Lohri 2019 Puja Shubh Muhurat, Timings, Time, Vidhi, Mantra: लोहड़ी का पर्व मकर संक्रांति से एक दिन पहले मनाया जाता है। लोहड़ी पंजाबियों का एक प्रमुख त्योहार है। इसके सेलिब्रेशन में अन्य लोग भी बड़ी ही खुशी के साथ शामिल होते हैं। लोहड़ी के कुछ दिन पहले से ही इसकी तैयारी आरंभ हो जाती है। लोहड़ी की तैयारी में लोग बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं। इस पर्व पर मूंगफली, गुड़, तिल और गजक का विशेष महत्व होता है। पर्व के सेलिब्रेशन के दौरान लोग मूंगफली, गुड़, तिल और गजक का आपस में आदान-प्रदान करते हैं। बच्चों में इन खाद्य पदार्थों को लेकर विशेष उत्साह नजर आता है। लोहड़ी पर बच्चे, जवान, बूढ़े और महिलाएं एकसाथ भांगड़ा डांस करते हैं। यह नजारा देखते ही बनता है।
शुभ मुहूर्त: इस साल मकर संक्राति की तिथि को लेकर भ्रम की स्थिति बनी हुई है। कुछ लोगों का मानना है कि इस बार 14 जनवरी को मकर संक्रांति पड़ेगी। वहीं, कुछ लोगों के अनुसार अबकी बार मकर संक्रांति 15 जनवरी को पड़ रही है। ऐसे में लोहड़ी की तिथि को लेकर भी असमंजस की स्थिति है। माना जा रहा है कि लोहड़ी 13 जनवरी, दिन रविवार को मनाई जाएगी। इसके साथ ही देश के अलग-अलग शहरों में लोहड़ी जलाने का समय में भी कुछ अंतर होगा।

Highlights
लोहड़ी को पहले कई स्थानों पर लोह कहकर भी बुलाया जाता था। लोह का अर्थ होता है लोहा। यहां लोहे को तवे से जोड़कर देखा जाता है। लोहड़ी के मौके पर पंजाब में नई फसल काटी जाती है।
माना जाता है कि आज ही के दिन मां गंगा ने राजा भगीरथ के 60 हजार पूर्वजों को मुक्ति दी थी इसलिए मकर संक्रांति के पर्व को पूर्वजों (पितरों) के आत्मा की शांति के लिए भी पवित्र माना जाता है।
किसान अपने नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत के रूप में लोहड़ी मनाते हैं। लोहड़ी की रात को साल की सबसे लंबी रात मानी जाती है। लोहड़ी के दिन अग्नि व महादेवी के पूजन से दुर्भाग्य दूर होता है, पारिवारिक क्लेश समाप्त होता है तथा सौभाग्य प्राप्त होता है।
कुम्भ का पहला शाही स्नान भी इसी दिन किया जाता हैं। इस दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु शाही स्नान करने के लिए इकठ्ठा होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि आज ही के दिन मां गंगा ने राजा भगीरथ के 60 हजार पूर्वजों को मुक्ति दी थी इसलिए मकर संक्रांति के पर्व को पूर्वजों (पितरों) के आत्मा की शांति के लिए भी पवित्र माना जाता है।
नवविवाहित जोड़ों के लिए यह पर्व खास मायने रखता है। इस दिन वे पारंपरिक परिधान पहनकर अग्नि को आहुति देते हुए उसके चारों ओर घूमते हैं और सुखी वैवाहिक जीवन की प्रार्थना करते हैं। मान्यता है कि अग्नि को आहुति देने से वैवाहिक जीवन की दिक्कतें दूर होती हैं और नई खुशियां आती हैं। अग्नि का फेरा लगाते हुए वे उसमें तिल, गजक, मूंगफली, गुड़, रेवड़ी, खील, मक्का और गन्ना चढ़ाया जाता है। कहते हैं इन चीजों की आहुति देने से दांपत्य जीवन में सम्पन्नता आती है।
