हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार किसी मूर्ति के खंडित होने के बाद उसे बहते जल में विसर्जित या वटवृक्ष के नीचे रख दिया जाता है। माना जाता है कि जिस मूर्ति को हम पूजते हैं उसमें प्राण होते हैं इसलिए उनके टूटने के बाद प्राण चले जाते हैं और आराधना नहीं की जाती है। वहीं शिवलिंग के खंडित होने पर भी उसका पूजन किया जाता है। भगवान भोलेनाथ के पूजन के लिए दो विधियों का इस्तेमाल किया जाता है। महादेव की पूजा मूर्ति और शिवलिंग के रुप में की जाती है। हिंदू शास्त्रों की मान्यता के अनुसार किसी भी खंडित मूर्ति का पूजन अशुभ माना जाता है। भगवान शिव ब्रह्मरुप हैं और उनका पूजन हर रुप में किया जाता है। शिवलिंग किसी स्थान से टूट जाए, तो उसे दूसरे से बदलने की परंपरा नहीं होती है।

पौराणिक शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव की जन्म-मृत्यु से कोई वास्ता नहीं है। शिव का ना कोई आदि है और ना ही कोई अंत माना जाता है। शिवलिंग को ही शिवजी का निराकार रुप माना जाता है। वहीं शिव मूर्ति को उनका साकार रुप माना जाता है। भगवान शिव को ही निराकार रुप में पूजा जाता है। मूर्ति और चित्रों में शिवजी के जिस रुप को दर्शाया जाता है वो कल्पना मात्र है, उनका किसी रुप-रंग से कोई मेल नहीं होता है। यही कारण से शिवलिंग को कभी भी खंडित नहीं माना जाता है।

वहीं घर में पूजे जाने वाली किसी भी अन्य देवी-देवता की खंडित मूर्ति को रखना और पूजा जाना अशुभ माना जाता है। जिस तरह से व्यक्ति को चोट लगती है तो वो उसका ईलाज करवाता है। उसी तरह भगवान की मूर्ति को भी खंडित रुप में नहीं रखा जाता है। यदि खंडित मूर्ति का पूजन किया जाता है तो भक्त का ध्यान उस खंडित हिस्से पर ही जाता है जिस कारण उसकी पूजा सफल नहीं हो पाती है। वास्तु के अनुसार माना जाता है कि खंडित मूर्ति घर में नकारात्मकता लेकर आती है और उसका पूजन किया जाए तो घर में अशांति का कारण बनती है। कोई मूर्ति खंडित हो जाती है तो उसे रविवार के दिन पीपल के पेड़ के नीचे रख देना चाहिए।