मंदिरों और घरों में पूजा के बाद आरती करने का विधान है। आरती हिन्दू उपासना पद्धति की एक विधि है। इसमें जलती हुई लौ को आराध्य देव के सामने घुमाया जाता है। ये लौ आमतौर पर घी या तेल के दिए की अथवा कपूर की बनी होती है। वैसे तो सब जानते हैं कि पूजा के बाद आरती की जाती है। लेकिन हममें से शायद कुछ लोग ऐसे भी होंगे जो इस बात से परिचित न होंगे कि आरती क्यों की जाती है? साथ ही आरती करते वक्त कितनी बार हाथ घुमाना शुभ माना गया है? शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार आगे इसे जानते हैं।
शास्त्रों की मान्यताओं के अनुसार जब कोई व्यक्ति आरती करता है तो वह परमात्मा की नजर उतारता है। साथ ही जब पूजा-पाठ में कोई गलती हो जाती है, कोई गलत उच्चारण करते हैं तो आरती से वह गलती माफ हो जाती है। हिन्दू धर्म शास्त्रों में यह बताया गया है कि जिस देवी अथवा देवता की आरती करनी होती है उनके बीज मंत्र की आकृति आरती द्वारा बनानी चाहिए। यदि कोई व्यक्ति बीज मंत्र के बारे में न जानता हो तो सभी देवी-देवताओं की आरती में ‘ॐ’ की आकृति बनाना शुभ माना गया है। यानि आरती को इस प्रकार घुमाना चाहिए जिससे ॐ की आकृति बन जाए।
इसके अलावा आरती की संख्या के बारे में ऐसा कहा गया है कि जिस देवी-देवता का संबंध जिस संख्या से हो उतनी बार आरती दिखानी चाहिए। जैसे भगवान विष्णु का संबंध 12 से है। साथ ही विष्णु जी का महामंत्र 12 अक्षरी माना जाता है। इसलिए विष्णु भगवान के सामने 12 बार आरती घुमानी चाहिए। सूर्य देव सात रश्मियों वाले हैं, इनके रथ में सात घोड़े लगे होते हैं। इसलिए सूर्य देव को सात बार आरती घुमानी चाहिए। इसी प्रकार देवी दुर्गा के लिए नवमी तिथि की प्रसिद्धि है। नौ अक्षरों वाला नवारण मंत्र दुर्गा जी का महामंत्र है। ऐसे में दुर्गा जी को नौ बार आरती दिखाना शुभ माना गया है।