एक अन्य कथा के अनुसार मकर संक्रांति के दिन कंस ने श्री कृष्ण को मारने के लिए लोहिता नामक राक्षसी को गोकुल भेजा था, जिसे श्री कृष्ण ने खेल-खेल में ही मार डाला था। उसी घटना के फलस्वरूप लोहड़ी पर्व मनाया जाता है।
इस दिन अलाव जलाकर उसके इर्दगिर्द डांस किया जाता है। इसके साथ ही इस दिन आग के पास घेरा बनाकर दुल्ला भट्टी की कहानी सुनी जाती है। लोहड़ी पर दुल्ला भट्टी की कहानी सुनने का खास महत्व होता है। मान्यता है कि मुगल काल में अकबर के समय में दुल्ला भट्टी नाम का एक शख्स पंजाब में रहता था। उस समय कुछ अमीर व्यापारी सामान की जगह शहर की लड़कियों को बेचा करते थे, तब दुल्ला भट्टी ने उन लड़कियों को बचाकर उनकी शादी करवाई थी। तब से हर साल लोहड़ी के पर्व पर दुल्ला भट्टी की याद में उनकी कहानी सुनाने की पंरापरा चली आ रही है।
उत्तराखंड में लोहड़ी का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। इस पर्व को सर्दियों के जाने और बसंत ऋतु के आने का संकेत माना जाता है। यह त्योहार खासकर नई फसल को काटने के मौके पर मनाया जाता है। लोहड़ी की खुशी में देहरादून में लोहड़ी पर सामूहिक पूजन किया गया। इस दौरान गिद्दा और भांगड़ा का तड़का लगा तो ऐसा समा बंधा कि हर कोई झूमता नजर आया। सभी ने एक-दूसरे को पर्व की बधाई दी।
लोहड़ी को पहले कई स्थानों पर लोह कहकर भी बुलाया जाता था। लोह का अर्थ होता है लोहा। यहां लोहे को तवे से जोड़कर देखा जाता है। लोहड़ी के मौके पर पंजाब में नई फसल काटी जाती है। गेहूं के आटे से रोटियां बनाकर लोह यानी तवे पर सेकीं जाती हैं। यह त्योहार फसल की बुआई और उसकी कटाई से जुड़ा हुआ है। किसान अपने नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत के रूप में लोहड़ी मनाते हैं। लोहड़ी की रात को साल की सबसे लंबी रात मानी जाती है। लोहड़ी के दिन अग्नि व महादेवी के पूजन से दुर्भाग्य दूर होता है, पारिवारिक क्लेश समाप्त होता है तथा सौभाग्य प्राप्त होता है।
लोहड़ी पूजा के साथ इस मंत्र का जाप फलदायी माना गया है। पूजन मंत्र: ॐ सती शाम्भवी शिवप्रिये स्वाहा । लोहड़ी का पर्व मूलतः आद्यशक्ति, श्रीकृष्ण व अग्निदेव के पूजन का पर्व है।
सिखों में एक लोहड़ी ब्याहने की परंपरा भी होती है। इस परंपरा के तहत लोहड़ी से पहले लोहड़ी की तैयारी करने के लिए लोकगीत गाकर लोग लकड़ी और उपले इकट्ठे करते हैं, जिसे ये एक चौराहे या पिंड के बीचों-बीच इकट्ठा करते हैं, जिसे रात में जलाना होता है। इस अवसर पर विवाहिता पुत्रियों को माँ के घर से सिंधारा (वस्त्र, मिठाई, रेवड़ी और फल भेजे जाते हैं, जिसे लोहड़ी ब्याहना कहते हैं।
लोहड़ी पर विशेष पूजा की जाती है। यह है पूजा विधि-
घर की पश्चिम दिशा में पश्चिममुखी होकर काले कपड़े पर महादेवी का चित्र स्थापित कर पूजन करें। सरसों के तेल का दीपक जलाएं, लोहबान से धूप करें, सिंदूर चढ़ाएं, बेलपत्र चढ़ाएं, रेवड़ियों का भोग लगाएं। सूखे नारियल के गोले में कपूर डालकर अग्नि प्रज्वलित कर रेवड़ियां, मूंगफली व मक्का अग्नि में डालें। इसके बाद सात बार अग्नि की परिक्रमा करें। लोहड़ी पूजा के साथ इस मंत्र का जाप करें: पूजन मंत्र: ॐ सती शाम्भवी शिवप्रिये स्वाहा॥...
