने अपने बेटे हनुमान से उसकी जान बचाने की बात कही। लेकिन हनुमान जी को यह समझ नहीं आ रहा था कि वह उस राजा को राम जी के श्राप से कैसे बचाएंगे।
इसके बाद हनुमान जी ने उस राजा को सरयू नदी के किनारे जाकर राम नाम का जाप करने के लिए कहा। राजा नदी किनारे जाकर राम जी के नाम का जाप करने लगा। सूर्यास्त से पहले जब राम जी उसे मारने के लिए वहां आए तो धर्मसंकट में पड़ गए। दरअसल वह राम नाम का जाप करने वाले मनुष्य का वध नहीं कर सकते थे। यहां पर हनुमान जी आगे आए और उन्होंने प्रभु श्रीराम को पूरा वाकया कह सुनाया। इसके बाद ऋषि विश्वामित्र को दखल देना पड़ा और उन्होंने राम जी को अपने वचन से मुक्त कर दिया। इस प्रकार से भक्त हनुमान के आगे प्रभु श्रीराम हार गए थे। लेकिन इससे राम जी की दयालुता का और प्रसार हुआ।


