हिन्दू धर्म शास्त्रों में तुलसी को पूज्य और शुभता का प्रतीक माना गया है। पूजा-पाठ में भी तुलसी के पत्ते का इस्तेमाल किया जाता है। कुछ देवी-देवता ऐसे हैं जिनकी पूजा में तुलसी के पत्ते का होन अनिवार्य भी माना गया है। आखिर क्यों तुलसी के पत्ते के बिना कुछ देवी-देवताओं की पूजा पूरी नहीं मानी जाती है? भगवान विष्णु की पूजा में तुलसी का प्रयोग अनिवार्य क्यों माना जाता है? साथ ही तुलसी कौन हैं? और भगवान विष्णु को तुलसी ने श्राप क्यों दिया था? भागवत पुराण के अनुसार इसे जानते हैं।

देवी भागवत पुराण के अनुसार एक बार भगवान शिव ने अपने तेज को समुद्र में फेंक दिया था। जिससे जलंधर की उत्पत्ति हुई। कहा जाता है जलंधर के पास अद्भुत शक्तियां थी। उसकी इस शक्ति का कारण उसकी पत्नी वृंदा थी। वृंदा के पतिव्रता धर्म के कारण सभी देवी-देवता मिलकर भी जलंधर को पराजित नहीं कर पा रहे थे। ऐसे में जलंधर को अपनी अद्भुत शक्ति पर अभिमान हो गया। जिस कारण वह अपनी पत्नी वृंदा की अवहेलना करने लगा। कहते हैं कि जलंधर ने खुद को शक्तिशाली साबित करने के लिए पहले इंद्र देव को परास्त किया। फिर उसने भगवान विष्णु को पराजित कर देवी लक्ष्मी को उनसे छीन लेने की योजना बनाई। कारण उसने वैकुंठ पर आक्रमण कर दिया। लेकिन देवी लक्ष्मी ने जलंधर से कहा हम दोनों का जन्म जल से हुआ है। इसलिए हमलोग भाई-बहन हैं। उनकी बातों से प्रभावित होकर जलंधर वहां से चला गया।

जलंधर इस बात को जनता था कि इस ब्रह्मांड में सबसे शक्तिशाली महादेव हैं। इसलिए उसने कैलाश पर आक्रमण करने की सोची। जिसके बाद महादेव को उससे युद्ध करना पड़ा। परंतु उसकी पत्नी वृंदा के तप की वजह से शिव का हर प्रहार जलंधर पर बेकार गया। उस युद्ध में एक माया से उसने भगवान सहित सभी देवताओं को भ्रमित कर दिया। जिसके बाद वह महादेव के वेश में कैलाश पहुंच गया। लेकिन पार्वती जी उसे देखते ही समझ गईं कि वह जलंधर है जो महादेव के रूप में आया है। यह देखकर मां पार्वती गुस्से में आ गईं और उसे मारने के लिए अपना अस्त्र उठा लिया। इधर जलंधर को पता था कि पार्वती शक्ति की देवी दुर्गा की ही एक रूप हैं। और वह उन्हें पराजित नहीं कर सकता है। इसलिए जलंधर वहां से भाग निकला।

फिर देवी पार्वती ने भगवान विष्णु को इस घटना के बारे में बताया। तब भगवान विष्णु ने उनसे बताया कि जलंधर की अद्भुत शक्ति का कारण उसकी पतिव्रता पत्नी वृंदा है। जो जलंधर के हर युद्ध से पहले तप करती है। जिससे उसे अद्भुत शक्ति मिलती है। अंत में भगवान विष्णु ने योजना बनाई और जलंधर का वेश बनाकर देवी वृंदा के पास पहुंचे। वृंदा भगवान विष्णु को अपना पति समझकर उनके साथ पत्नी जैसा व्यवहार करने लगी। इससे वृंदा का तप टूट गया और भगवान शिव ने जलंधर का वध कर दिया। तब देवी वृंदा ने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि एक दिन वो भी अपनी पत्नी से ऐसे ही बिछड़ जाएंगे। कहते हैं कि इस वजह से ही भगवान विष्णु रामावतार में रावण द्वारा सीता हरण के कारण माता सीता से बिछड़ गए थे। भगवान विष्णु द्वारा सतीत्व भंग किए जाने पर देवी वृंदा ने आत्मदाह कर लिया। तब उस राख के ऊपर तुलसी का पौधा जन्मा। माना जाता है कि तुलसी का पौधा देवी वृंदा का ही स्वरूप है। कहते हैं कि तब से ही भगवान विष्णु की पूजा तुलसी के बिना अधूरी मानी जाती है।