शनि, राहु और केतु के अशुभ प्रभाव से बचने के लिए लाजवर्त रत्न धारण करने की सलाह दी जाती है। ज्योतिष विद्या के जानने वाले बताते हैं कि यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में शनि की साढ़ेसाती चल रही है तो ऐसे में लाजवर्त रत्न धारण करना चाहिए। वहीं यदि किसी जातक की कुंडली में राहु-केतु की अंतर्दशा या महादशा है तो इसके दुष्प्रभाव को भी कम करता है। इसके अलावा आर्थिक और मानसिक रूप से परेशान जातकों के लिए भी लाजवर्त रत्न प्रभावशाली होता है। परंतु ज्योतिषी लोग बताते हैं कि यह रत्न तभी अपना प्रभाव दिखाता है जब इसे विधिवत धारण किया जाए। आगे जानते हैं इसे धारण करने की सही विधि।
ज्योतिष के जानकारों के मुताबिक लाजवर्त रत्न चांदी की अंगूठी, चांदी के ब्रासलेट या चांदी के लॉकेट में पहनना चाहिए। इसे दाहिने हाथ की मध्यमा (बीच वाली) उंगली में पहनना लाभकारी होता है। शुक्लपक्ष के पहले शनिवार के दिन इस रत्न को धारण करना शुभ माना गया है। इसके अलावा इस रत्न को धारण करने से पहले इसके वजन का भी ध्यान रखना आवश्यक माना गया है। कम से कम दस कैरेट का लाजवर्त रत्न धारण करना अच्छा माना जाता है। इससे ऊपर 15-20 कैरेट का भी पहना जा सकता है।
ज्योतिषी बताते हैं कि लाजवर्त रत्न कम समय के लिए ही पहनना चाहिए। जब तक कुंडली में शनि की साढ़ेसाती का प्रकोप रहे तब तक ही इस रत्न को धारण करना चाहिए। जैसे ही शनि, राहु और केतु की दशा समाप्त हो जाए, लाजवर्त रत्न को बहते पानी में प्रवाह कर देना चाहिए।