जन्माष्टमी 2020 के दिन भगवान श्री कृष्ण का 5247वां जन्मोत्सव है। जन्माष्टमी इस साल 11-12 अगस्त को मनाई जा रही है। जन्माष्टमी के दिन भगवान श्री कृष्ण के भक्त निर्जला व्रत रखते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत करने वाले भक्तों पर भगवान श्री कृष्ण की कृपा हमेशा बनी रहती है। व्रत के दौरान जो भक्त श्री कृष्ण के नामों और मंत्रों का जाप करता है वह अनेकों पुण्य फलों को पा लेता है। ज्योतिषाचार्यों का कहना है कि भगवान श्री कृष्ण की कृपा से ऐसे भक्त के जीवन से सभी परेशानियों का अंत हो जाता है। जन्माष्टमी 2020 की इस खास स्टोरी में जानिए जन्माष्टमी का शुभ मुहूर्त और जन्माष्टमी की व्रत कथा –
जन्माष्टमी शुभ मुहूर्त (Janamashtami Shubh Muhurat):
निशिता पूजा का समय – 11 अगस्त, मंगलवार की रात 11 बजकर 44 मिनट से लेकर – 12 अगस्त बुधवार रात 12 बजकर 28 मिनट तक
निशिता पूजा की कुल अवधि 43 मिनट की रहेगी।
पारण समय – 12 अगस्त, बुधवार – सुबह 11 बजकर 16 मिनट के बाद
जन्माष्टमी व्रत कथा (Janamashtami Vrat Katha): मथुरा में कंस नाम का राजा राज्य करता था। उसकी एक बहन थी देवकी। कंस अपनी बहन को बहुत प्रेम करता था। कंस अपने मित्र वासुदेव के साथ अपनी बहन की शादी करता है। जब वह स्वयं रथ चलाकर अपनी बहन को विदा कर ससुराल छोड़ने जाता है, तभी अचानक आकाशवाणी होती है कि तुम्हारी प्रिय बहन देवकी के गर्भ की आठवीं संतान ही तुम्हारा काल होगा।
कंस यह सुनकर बहुत क्रोधित हो जाता है। देवकी-वासुदेव को कंस अपने महल के कारागार में बंद कर देता है। एक- एक कर देवकी – वासुदेव की सात संतान होती हैं। कंस उन सभी को अपने हाथों से मार देता है। जब आठवीं संतान यानी श्री कृष्ण जन्म लेते हैं तो माया से कंस के महल में सभी निद्रा में चले जाते हैं। वासुदेव जी को भगवान विष्णु की आज्ञा होती है कि इस बालक को मथुरा में नन्द बाबा के घर छोड़कर आओ और वहां जन्मी कन्या को अपने साथ कंस के महल ले आओ।
वासुदेव ऐसा ही करते हैं। कंस को पता चलता है कि आठवीं संतान कन्या है तो वह बहुत हंसता है। कन्या कंस को कैसे मार सकती है यह सोचकर हंसते हुए कंस वासुदेव और देवकी के पास जाता है और उस कन्या को जान से मारने के लिए नीचे फेंकता है। नीचे फेंकते ही वो कन्या देवी माया का रूप ले लेती है। देवी माया कंस को कहती हैं कि तेरा काल यहां नहीं नन्दगांव में है।
यह सुनकर कंस वहां जन्म लिए सभी नवजातों को मरवाना शुरू करता है। इसी दौरान कंस को पता चलता है कि नन्द बाबा के घर कृष्ण नाम के बालक ने जन्म लिया है। जो बहुत तेजस्वी है।
कंस समझ जाता है कि भगवान विष्णु ने इन्हें ही मेरे काल के रूप में भेजा है। कंस श्री कृष्ण को भी अनेकों राक्षसों की सहायता से मरवाने की कोशिश करता है। लेकिन वह सफल नहीं हो पाता है। श्री कृष्ण एक-एक कर सभी राक्षसों का उद्धार करते चले जाते हैं। फिर 11 साल की उम्र में वह कंस के महल पहुंचते हैं। वहां जाकर कंस का अंत करते हैं और अपने माता-पिता यानी देवकी और वासुदेव को कारागार से निकालते हैं।