लोहड़ी का त्योहार फसल की बुआई और उसकी कटाई से जुड़ा हुआ है। किसान अपने नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत के रूप में लोहड़ी मनाते हैं। लोहड़ी की रात को साल की सबसे लंबी रात माना जाता है।
हरियाणा के यमुनानगर में लोहड़ी का पर्व धूमधाम से मनाया गया। यहां बेटियों के नाम से लोहड़ी का पर्व मनाया गया। पंजाब और हरियाणा में इस पर्व को लेकर काफी धूमधाम रही। लोगों ने यहां अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को बधाइयां और मिठाई भेजीं। शाम के समय खुली जगह पर लोहड़ी जलाकर लोगों ने पवित्र अग्नि में मूंगफली, गजक और तिल डालकर इसकी परिक्रमा की।
पंजाब: 13 जनवरी की शाम 6.02 बजे।
दिल्ली: 13 जनवरी की शाम 6.00 बजे।
हरियाणा: 13 जनवरी की शाम 6.05 बजे।
जम्मू-कश्मीर: 13 जनवरी की शाम 6.01 बजे।
उत्तर प्रदेश: 13 जनवरी की शाम 6.03 बजे।
खगोलशास्त्रियों के अनुसार मकर संक्रांति के दिन सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण करता है और पृथ्वी के बहुत निकट आ जाता है। मकर संक्रांति के बाद मौसम में भी परिवर्तन आने लगता है और दिन बड़े और रातें छोटी होने लगती हैं।
सबसे पहले घर की पश्चिमी दिशा में पश्चिम की तरफ मुख करके काले कपड़े पर महादेवी की तस्वीर रखें। फिर पूजा शुरू करें। अब सरसों के तेल का दीपक व धूप जलाएं। सिंदूर, बेलपत्र व रेवड़ियां चढ़ाएं। सूखे नारियल में कपूर डालकर अग्नि प्रज्वलित करें। आगे उसमें आपको रेवड़ियां, मूंगफली और मक्का डालना होगा। सात बार अग्नि की परिक्रमा भी करें। पूजा के दौरान ये जाप करें- पूजन मंत्र: ॐ सती शाम्भवी शिवप्रिये स्वाहा॥
कहा जाता है कि आज ही के दिन मां गंगा ने राजा भगीरथ के 60 हजार पूर्वजों को मुक्ति दी थी इसलिए मकर संक्रांति के पर्व को पूर्वजों (पितरों) के आत्मा की शांति के लिए भी पवित्र माना जाता है।
मकर संक्रांति को कई जगहों पर खिचड़ी, मगही, बिहू, पोंगल अदि अन्य नामों से जाना जाता है। वहीं पश्चिमी भारत के गुजरात में इस दिन लोग बड़े उत्साह से पतंगबाजी करते हैं और गुड़ और तिल से बने मिष्ठान का लुत्फ़ उठाते हैं।
प्रतिवर्ष मकर संक्रांति की तिथि को लेकर यह उलझन बानी रहती है क्योंकि पंचांग के अनुसार सूर्य के उत्तरायण का समय में हर बार 20 मिनट बढ़ जाता है। वहीं प्रतिवर्ष की भांति इस बार भी पर्व 14 और 15 जनवरी दो दिन का होगा क्योंकि सूर्य 14 जनवरी को शाम को उत्तरायण करेगा जो अगले दिन तक चलेगी होगी।
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति का पर्व हर साल 14 जनवरी को मनाया जाता है। ज्योतिष के मुताबिक संक्रांति सूर्य और चंद्र की गति पर निर्भर करता है। इसके अनुसार मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तर गोलार्ध की ओर यात्रा करता है इस प्रकार यह तारीख 100 वर्षों के पश्चात बदलती है। इसलिए यह त्यौहार प्रतिवर्ष 14 जनवरी को मनाया जाता है।
मकर संक्रांति को हिन्दू पंचांग के अनुसार मलमास अथवा खरमास का अंत माना जाता है। दरअसल मलमास को हिन्दू धर्म में किसी भी शुभ कार्य के लिए बुरा माना जाता है लेकिन साल के इस पहले पर्व के साथ अन्य सभी त्योहारों और शुभ कार्यों का सिलसिला शुरू हो जाता है। इस दिन लोग प्रयागराग के त्रिवेणी संगम में स्नान करते हैं। इसके अलावा लोग गंगासागर, हरिद्वार, गढ़मुक्तेश्वर अदि जगहों पर स्नान करके पापों से मुक्ति पाने की परंपरा का पालन करते हैं।