नारद जी से जुड़े कई दिलचस्प और रोचक प्रसंग बहुत ही प्रसिद्ध हैं। आज हम भी आपके लिए नारद जी का एक बड़ा ही शानदार प्रसंग लेकर आए हैं। इस प्रसंग में उस घटनाक्रम का विस्तार से वर्णन किया गया है जब नारद मुनि की तपस्या से देवराज इंद्र का सिंहासन हिलने लगा था। कहते हैं कि एक बार नारद जी हिमालय की कंदराओं का भ्रमण कर रहे थे। उस वक्त वहां का वातावरण बड़ा ही सुंदर था। ऐसे में नारद जी के मन में भगवान की भक्ति करने का ख्याल आया और वह वहीं पर बैठकर भगवान को याद करने लगे। बताते हैं कि नारद जी साधना में इतना लीन हो गए कि उनकी समाधि से इंद्र का सिंहासन हिलने लगा।
इस पर इंद्र जी ने नारद की परीक्षा लेनी चाही। इसके लिए उन्होंने कामदेव को नारद जी का ध्यान भंग करने के लिए कहा। बताते हैं कि कामदेव ने कई सारी खूबसूरत अप्सराओं को नारद के पास भेजा। इन अप्सराओं ने नारद के पास आकर नृत्य और गायन करना प्रारंभ कर दिया। अप्सराओं ने नारद का ध्यान भंग करने के लिए तमाम प्रयास किए लेकिन सारे असफल साबित हुए। इस पर कामदेव काफी घबरा गए और नारद की साधना के खत्म होने का इंतजार करने लगे।
प्रसंग के मुताबिक जब नारद जी ने स्वयं अपनी साधना समाप्त की तो कामदेव ने उनसे सारा किस्सा कह सुनाया। इस पर नारद जी ने कामदेव से पूछा कि क्या मेरी साधना से इंद्र डर गए थे? क्या इंद्र को लग रहा था कि मैं उनका सिंहासन ले लूंगा? नारद जी ने आगे कहा कि मैं ऐसा कुछ भी नहीं करने वाला हूं। मैं ऋषि हूं और मुझे किसी चीज की कमी नहीं है। और यदि मैं चाहूं तो अपनी साधना से कई बड़े राज्य हासिल कर सकता हूं। इससे इंद्र और कामदेव को एक ऋषि की शक्तिओं के बारे में पता चला।